अरावली पहाड़ियों में खनन की अनुमति देने के कानून पर सुप्रीम कोर्ट नाराज, हरियाणा को नए कानून को लागू करने से रोका
यह कहते हुए कि विधायिका "सुप्रीम" नहीं हो सकती है, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को हरियाणा सरकार को अरावली पर्वतमाला व जंगलों में रियल एस्टेट एवं अन्य गैर-वन गतिविधियों के लिए हजारों एकड़ भूमि के इस्तेमाल की अनुमति देने के लिए बनाए गए कानून को लागू करने से रोक दिया।
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अरावली पहाड़ियों में इस तरह की निर्माण गतिविधि की अनुमति देने के लिए 119 साल पुराने पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम में संशोधन करने के लिए हरियाणा सरकार के फैसले पर गंभीर सवाल उठाए हैं।
अधिनियम को वर्ष 1900 में तत्कालीन पंजाब सरकार द्वारा विभाजन से पहले पेश किया गया था। ये कानून उप-पानी के संरक्षण और/या कटाव के अधीन पाए जाने वाले क्षेत्रों में कटाव की रोकथाम और/या क्षरण के लिए उत्तरदायी बनने की संभावना के लिए प्रदान किया गया है।
जस्टिस मिश्रा ने हरियाणा सरकार की ओर से पेश वकील से कहा "क्या आपको लगता है कि आप सुप्रीम हैं१"
उन्होंने आगे कहा, "हम इस तरह के दुस्साहस की अनुमति नहीं देंगे। क्या आपको (हरियाणा सरकार) लगता है कि आप सर्वोच्च हैं? आप कानून से ऊपर नहीं हैं। विधायिका सर्वोच्च नहीं है। कई बार कोर्ट में भी आपको पेश होना पड़ता है। यह वास्तव में चौंकाने वाला है कि आप जंगलों को नष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं (इस संशोधन के जरिये)। हम जानते थे कि हरियाणा सरकार बिल्डरों के पक्ष में है और जंगल को नष्ट करने के लिए ऐसा करेगी और इसीलिए हमने आपको पहले भी चेतावनी दी थी लेकिन यह चौंकाने वाला है कि आप हमारी चेतावनी के बावजूद आगे बढ़ गए।"
सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्माण पर रोक लगाने के फैसले को पलटने के हरियाणा विधानसभा के प्रयास से नाराज शीर्ष अदालत ने कहा, "यह अदालत की अवमानना है। हम बहुत सी बातें कहना चाहते हैं, लेकिन नहीं कह रहे हैं।"
हरियाणा विधानसभा ने बुधवार को अरावली और शिवालिक पर्वतमाला के तहत हजारों एकड़ भूमि के रियल एस्टेट विकास और खनन के लिए मौजूद अधिनियम में एक संशोधन पारित किया था जो पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में संरक्षित अरावली के जंगलों पर अधिनियम में संशोधन का व्यापक प्रभाव पड़ेगा। यह आरोप लगाया गया कि इस कदम से "कई करोड़ का घोटाला हुआ" और यह संशोधन अधिनियम के दायरे में संरक्षित वन क्षेत्रों और पारिस्थितिक संरक्षण को ले आएगा।
यह भी बताया गया कि हरियाणा में 7 प्रतिशत से भी कम वन क्षेत्र है और अरावली की मदद से दिल्ली के साथ-साथ एनसीआर में इसके जरिये पारिस्थितिकी को बनाए रखने में मदद मिलती है। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि यह कानूनी संशोधन 1966 के बाद के अनधिकृत निर्माणों को मंजूरी देगा क्योंकि नया कानून पूर्वव्यापी प्रभाव (retrospective application) के साथ लागू होगा।