एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट समय की आवश्यकता

Update: 2023-04-03 03:30 GMT

- नमन शर्मा

हाल ही में जोधपुर में एक वकील की नृशंस हत्या के मामले ने एक बार फिर भारत में वकीलों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर दिया है। हाल के वर्षों में भारत में वकीलों के खिलाफ अपराधों में अचानक वृद्धि हुई है। आगरा बार काउंसिल की पहली महिला अध्यक्ष दरवेश यादव की हत्या, गुजरात के कच्छ में वकील देवजी माहेश्वरी की उनके कार्यालय में हत्या, तेलंगाना के पेड्डापल्ली में हाईकोर्ट के वकील दंपती गट्टू वामनराव और गट्टू नागमणि की हत्या, जैसे कई उदाहरण हैं।

मध्यप्रदेश के जबलपुर के वकील अक्षत सहगल पर हमला, मुंबई में एडवोकेट सत्य देव जोशी पर हमला आदि ऐसे कुछ उदाहरण हैं जो बताते हैं कि भारत में वकील कितने सुरक्षित हैं। ये अपराध पुलिस विभाग और प्रशासन की ओर से लापरवाह और ढीले रवैये को दर्शाते हैं। ऐसी घटनाओं के विरोध में देशभर की कई अदालतों के अधिवक्ता हड़ताल और न्यायिक कार्य का अनिश्चितकालीन बहिष्कार करने का आह्वान कर रहे हैं। वे वकीलों और उनके परिवारों की सुरक्षा के लिए एक कानून की भी मांग कर रहे हैं लेकिन उनकी प्रार्थना को अभी तक अनसुना किया गया है।

वकीलों की स्वतंत्रता, विधि शासन के लिए एक अनिवार्य शर्त

वकील कानून के शासन को बनाए रखने और न्याय सुनिश्चित करने में भूमिका निभाते हैं, वे आज हिंसा, उत्पीड़न और डराने-धमकाने का निशाना बन गए हैं। वकील न्याय के प्रशासन, मानवाधिकारों की रक्षा, लोकतंत्र और कानून के शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बहरहाल, यह स्पष्ट है कि वकीलों पर व्यक्तिगत और संस्थागत रूप से हमले लगातार हो रहे हैं,जिससे स्वतंत्र रूप से और सुरक्षित रूप से कानून का अभ्यास करने की उनकी क्षमता खतरे में पड़ गई है।

वकीलों की स्वतंत्रता पर हमले पूरे कानूनी पेशे पर एक भयावह प्रभाव डाल सकते हैं। “अदालत में वकीलों की निडरता,स्वतंत्रता,शुचिता,ईमानदारी,समानता ऐसे गुण हैं जिनकी बलि नहीं दी जा सकती” (आर. मुथुकृष्णन बनाम रजिस्ट्रार जनरल ऑफ द हाईकोर्ट ऑफ ज्यूडिकेचर एट मद्रास एआईआर 2019 एससी 849) ।

मौलिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के प्रति सम्मान बनाए रखने के लिए कानूनी पेशे की स्वतंत्रता आवश्यक है। यदि अधिवक्ता स्वतंत्र, निष्पक्ष, वस्तुनिष्ठ और अखंडता, स्वायत्तता और तटस्थता के साथ कार्य करने में असमर्थ होता है तो न तो विधि शासन कायम रह सकता और न ही न्याय ठीक से प्रशासित हो सकता है।

कानूनी पेशे की स्वतंत्रता वकीलों को मुवक्किल और समाज के सर्वोत्तम हित में बिना किसी मनमाना मुकदमा चलाए जाने के डर से और किसी भी अनुचित प्रभाव से मुक्त होने की अनुमति देती है। नतीजतन, यह आवश्यक है कि वकील राज्य,समाज,या किसी भी अन्य सरकारी या गैर-सरकारी हस्तक्षेप के बिना अपने कार्यों को पूरा करने में सक्षम हों।

