शादी करने से मना करने पर महिला को चाकू मारने वाले व्यक्ति के मानसिक इलाज के लिए हाईकोर्ट ने दिए जेल अथॉरिटी को निर्देश

अदालत ने इस व्यक्ति को यह कहते हुए ज़मानत देने से मना कर दिया कि उसको छोड़ने से शिकायतकर्ता की ज़िंदगी को ख़तरा उत्पन्न हो जाएगा।

Update: 2019-09-27 09:56 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने जेल अथॉरिटी से उस आदमी के मानसिक इलाज की व्यवस्था करने को कहा जिसने शादी का प्रस्ताव नहीं मानने पर एक महिला को चाक़ू घोंप दिया था। अदालत ने इस व्यक्ति को यह कहते हुए ज़मानत देने से मना कर दिया कि उसको छोड़ने से शिकायतकर्ता की ज़िंदगी को ख़तरा उत्पन्न हो जाएगा।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में ठाणे कारागार के अधीक्षक को निर्देश दिया कि वह कुणाल बवधाने के मानसिक इलाज की व्यवस्था करें। इस व्यक्ति पर उस महिला को चाक़ू घोंपने का आरोप है, जिसने उससे शादी करने से मना कर दिया। अदालत ने उस व्यक्ति की ज़मानत याचिका इस आधार पर ख़ारिज कर दी कि उसकी मानसिक स्थिति ऐसी है, जिससे पीड़िता की जान को ख़तरा हो सकता है।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे ने कुणाल की ज़मानत याचिका पर सुनवाई की। कुणाल पर आईपीसी की धारा 307 और महाराष्ट्र पुलिस अधिनियम की धारा 37(1) और 135 के तहत मुक़दमा चलाया गया है।

शिकायतकर्ता के अनुसार पीड़िता कुणाल को जानती थी और वे दोनों दोस्त थे। पीड़िता ने कहा कि आवेदनकर्ता ने यह स्वीकार किया था कि वह उससे प्यार करता है। इसके बाद कुणाल ने आत्महत्या की धमकी दी थी, जिसके बाद से पीड़िता ने उससे दूरी बनानी शुरू कर दी।

यह है मामला

जनवरी 30, 2019 को शिकायतकर्ता नेशनल पार्क में आरोपी के साथ थी। जब वह रिक्शा में बैठी हुई थी, तभी आरोपी ने अचानक एक चाक़ू निकाल लिया और उसकी गर्दन पर वार किया। जब उसने इस वार से बचाने की कोशिश की, तो उसके हाथ पर चोट लगी और इसके बाद उसने चिल्लाना शुरू कर दिया। पर इस पर भी आरोपी ने नहीं माना और उसकी पीठ और चेहरे पर वार किया। इसके बाद पीड़िता ने उसे रिक्शा से धक्का दे दिया।

इसके बाद, वहाँ मौजूद लोग उसे अस्पताल ले गए। पीड़िता पर हमला करने के बाद आरोपी ने ख़ुद को भी घायल कर लिया।

आरोपी के वक़ील बीजे शेख़ ने कहा कि आरोपी की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी और इसी वजह से उसने ख़ुद अपने पेट में भी छुरा घोंप लिया। शेख़ ने कहा कि शिकायतकर्ता को जो चोटें आई हैं वे दुर्घटनावश है और कुणाल उसे जानबूझकर चोट नहीं पहुँचना चाहता था। शेख़ ने अदालत से कहा कि आरोपी को मानसिक चिकित्सा की ज़रूरत है।

पेश दस्तावेज़ों के आधार पर न्यायमूर्ति डेरे ने कहा,

"जो चोट पहुँचाई गई है वह जानबूझकर पहुँचाई गई या नहीं इस बात का निर्णय तो निचली अदालत करेगा। पर आरोपी ने जिस तरह से शिकायतकर्ता पर हमला किया और उसे जिस तरह के चोट पहुँचे उसको देखते हुए उसे ज़मानत नहीं दी जा सकती।

इस बात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि आवेदक इसी तरह का अपराध दुबारा करे और शिकायतकर्ता की ज़िंदगी को ख़तरे में डाल दे। इस बात की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता कि आवेदक साक्ष्य से छेड़छाड़ न करे। इसलिए उसकी ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज की जाती है। जिस तरह से यह सारा वाक़या हुआ और आवेदक की मानसिक स्थिति को देखते हुए थाने केंद्रीय कारागार के अधीक्षक को यह निर्देश दिया जाता है कि वह आरोपी को कम से कम सप्ताह में एक बार मानसिक मदद उपलब्ध कराए"।

अदालत ने जेल के अधिकारियों को यह निर्देश भी दिया कि आरोपी का इलाज करने वाले संबंधित डॉक्टर को चार्ज शीट की कॉपी उपलब्ध कराई जाए ताकि उसे आरोपी के इलाज में मदद मिले। 



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