राज्यपाल के 7 MLC को राज्य विधान परिषद में नियुक्त करने के फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती
बॉम्बे हाईकोर्ट में एक नई जनहित याचिका (PIL) दायर की गई, जिसमें महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा 14 अक्टूबर 2024 को जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई, जिसमें 7 MLC (विधान परिषद के सदस्य) को राज्य विधान परिषद में नामित किया गया।
यह जनहित याचिका शिवसेना (UBT) के नेता सुनील मोदी ने दायर की। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि राज्यपाल द्वारा 7 एमएलसी को नामित करने का फैसला कानून में द्वेष है।
गौरतलब है कि जुलाई 2023 में मोदी ने 12 MLC नामांकन वापस लेने के राज्यपाल के फैसले को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की थी। 07 अक्टूबर 2024 को हाईकोर्ट ने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि जब पिछली याचिका में इस मुद्दे को निर्णय के लिए सुरक्षित रखा गया तो राज्यपाल की कार्रवाई कानून में द्वेषपूर्ण थी ताकि पिछली याचिका में निर्णय को रोका जा सके।
वकील ने आगे यह मुद्दा उठाया कि मंत्रिपरिषद ने संविधान के अनुच्छेद 163(1) के तहत सहायता और सलाह का प्रयोग करते हुए राज्यपाल के समक्ष यह मुद्दा रखा था, जिससे राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत निर्णय ले सकें। उन्होंने एसआर बोम्मई बनाम यूओआई मामले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि राज्यपाल के समक्ष रखा गया विषय न्यायिक पुनर्विचार के लिए खुला हो सकता है।
वकील ने यह भी सवाल किया कि क्या राज्यपाल को पता था कि यह मुद्दा हाईकोर्ट के समक्ष निर्णय के लिए सुरक्षित रखा गया।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जब संविधान के अनुच्छेद 171 के तहत MLC को नामित करने का विवेक राज्यपाल में निहित है तो राज्यपाल को मंत्रियों की सहायता और सलाह पर रबर स्टैंप की तरह काम नहीं करना चाहिए था खासकर जब मामला निर्णय के लिए सुरक्षित रखा गया।
चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस अमित बोरकर की खंडपीठ ने आज मामले की सुनवाई की। न्यायालय ने याचिकाकर्ता से याचिका में संशोधन करने को कहा ताकि मनोनीत MLC को याचिका में पक्षकार बनाया जा सके।
इसने याचिकाकर्ता को याचिका में संशोधन करने की स्वतंत्रता प्रदान की तथा मामले को 15 जनवरी 2025 को आगे की सुनवाई के लिए रख लिया।
केस टाइटल: सुनील मोदी बनाम अतिरिक्त मुख्य सचिव एवं प्रोटोकॉल अधिकारी सामान्य प्रशासन विभाग एवं अन्य (पीआईएल/142/2024)