इस तरह की हिंसा और डराने-धमकाने के मामलों की जांच करने और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में विफलता न केवल इस तरह के व्यवहार के लिए दण्ड मुक्ति दिलाती है,बल्कि भय के माहौल में भी योगदान देती है,जो स्वयं अधिवक्ताओं को कानूनी सेवाएं प्रदान करने से भयभीत या हतोत्साहित महसूस करवा सकती है।

वकीलों के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक

वकील क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों में उल्लिखित कई अधिकारों और सुरक्षा उपायों के हकदार हैं। इनमें कानून के समक्ष समानता,जीवन का अधिकार,स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा के साथ-साथ अत्याचार और अन्य प्रकार के क्रूर,या अपमानजनक उपचार या दंड (अन्य दुर्व्यवहार)के निषेध से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।

बेसिक प्रिंसिपल ऑन द रोल ऑफ लॉयर्स, 1990 (दी बेसिक प्रिंसिपल्स एवं विएना डिक्लेरेशन ऑन ह्यूमन राइट्स, 1993 द्वारा कानूनी पेशे की स्वतंत्रता को एक लोकतांत्रिक प्रणाली की विशिष्ट विशेषता के रूप में दृढ़ता से स्थापित किया गया है जिसको संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) और यूनाइटेड नेशन जनरल असेंबली में कई राज्य संकल्प द्वारा समर्थन प्राप्त हुआ।

यूनाइटेड नेशंस बेसिक प्रिंसिपल्स ऑनद रोल ऑफ लॉयर्स(यूएनबेसिकप्रिंसिपल्स)के अनुसार, कानूनी पेशे की स्वतंत्रता लोकतांत्रिक समाज में कानून के शासन को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार है। नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध के अनुसार,कानूनी पेशेवरों को उत्पीडित करने से मुवक्किल के अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है, विशेष रूप से नियत प्रक्रिया के उनके अधिकार का भी उल्लंघन हो सकता है (अनुच्छेद 14)।

अपराध की रोकथाम और अपराधियों के उपचार पर आठवीं संयुक्त राष्ट्र कांग्रेस, क्यूबा के अनुच्छेद 16 के अनुसार “सरकारें यह सुनिश्चित करेंगी कि वकील (ए)अपने सभी पेशेवर कार्यों को बिना किसी धमकी, बाधा, उत्पीड़न या अनुचित हस्तक्षेप के करने में सक्षम हों; (बी)अपने देश और विदेश दोनों में स्वतंत्र रूप से यात्रा करने और अपने मुवक्किल के साथ परामर्श करने में सक्षम हों; और (सी)मान्यता प्राप्त पेशेवर कर्तव्यों,मानकों और नैतिकता के अनुसार की गई किसी भी कार्रवाई के लिए अभियोजन या प्रशासनिक,आर्थिक या अन्य प्रतिबंधों का सामना नहीं करना पड़ेगा या उन्हें धमकी नहीं दी जाएगी।

मानवाधिकार रक्षकों पर संयुक्त राष्ट्र उद्घोषणा (साधारण सभा संकल्प 53/144 दिनांक 9 दिसंबर 1998 के अनुच्छेद 12 के अनुसार राज्य ऐसे समस्त आवश्यक कदम उठाएगा जो सक्षम अधिकारिकताओ द्वारा सभी को उनके वर्तमान घोषणा पत्र से संबंधित विधिक अधिकारों के क्रियान्वयन के फलस्वरूप पैदा हुई हिंसा, खतरे, प्रतिकार, प्रतिकूल, भेदभाव, दबाव अथवा अन्य किसी मनमानी कार्यवाही के विरुद्ध संरक्षण को सुनिश्चित करें।

