भारतीय संविधान की उद्देशिका (Preamble) के तहत भारत के समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय की बात की गयी है। समाज के सभी वर्गों को भारतीय न्यायिक प्रणाली में न्याय पाने का समुचित एवं सामान अवसरमिले, इसलिए भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39 A भारत देश के ग़रीब और पिछड़े वर्ग के लोगों को निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करता है। निःशुल्क क़ानूनी सहायता का मतलब है किअभियुक्त या प्रार्थी को वक़ील की सेवाएं मुहैया करवाना।
सीधे शब्दों में कहा जाये तो अपने देश में ज़्यादातर लोग जो जेलों में बंद हैं और जिनके ऊपर कोर्ट की कार्यवाही चल रही है, वह ग़रीब,अशिक्षित एवं अति पिछड़े वर्ग के लोग हैं। जिनको अपने अधिकारों के बारे में नहीं पता है। जिसकी वजह से वह जेल की यातनाओं का सामना कर रहे हैं। ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि उनको उनके अधिकारों के बारे में न ही सिर्फ बताया जाये बल्कि क़ानूनी सहायता भी प्रदान की जाये।
इन्हीं बातों पर जोर देते हुये माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने "कार्ति II बनाम स्टेटऑफ़ बिहार" में यह निर्णय दिया कि- "न्यायाधीश का यह संवैधानिक दायित्व है कि जब भी किसी असक्षम एवं आर्थिक रूप से असहाय अभियुक्त को उनके सामने प्रस्तुत किया जाये, तब वह सर्वप्रथम यह सुनिश्चित कर लें कि अभियुक्त को निःशुल्क क़ानूनी सहायता वकील के माध्यम से मिल रही है कि नहीं,अगर नहीं मिल रही है तो वक़ील का प्रबंध किया जाये, जिसका ख़र्च राज्य के कोष से वहन किया जायेगा।"
तो चलिए इस लेख के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं की निःशुल्क क़ानूनी सहायता देने के लिए अभी तक सरकार द्वारा क्या व्यवस्था की गयी है,और वह कौन लोग हैं जो इसके पात्र हैं, और जो इसके पात्र नहीं हैं, साथ ही किन दस्तावेजों की जरूरत पड़ेगी, औरआवेदन करने के लिए कहाँ पर जाना पड़ेगा। जिससे की आपको एवं आपके जानने वालों को निःशुक्ल क़ानूनी सहायता आसानी से मिल सके।
संस्थागत व्यवस्था क्या है ?
सन 1987 में भारतीय संसद ने "विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987" को पारित किया जो कि 9 नवंबर 1995 को पूरे देश में लागू किया गया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य है कि सभी को न्याय पाने का समान अवसर मिले। समाज का कोई व्यक्ति न्याय पाने से इसलिए वंचित न रह जाये कि वह ग़रीब, दिव्यांग, पिछड़े या फिर अति पिछड़े वर्ग से है। इसलिए इस अधिनियम के माध्यम से क्रमशः राष्ट्रीय, राज्य एवं जिला स्तर पर "विधिक सेवा प्राधिकरण" आपको निःशुल्क क़ानूनी सहायता प्रदान करने के लिए बनाये गए हैं-
- अगर वादी या प्रतिवादी का मुक़दमा माननीय सर्वोच्च न्यायलय में चल रहा है, तब वह "राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण" में, या फ़िर सर्वोच्च न्यायलय की "विधिक सेवा समिति" में जाकर क़ानूनी सहायता प्राप्त कर सकता है। आपके लिए दोनों विकल्प खुले हुए हैं।
- अब अगर आपका मामला किसी राज्य के माननीय उच्च न्यायालय में चल रहा है, तब आप अगर चाहें तो उच्च न्यायालय द्वारा गठित "विधिक सेवा समिति" या फिर उसी प्रदेश में स्थित "विधिक सेवा प्राधिकरण" से क़ानूनी सहायता ले सकते हैं। इसके बाद आपके मामले से सम्बंधित वकील को आपकी विधिक सेवाओं के लिए नियुक्त कर दिया जायेगा।
- जिन लोगों का मुक़दमा माननीय जिला न्यायालय में चल रहा है, वह लोग ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण में जा सकते हैं। प्रायः यह प्राधिकरण जिला न्यायालय में ही बनाया जाता है।
- आपको आपके राजस्व न्यायालय में चलने वाले मामलों में भी क़ानूनी सहायता देने के लिए तहसील स्तर पर "विधिक सेवा प्राधिकरण" शुरू किये गये हैं।
- क़ानून की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों में भी इस बात को पहुँचाने के लिए देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों व संस्थानों में "विधिक सेवा केंद्र" खोले गये हैं। आप यहाँ पर भी जा के अपने मामले से सम्बंधित विधिक परामर्श ले सकते हैं। प्राधिकरणों की ही तरह इन "विधिक सेवा केंद्रों" का भी अपना एक वकीलों का समूह होता है, जिससे की आपको वकील आसानी से मुहैया कराया जा सके।
कौन हैं निःशुल्क क़ानूनी सहायता प्राप्त करने के हक़दार?
1987 के अधिनियम की धारा 12 अनुसार निम्नलिखित लोग क़ानूनी सहायता पाने के हक़दार हैं-
- SC / ST
- महिलायें अथवा बच्चे
- मानव तस्करी से पीड़ित
- सामूहिक आपदा जैसे कि बाढ़, सूखा से परेशान व्यक्ति
- जातीय हिंसा से पीड़ित व्यक्ति
- वर्ग विशेष पर अत्याचार (पीड़ित व्यक्ति अल्प-संख्यक समुदाय से है.)
