बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई यूनिवर्सिटी में लॉ स्टूडेंट्स की अनुपस्थिति को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई पूरी की

बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार 24 अप्रैल को उन लॉ स्टूडेंट्स के खिलाफ अनिवार्य उपस्थिति नियमों को लागू कराने की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) को यह कहते हुए निपटा दिया कि याचिकाकर्ता ने ऐसे किसी कॉलेज का विवरण प्रस्तुत नहीं किया, जहां स्टूडेंट को कम उपस्थिति के बावजूद परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाती है।
चीफ जस्टिस अलोक अराधे और जस्टिस एम.एस. कर्णिक की खंडपीठ ने यह आदेश दिया।
याचिका मुंबई यूनिवर्सिटी की एक लॉ प्राध्यापक द्वारा दायर की गई थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया कि कई कॉलेजों में स्टूडेंट्स की उपस्थिति आवश्यक न्यूनतम सीमा से काफी कम होती है। कभी-कभी केवल 0% से 30% तक ही रह जाती है।
याचिका में बताया गया कि मुंबई यूनिवर्सिटी का अध्यादेश 6086 सभी कानून स्टूडेंट के लिए लेक्चर, प्रैक्टिकल और ट्यूटोरियल्स में न्यूनतम 75% उपस्थिति को अनिवार्य बनाता है।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि यूनिवर्सिटी से संबद्ध कई लॉ कॉलेज में इस नियम का पालन नहीं किया जाता। यह भी दावा किया गया कि कॉलेज स्टूडेंट से उपस्थिति के अनुपालन का शपथ-पत्र तो लेते हैं लेकिन अनुपालन न करने वालों के विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं करते, जिससे अनुपस्थिति की संस्कृति को बढ़ावा मिलता है।
याचिका में यह भी कहा गया कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के नियमों के अनुसार, सेशन के दौरान इंटर्नशिप करना प्रतिबंधित है। 70% उपस्थिति अनिवार्य है, जिससे स्टूडेंट सेमेस्टर की अंतिम परीक्षा में बैठ सके। लेकिन अक्सर इन नियमों की अनदेखी की जाती है।
हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता ने अपने कॉलेज के किसी भी स्टूडेंट का नाम नहीं बताया, जो बिना पर्याप्त उपस्थिति के परीक्षा में उपस्थित हुआ हो।
अदालत ने यह भी नोट किया कि उपस्थिति से संबंधित जानकारी RTI कानून के अंतर्गत प्राधिकरणों के समक्ष लंबित है। ऐसे में जब तक कॉलेजों या स्टूडेंट का विशेष विवरण नहीं दिया जाता तब तक इस याचिका को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
इसलिए अदालत ने याचिका को निपटा दिया लेकिन यह स्वतंत्रता दी कि याचिकाकर्ता यदि भविष्य में पूर्ण विवरण प्राप्त कर लें तो नई याचिका दायर कर सकती हैं।
केस टाइटल: शर्मिला घुगे बनाम मुंबई यूनिवर्सिटी (PIL No. 14 of 2024)