सिर्फ प्रतिबंधित संगठन की सदस्यता का मतलब ये नहीं कि आरोपी आतंकी गतिविधियों में भी शामिल रहा है : सुप्रीम कोर्ट ने कथित माओवादी समर्थक की जमानत बरकरार रखी [आर्डर पढ़े]

Update: 2019-05-29 12:58 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा कथित तौर पर माओवादी से सहानुभूति रखने वाले कोनाथ मुरलीधरन को जमानत देने को चुनौती दी गई थी। मुरलीधरन वर्ष 2015 से पुणे की यरवदा जेल में हिरासत है।

अपील को अदालत ने किया खारिज
"उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश में दखल देने के लिए कोई केस नहीं बना है," 3 लाइन के आदेश में जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एम. आर. शाह की पीठ ने अपील को खारिज कर दिया।

मुरलीधरन पर लगाये गए आरोप
आपको बता दें कि मुरलीधरन को महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते ने मई 2015 में इस आरोप में गिरफ्तार किया था कि वो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सदस्य है, जो गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत प्रतिबंधित संगठन है।

दरअसल माओवादी साहित्य, सीपीआई (माओवादी) और सीपीआई (माओवादी / लेनिनवादी) (नक्सलबाड़ी) में विलय की घोषणा और थॉमस जोसेफ के नाम पर एक जाली पैन कार्ड और कुछ सिम कार्ड व मोबाइल फोन के रूप में उनके पास से जब्त की गई सामग्रियों के आधार पर एटीएस ने उन्हें हिरासत में ले लिया था।

इसके बाद अक्टूबर 2015 में एटीएस ने उनके खिलाफ UAPA की धारा 10 (प्रतिबंधित संगठन का सदस्य), धारा 20 (आतंकवादी गिरोह का सदस्य होने), धारा 38 (आतंकवादी संगठन की सदस्यता से संबंधित अपराध), धारा 39 ( आतंकवादी संगठन से समर्थन ) के तहत आरोप पत्र दायर किया था। इसमे जालसाजी और प्रतिरूपण के संबंध में भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध भी आरोप पत्र में शामिल थे।

बॉम्बे हाई कोर्ट का जमानत अर्जी पर विचार
उनकी जमानत अर्जी पर विचार करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस नितिन डब्ल्यू सांब्रे ने कहा कि UAPA की धारा 20 की सामग्री एटीएस द्वारा एकत्रित सामग्री से संतुष्ट नहीं होती है।

UAPA की धारा 20 किसी भी ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास देती है जो आतंकवादी गिरोह या आतंकवादी संगठन का सदस्य पाया जाता है और जो आतंकवादी कृत्य में शामिल है। उच्च न्यायालय के अनुसार संगठन की सदस्यता का अनुमान, यह मानने के लिए पर्याप्त नहीं है कि आरोपी ने उक्त आतंकवादी कृत्य किया था।

"अधिनियम की धारा 20 के तहत यह संतोष का केवल एक हिस्सा है, इसका मतलब है कि आवेदक पहली नजर में आतंकी संगठन का सदस्य पाया जा सकता है। तथ्य यह है कि ठोस सामग्री के अभाव में अदालत खुद ये नहीं मान सकती कि आवेदक एक आतंकवादी कार्य में लिप्त रहा है," अपने आदेश में जस्टिस नितिन डब्ल्यू सांब्रे ने कहा।

"आतंकवादी संगठन के सदस्य के रूप में काम करने का सबूत नहीं"
कोर्ट ने कहा कि सामग्री की जब्ती के आधार पर की गई जांच से इस निष्कर्ष का समर्थन करने के लिए कोई परिणाम नहीं निकला है कि उसने आतंकवादी संगठन के सदस्य के रूप में काम किया था। अन्य अपराध 10 वर्ष से कम कारावास की सजा के साथ दंडनीय हैं।

इस संबंध में अदालत ने कहा कि मुरलीधरन मई 2015 के बाद से 3.5 वर्ष से अधिक समय से सलाखों के पीछे है।

"इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि उस पर पहले से कोई आपराधिक मामला नहीं है और आवेदक 3 से अधिक वर्षों से सलाखों के पीछे है। मेरी राय में, जमानत देने के लिए एक मामला बनता है, " अदालत ने कहा।

जमानत पर रिहाई का आदेश
पीठ ने 1 लाख रुपये के व्यक्तिगत रिहाई बांड और इस तरह की राशि में एक या एक से अधिक जमानत देने की शर्त पर जमानत पर उसकी रिहाई का आदेश दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि वो 1 साल तक हर 15 दिनों में और इसके बाद प्रत्येक महीने के पहले सप्ताह में संबंधित थाने में अपनी हाजिरी देंगे।
हालांकि उच्च न्यायालय ने 25 फरवरी को जमानत अर्जी को अनुमति दी थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर करने के लिए सरकार के अनुरोध के आधार पर मुरलीधरन की रिहाई पर 5 मई तक रोक लगा दी थी। 8 मई को पीठ ने इसे 4 सप्ताह तक बढ़ा दिया था।

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