- दिव्यांग (PWD)
- औद्यौगिक कामगार
- ऐसे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय 1,00,000 /- रुपये से काम है।
निःशुल्क क़ानूनी सहायता कैसे प्राप्त करें?
कोई भी व्यक्ति जो की उपरोक्त में से एक है निःशुक्ल क़ानूनी सहायता पाने के लिए अपने नजदीकी प्राधिकरण, समिति और विधिक सेवा केंद्र में लिखित प्रार्थना पत्र या फिर प्राधिकरण द्वारा जारी किये गए फॉर्म से आवेदन कर सकता है। अगर व्यक्ति लिखने में सक्षम नहीं है, तो वह मौख़िक माध्यम से अपना आवेदन कर सकता है, प्राधिकरण में मौज़ूद अधिकारी उस व्यक्ति की बातों को आवेदन पत्र में लिखेगा। शीला बारसे बनाम स्टेट ऑफ़ महाराष्ट्र में माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने कहा है की व्यक्ति की गिरफ़्तारी के तुरंत बाद पुलिस का यह अनिवार्य कर्त्तव्य है कि नजदीकी विधिक सहायता केंद्र में इसकी इत्तला की जाये जिससे की समय रहते अभियुक्त की क़ानूनी सहायता की जा सके।
इसके अलावा आप "राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण" जिसे हम NALSA भी बुलाते हैं की वेबसाइट पर जाके देश के किसी भी "विधिक सेवा संस्थान व प्राधिकरण" से क़ानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए "ऑनलाइन एप्लीकेशन" फॉर्म ज़रूरी दस्तावेज़ों को अपलोड करके भर सकते हैं।
- क्या हैं ज़रूरी दस्तावेज़?
अगर हम जरुरी दस्तावेजों की बात करें तो मुख्य रूप से आपके पास एक एफिडेविट होना चाहिए जिसके साथ में आपका वार्षिक आय प्रमाण पत्र, पहचान पत्र हो। बाकी दस्तावेज़ आपके केस पर निर्भर करेंगे। ध्यान रहे यह कागज़ात विधिक सेवा केंद्र या प्राधिकरण में भी ले जाना और दिखाना ज़रूरी है।
- किस प्रकार की क़ानूनी सहायता दी जाएगी?
- आपके लिए एक वक़ील नियुक्त किया जायेगा।
- कोर्ट की कार्यवाही में जो भी ख़र्च होगा वह दिया जायेगा, जैसे की कोर्ट फीस आदि।
- कोर्ट के आदेशों की प्रति एवं अन्य दस्तावेज जो भी न्यायालय की कार्यवाही से जुड़े होंगे आपको उपलब्ध कराये जायेंगे।
- आपके मामले से सम्बन्धी कागजों को तैयार व प्रिंट कराया जायेगा।
- आपके लिए आपकी भाषा में कोर्ट के आदेशों को अनुवादित भी किया जायेगा आदि।
कैसे मामलों में और किन लोगों को निःशुल्क क़ानूनी सहायता नहीं दी जाएगी?
निम्नलिखित मामलों में क़ानूनी सहायता नहीं मिलेगी;
- मानहानि, द्वेषपूर्ण अभियोजन, अदालत की अवमानना, झूठे साक्ष्य इत्यादि पर आधारित मामले।
- किसी भी चुनाव से सम्बंधित कोई कार्यवाही।
- ऐसे मामले जहाँ पर दण्ड की आर्थिक राशि 50 /- रुपये से कम है।
- ऐसे अपराध के मामले जो कि आर्थिक और सामाजिक क़ानून के ख़िलाफ़ हैं। जैसे की ATM से पैसे चोरी करना, राज्य सम्पदा को नुकसान पहुँचना इत्यादि।
- आवेदक व्यक्ति मामले से सम्बंधित ही नहीं हैं।
निम्नलिखित श्रेणी में आने वाले व्यक्ति को क़ानूनी सहायता नहीं दी जाएगी, और अगर दी जा रही है तो वापस ले ली जाएगी;
- ऐसा व्यक्ति जो कि खुद से सक्षम है और पात्रता मानक को पूरा नहीं करता।
- ऐसा व्यक्ति जिसके आवेदन पत्र में ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जिससे कि उसको सहायता दी जाये।
- ऐसा व्यक्ति जो कि गलत तरीके से जैसे दस्तावेज़ में धोखाधड़ी करके निःशुल्क सहायता प्राप्त करना चाहता हो।
- आवेदक द्वारा अधिवक्ता के साथ लापरवाही करना व ग़लत तरीके से पेश आना। आवेदक द्वारा दूसरे वक़ील से मदद लेना।
- आवेदक की मृत्यु हो जाना। लेकिन अगर मामला सिविल है तब उसके उत्तराधिकारी को क़ानूनी सहायता दी जाएगी।
- ऐसी कार्यवाही जो कि क़ानून व क़ानूनी प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल सिद्ध हो।
नोट: यह लेख "निःशुल्क क़ानूनी सहायता की जागरूकता" शृंखला का भाग 1 है। भाग 2 और 3 क्रमशः "लोक अदालत" और "पारा-लीगल वालंटियर" विषय पर प्रस्तुत किये जायेंगे।
-लेखक शोभित अवस्थी और शुभम वर्मा, सदस्य एवं छात्र, विधिक सेवा केंद्र, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, लखनऊ।