कानून के शासन को बनाए रखने और संकट के समय में न्यायाधीशों और वकीलों की भूमिका पर आईसीजे जिनेवा घोषणा के सिद्धांत 7, 2011 में कहा गया है।" सरकार की सभी शाखाओं को वकीलों को हिंसा, धमकियों, प्रतिशोध, वास्तविक या कानूनी भेदभाव, दबाव और अन्य मनमाने कार्य से बचाने के लिए उपाय करना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र ड्रग्ज़ और अपराध कार्यालय(यूएनओडीसी)द्वारा प्रकाशित आपराधिक न्याय प्रणाली में कानूनी सहायता तक पहुंच पर संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांत और दिशा निर्देश के सिद्धांत 12 भी कानूनी सहायता प्रदाताओं की स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिए राज्य पर दायित्व लगाता है। 2030 सतत विकास एजेंडा के सतत विकास लक्ष्य 16 को प्राप्त करने के लिए,अधिवक्ताओं की स्वतंत्रता आवश्यक घटक हैं। एसे कई अंतरराष्ट्रीय मानक और नियम यह स्पष्ट करते हैं कि राज्यों की वकीलों और कानूनी पेशे की रक्षा करने की जिम्मेदारी है।

एक नए कानून की अनिवार्यता

इन प्रस्तावों के अनुसरण में बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने 2 जुलाई 2021 को अधिवक्ता संरक्षण विधेयक,2021 का ड्राफ्ट तैयार किया। इस ड्राफ्ट विधेयक का प्रमुख लक्ष्य वकीलों और उनके परिवारों को मारपीट, अपहरण, अवैध कारावास जैसे अपराधों के खिलाफ सुरक्षा सुनिश्चित करना है। अधिवक्ता(संरक्षण)विधेयक,2021 में अधिवक्ता सुरक्षा और वकीलों के लिए वित्तीय सहायता के प्रावधान शामिल हैं। इसके अलावा, यदि कोई उनके अधिकारों का उल्लंघन करने की कोशिश करता है तो यह वकीलों को मुआवजा भी देने का उल्लेख करता है।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, सीनियर एडवोकेट मनन कुमार मिश्रा ने 2 जुलाई 2021 को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि "वकील पुलिस और न्याय पालिका के बीच कड़ी के रूप में कार्य करते हैं और जब कि पुलिस और न्यायपालिका के पास सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और विशेषाधिकार हैं, वकील जो कानून की अदालत में बहस करते हैं, उनके पास अभी भी आवश्यक सुरक्षा उपलब्ध नहीं हैं। तब से, बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कई राज्यों से वकीलों की सुरक्षा के संबंध में एक कानून बनाने का अनुरोध किया है, लेकिन उनके अनुरोध और हजारों वकीलों की मांगों को अनसुना कर दिया गया है।

बीसीआई ने पहले ही 2021 में अधिवक्ता संरक्षण कानून का एक ड्राफ्ट कानून केंद्रीय कानून मंत्रालय को सौंप दिया था, लेकिन अब तक कोई केंद्रीय कानून नहीं है। जोधपुर में एक वकील की हत्या के विरोध में राज्य के वकीलों द्वारा बहिष्कार के बीच बीसीआई ने राजस्थान सरकार से वकीलों और उनके परिवारों की सुरक्षा पर एक कानून बनाने में तेजी लाने का अनुरोध किया।

राजस्थान सरकार ने प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की, राजस्थान एडवोकेट्स प्रोटेक्शन बिल, 2023 पारित किया और अब वकीलों को सुरक्षा प्रदान करने वाले कानून बनाने वाला देश का पहला राज्य है। अन्य राज्य निश्चित रूप से इस कानून को लागू करने के राजस्थान के अनुभव से सीख सकते हैं और वकीलों के विरोध की प्रतीक्षा किए बिना अपने अधिकार क्षेत्र में वकीलों की सुरक्षा के लिए इसी तरह के कानून को लागू कर सकते हैं।

वकीलों की सुरक्षा तभी सुनिश्चित की जा सकती है जब केंद्र सरकार और अन्य राज्य सरकारें भी इसी तरह का कानून बनाएं। न्यायप्रशासन और कानून के शासन को बनाए रखने का अंतिम लक्ष्य ऐसे कानून द्वारा प्राप्त किया जा सकता है, जो इस बात की गारंटी दे सके कि वकील अपने पेशेवर कर्तव्यों को डराने-धमकाने वाले बाहरी प्रभाव से मुक्त रहकर कर सकें ।

लेखक विधि के छात्र हैं और लेख में विचार उनके निजी विचार हैं।

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