पिछले लेख में हमनेसूचना के अधिकार के इतिहास, अधिकार का लोकतंत्र से क्या सम्बन्ध है और सूचना पाने के लिए कैसे आवेदन करें - ये सब जाना। आज हम अधिनयम की धारा -४ और कौन- कौन सी सूचनाएँ नहीं दी जाती है- ये जानेगें.
लोक प्राधिकरण के कर्तव्य -
२००५ के अधिनियम तहत नागरिकों के अधिकारों के साथ- साथ लोक प्राधिकरणों के कुछ कर्तव्य भी है, जो इस प्रकार से है-
स्व- प्रेरणा से सूचना देने का कर्तव्य-
१ विभाग के विभिन्न अधिकारियों की शक्तियाँ, उनके मासिक पारिश्रमिक और उनके कर्तव्य.
२. लोक सूचना अधिकारी का नाम, पद आदि.
३. विभाग की सभी योजनाओं पर किये गए खर्चे, प्रस्तावित खर्चे , बजट सम्बन्धी अन्य जानकारियाँ।
४ आयोग की किसी योजना के लिए पात्रता और लाभार्थियों के सम्बन्ध में जानकारी. आदि.
लोक प्राधिकरणों का कर्तव्य है कि वे ये जानकारियां अधिक से अधिक संख्या में सरल भाषा में जनता तक विभिन्न माध्यमों द्वारा पहुचायें.
आज कल कई सरकारी विभाग धारा -४ सम्बंधित सूचनाएँ अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करवाते है. इसी धारा के तहत विभाग अपने नोटिस बोर्डों पर कई बार सूचनाऍ चस्पा करते है. जैसे राशन की दुकानों पर बाहर बोर्ड पर उपलब्ध स्टॉक की जानकारी देना इस धारा के तहत जरुरी है.
अन्य कर्तव्य-
साथ ही यह भी विभागों का कर्तव्य है कि रेकॉर्डों को इस तरह से सुरक्षित और सुनियोजित रूप में रखा जाए ताकि त्वरित गति से सूचनाएँ उपलब्ध करवाई जा सके.
और जैसा पिछले लेख में बताया गया था लोक प्राधिकरणों का कर्तव्य यह भी है कि वे लोक सूचना अधिकारी घोषित करें.
कौनसी सूचनाएँ अधिनियम के तहत नहीं दी जा सकती?
अधिनियम की धारा ८ के तहत देश हित की दृष्टि से कुछ सूचनाएँ सूचना के अधिकार के तहत नहीं दी जा सकती जैसे-
1. देश की अखण्डता, सम्प्रभुता, एकता, सुरक्षा व्यवस्था, रणनैतिक हित, आर्थिक हित या विदेशी संबंधों को नुक्सान पहुंचाने वाली सूचनाएँ ऐसी सूचनाएँ जो अपराध करने के लिए इनसाइट करें.
2. वो सूचनाएँ जिन्हें किसी न्यायलय द्वारा प्रकाशन से रोका गया हो या जिनसे कोर्ट की अवमानना होती हो.
3. ऐसी सूचना जिससे संसद के विशेषाधिकार का हनन होता हो. (जैसे संसदीय समितियों से सम्बंधित कोई सूचना)
4. Trade secret, बौद्धिक सम्पदा से जुड़े मामले. हालाँकि लोक हित में सूचना में जारी की जा सकती है. जैसे सूचना के अधिकार के तहत आप किसी कोल्ड ड्रिंक कंपनी जैसे कोका कोला , पेप्सी आदि उनके पेय पदार्थ बनाने के विधि नहीं पूछ सकते.
5. वो सूचनाएँ जो किसी विदेशी सरकार से विश्वासगत रूप में मिली हो.
6. वो सूचनाएँ जिससे किसी व्यक्ति की शारीरिक सुरक्षा या जीवन को खतरा हो.
7. वह सूचना जिससे किसी अपराध की तफ्तीश में अड़चन पड़े. जैसे पुलिस से सूचना के अधिकार के तहत यह माँग नहीं की जा कि वे किसी आपराधिक मामले की तफ्तीश के लिए क्या प्रक्रिया अपना रहे है, साक्ष्यों के सन्दर्भ में उन्होंने क्या निर्णय लिया है आदि.
