न्याय हर भारतीय का अधिकार है लेकिन न्याय महंगा होने से बहुत लोग इससे वंचित रह जाते हैं। इस परेशानी से निपटने के लिए भारतीय संसद द्वारा विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,1987 बनाया गया है। यह अधिनियम देशभर में लागू है और तीन स्तरों पर काम करता है। पहला स्तर राष्ट्रीय स्तर है, दूसरा स्तर राज्य स्तर एवं तीसरा स्तर जिला स्तर है। पहले स्तर से लेकर निचले स्तर तक इस अधिनियम के ज़रिए ज़रूरतमंद लोगों को न्याय दिलवाने के प्रयास किए गए हैं।
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम के अंतर्गत हर ज़रूरतमंद व्यक्ति को निशुल्क न्याय उपलब्ध करवाया जाता है। सिविल और क्रिमिनल दोनों ही मामलों में किसी पात्र व्यक्ति को बिल्कुल निशुल्क वकील उपलब्ध करवाए जाने के प्रावधान हैं। ऐसे नियुक्त किए गए वकील की फीस का भुगतान सरकार द्वारा किया जाता है। सरकार अपनी पेनल में ऐसे वक़ीलों की नियुक्ति करती है जो विधिक सेवा प्राधिकरण के लिए काम करते हैं।
निशुल्क विधिक सेवा के पात्र व्यक्ति
फ्री लीगल एड के पात्र लोगों में गरीब और शोषित वर्गों को मिलाते हुए दो वर्ग बनाए गए हैं। पहले वर्ग में महिलाएं, अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति और बच्चों को रखा गया है। दूसरे वर्ग में उन लोगों को रखा गया है जिनके पास उचित आय के साधन नहीं होने के कारण गरीब हैं एवं उन लोगों को भी दूसरे वर्ग में रखा गया है जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं मतलब जिन लोगों के पास बीपीएल राशन कार्ड है।
इन दोनों ही वर्गों के लोगों को मुफ्त वक़ील दिए जाते हैं जो उनकी तरफ से अदालत में पक्ष रखते हैं और वह सभी काम करते हैं जो काम एक फीस देकर नियुक्त किया गया वक़ील करता है। इन वर्ग के लोगों को किसी भी मामले में मुफ्त वक़ील दिया जा सकता है अब भले वह मामला कोई सिविल केस हो या फिर कोई आपराधिक केस हो। भले ही ऐसा व्यक्ति वादी हो या प्रतिवादी इन वर्गों का होने से उसे मुफ्त वक़ील सरकार की ओर से दिया जाता है।
आवेदन कैसे करें
निशुल्क विधिक सेवा के लिए आवेदन उस अदालत परिसर में बने फ्री लीगल एड के दफ्तर में किया जाता है। ऐसे आवेदन में वह सब चीज़ें बतानी होती हैं जो किसी केस से संबंधित है। जैसे प्रकरण क्या है और उस प्रकरण में आवेदक की हैसियत क्या है और आवेदक किस नाते निशुल्क विधिक सेवा का हकदार है।
जिला विधिक सेवा में किए गए ऐसे आवेदन पर प्राधिकरण द्वारा जांच की जाती है एवं आवेदक यदि उन दोनों ही वर्गों में से किसी वर्ग में आता है तो उसके केस के लिए निशुल्क वकील नियुक्त कर दिया जाता है।
कभी कभी अदालत द्वारा भी विधिक सेवा सचिव को पत्र लिखकर किसी गरीब अभियुक्त को फ्री कानूनी मदद दी जाती है, जब अभियुक्त द्वारा यह कहा जाता है कि उसके पास कोई वक़ील नहीं है और वक़ील को फीस देने के लिए रुपए भी नहीं हैं तब अदालत सचिव को पत्र लिख कर उस अभियुक्त को वक़ील नियुक्त करवाती है।
निर्धन वर्ग को कोर्ट फीस से भी मिलती है मुक्ति
निर्धन वर्ग के लोगों को कोर्ट फीस से भी मुक्ति दिए जाने के प्रावधान सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 33 में हैं। जहां किसी भी गरीब व्यक्ति द्वारा आवेदन करने पर अदालत ऐसे व्यक्ति को कोर्ट फीस से मुक्त कर देती है। किसी भी सिविल वाद में वादी द्वारा कोर्ट फीस देकर मामला पंजीकृत करवाया जाता है, ऐसी कोर्ट फीस अलग अलग मामलों में अलग अलग राज्यों के हिसाब से होती है। यहां ध्यान रखने योग्य बात यह है कि कोर्ट फीस से मुक्ति के लिए भी एक आवेदन अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना होता है, बीपीएल कार्डधारी व्यक्ति को अदालत द्वारा जांच किए जाने के बाद कोर्ट फीस से मुक्ति मिलती है।
लेकिन ऐसी राहत के लिए कुछ शर्तें भी हैं जैसे कि जिस व्यक्ति को कोर्ट फीस मुक्ति मिलती है उसके पास केवल वही विवादित संपत्ति होना चाहिए जिसके लिए अदालत के समक्ष मुकदमा दर्ज करवाया जा रहा है और उस व्यक्ति को मुकदमा जीतने पर सबसे पहले कोर्ट अदा करनी होती है। हालांकि उसे पहले कोर्ट फीस अदा किए जाने से मुक्ति मिल जाती है।