मुस्लिम पिता द्वारा बेटे को दी गई संपत्ति के उपहार (हिबा) में वास्तविक कब्जा देना जरूरी नहीं, पिता उसी संपत्ति में रह सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

Update: 2025-04-25 06:06 GMT
मुस्लिम पिता द्वारा बेटे को दी गई संपत्ति के उपहार (हिबा) में वास्तविक कब्जा देना जरूरी नहीं, पिता उसी संपत्ति में रह सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने हाल ही में कहा कि एक मुस्लिम पिता जो इस्लामी कानून के तहत हिबा के रूप में अपने बेटे को संपत्ति उपहार में देना है, वह उस संपत्ति में अपने बेटे के साथ रह सकता है। उसे वह निवास स्थान छोड़ने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि कानून वास्तविक और भौतिक कब्जे की डिलीवरी को अनिवार्य नहीं मानता, बल्कि केवल संरचनात्मक कब्जे (Constructive Possession) की आवश्यकता होती है।

जस्टिस रोहित जोशी की एकल बेंच ने मोहम्मद शेख द्वारा अपने बेटे रहमान शेख को 11 जून 2005 को हिबा के रूप में संपत्ति ट्रांसफर करने को चुनौती देने वाली द्वितीय अपील को खारिज कर दिया।

मौखिक गिफ्ट डीड को 12 जून 2005 को लिखित में लाया गया। इस प्रकार संपत्ति रहमान को उनके पिता द्वारा उपहार स्वरूप दे दी गई थी।

हालांकि मोहम्मद के दूसरे बेटे इब्राहिम, उसकी पत्नी रशीदा बेगम और उसके चार बेटों ने इस हिबा पर यह कहते हुए आपत्ति की कि मोहम्मद ने रहमान को उक्त संपत्ति आवासीय मकान का वास्तविक और भौतिक कब्जा नहीं दिया, बल्कि वह खुद और अन्य परिवारजन (इब्राहिम और उसका परिवार) उसी मकान में रहना जारी रखे।

इस तर्क को खारिज करते हुए जस्टिस जोशी ने कहा कि हिबा के तहत दाता (मोहम्मद) द्वारा प्राप्तकर्ता (रहमान) को कब्जा देने के लिए वास्तविक भौतिक कब्जा देना आवश्यक नहीं है। यह संरचनात्मक कब्जा (Constructive Possession) के माध्यम से भी हो सकता है।

जस्टिस ने 16 अप्रैल को सुनाए गए निर्णय में कहा,

"वर्तमान मामले के तथ्यों के अनुसार जो संपत्ति हिबा के माध्यम से दी गई है, वह आवासीय मकान है। उस समय दाता यानी पिता स्वयं उस घर में अपने बेटे वादी (रहमान) के साथ रह रहे थे। असली भौतिक कब्जा उन सभी पारिवारिक सदस्यों के पास है, जो संपत्ति में रह रहे हैं। हालांकि, हिबा के अनुसार दाता ने प्राप्तकर्ता को संरचनात्मक कब्जा सौंपा है। मेरे विचार में यह कब्जा देने की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त है ताकि हिबा का लेन-देन पूर्ण और वैध माना जा सके। जब दाता और प्राप्तकर्ता, जो कि पिता और पुत्र हैं, एक ही घर में रह रहे हों तो यह अपेक्षित नहीं है कि हिबा द्वारा संपत्ति उपहार में देने के बाद पिता उस घर को छोड़ देगा।

अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए जज ने यह भी उल्लेख किया कि भले ही मोहम्मद रहमान के साथ उसी घर में रहते रहे लेकिन यह रिकार्ड पर स्थापित हो गया कि रहमान के नाम पर उपहार के आधार पर नागपुर नगर निगम (NMC) और महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) के रिकॉर्ड में नामांतरण के लिए आवेदन किए गए थे।

पीठ ने यह भी ध्यान में रखा कि मोहम्मद स्वयं रहमान द्वारा दायर मूल मुकदमे में एक पक्षकार है।उन्होंने भी एक लिखित उत्तर दायर किया था, जिसमें उन्होंने अपने बेटे रहमान को दी गई हिबा को स्वीकार किया था।

जस्टिस ने कहा,

"सुप्रीम कोर्ट और प्रिवी काउंसिल के फैसलों के आलोक में इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि दाता द्वारा प्राप्तकर्ता को संरचनात्मक कब्जा सौंपा गया था। इस प्रकार हिबा / उपहार का लेन-देन वैध और कानूनी रूप से पूरा हुआ।”

इन टिप्पणियों के साथ अदालत ने द्वितीय अपीलों को खारिज कर दिया।

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