8. वो सूचनाएं जिससे किसी तरह का लोक हित न जुड़ा हो बल्कि व्यक्ति की निजता / प्राइवेसी में दखलंदाज़ी हो.
उपर्युक्त लिस्ट में गौर करने वाली बात यह है कि कुछ मामलों में सूचनाएँ नहीं ही दी जा सकती, जबकि कुछ मामलों में लोक हित में संरक्षित सूचनाएँ भी दी जा सकती है.
संस्थाएँ जिन पर यह अधिनियम नहीं लागु होता-
अधिनियम की धारा २४ के तहत कुछ संस्थाओं पर यह अधिनियम लागू नहीं अत: उनसे सूचना के अधिकार के तहत जानकारी नहीं माँगी जा सकती। अधिनियम की दूसरी अनुसूची में ऐसी संस्थाओं का नाम इस प्रकार से दिया गया है-
- IB (Intelligence Bureau)
- RAW (Research and Analysis Wing)
- Directorate of Revenue Intelligence.
- Central Economic Intelligence Bureau
- Directorate of Enforcement (ED)
- Narcotics Control Bureau.
- Aviation Research Centre.
- Special Prontier Force.
- Border Security Force (BSF)
- Central Reserve Police Force (CRPF)
- Indo-Tibetan Border Police.
- Central Industrial Security Force.
- National Security Guards.
- Assam Rifles.
- Special Service Bureau
- Special Branch (CID), Andaman and Nicobar
- The Crime Branch-C.I.D.-CB, Dadra and Nagar Haveli.
- Special Branch, Lakshadweep Police.
लिस्ट से ये साफ़ होता है कि मुख्त: राष्ट्र सुरक्षा से सम्बंधित संस्थाएँ सूचना के अधिकार दे दायरे में पूर्णरूपेण नहीं आती. हालाँकि इन संस्थाओं से सम्बंधित भी वो सूचनाएँ जो मानवाधिकार हनन या भ्रष्टाचार के मामलों से जुडी हो , माँगी जा सकती ह. जैसे- सेना एक विशेष तरह के हमले के दौरान कौनसी रणनीति उपयोग करेगी , कौनसे हथियारों का उपयोग करेगी - ये जानकारी नहीं माँगी जा सकती किन्तु यदि हथियार खरीदने में किसी तरह के भ्रष्टाचार से सम्बंधित सूचना हो तो माँगी जा सकती है.
थर्ड पार्टी से सम्बंधित सूचनाएँ-
अगर माँगी गयी सूचना किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा दी गयी है या उनसे जुडी कोई गोपनीय सूचना है तो सूचना अधिकारी का यह कर्तव्य है कि उस थर्ड पार्टी को सूचना अधिकारी के समक्ष अपना पक्ष का अवसर दिया जाय. ऐसे मामलों में सूचना अधिकारी को आवेदन मिलने के ५ में थर्ड पार्टी को नोटिस देना होता है. इस नोटिस का जवाब उस पार्टी को १० दिन में देना होता है. पर लोक हित में थर्ड पार्टी सूचनाएं भी दी जा सकती है. यह फैसला लोक सूचना अधिकारी करेगा. पर निजता के अधिकार और सूचना के अधिकार में संतुलन बना पाना एक मुश्किल कार्य है. इस सम्बन्ध में २०१२ का मामला दिलचस्प है जहाँ सोनिया गाँधी ने अपने इनकम टैक्स रिटर्न यह कहते हो सूचना के अधिकार से मना कर दिए थे कि इनकम टैक्स रिटर्न की ये सूचना उनके निजता का अधिकार का हनन है.
इस लेख में हमने मुख्यत: यह जाना कि कौन-कौन सी सूचनाएँ २००५ के अधिनियम तहत मना की जा सकती है. अगले लेख में हम यह जानेंगे कि ३० दिन में सूचना न मिलने पर आगे क्या कार्यवाही करे.
(सुरभि राष्ट्रिय विधि विश्विद्यालय, दिल्ली में अध्ययनरत है.)