उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम के तहत प्रधानों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित करें: इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्देश

Update: 2024-10-29 06:46 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य के संबंधित विभाग को निर्देश दिया कि वह राज्य के प्रधानों को उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1947 के तहत उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूक करने के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू करे।

सार्वजनिक उद्देश्य के लिए आरक्षित भूमि पर पानी की टंकियों और आरसीसी केंद्रों के निर्माण को चुनौती देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई जनहित याचिकाएं दायर की गईं। यह तर्क दिया गया कि किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए आरक्षित भूमि का उपयोग असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता।

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या पानी की टंकी और आरसीसी केंद्रों का निर्माण व्यापक जनहित में किया जा रहा है। जवाब सकारात्मक था। आगे पूछा गया कि क्या उक्त निर्माण से भूमि की प्रकृति में परिवर्तन होगा। इस प्रश्न पर अपर एडवोकेट जनरल ने उत्तर दिया कि निर्माण केवल भूमि के छोटे से टुकड़े पर किया गया, जो उस भूमि के उपयोग में बाधा नहीं डालेगा, जिसके लिए यह मूल रूप से आरक्षित थी।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि कुछ निश्चित भूमि पर भूमिदारी अधिकार अर्जित नहीं किए जा सकते। इसके विपरीत राज्य के वकील ने तर्क दिया कि यह किसी व्यक्ति या पक्ष के पक्ष में भूमिदारी अधिकार के सृजन का मामला नहीं है बल्कि ऐसा मामला है, जिसमें सार्वजनिक उद्देश्य के लिए आरक्षित भूमि का बहुत छोटा हिस्सा जनता के हित में उपयोग किया जा रहा है।

जब याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रधानों द्वारा जनता के पत्रों का जवाब न देने का मुद्दा उठाया गया तो न्यायालय ने संबंधित प्रधानों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया। प्रधानों से बातचीत करने पर न्यायालय ने पाया कि उनमें से अधिकांश को उत्तर प्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1947 की धारा 15 के तहत अपने अधिकारों की जानकारी नहीं है।

न्यायालय ने माना कि सार्वजनिक उद्देश्य के लिए पानी की टंकियों के निर्माण से भूमि बेकार नहीं हो जाएगी। उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता की धारा 77 के तहत कोई भूमिधरी अधिकार नहीं बनाया जा रहा है।

जनहित याचिकाओं का निपटारा करते हुए जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने संबंधित विभाग को निर्देश दिया कि वह आज से तीन महीने की अवधि के भीतर प्रधानों के लिए कुछ ट्रेनिंग प्रोग्राम शुरू करे, या तो क्लस्टर या कमिश्नरेट के आधार पर, जिससे प्रधानों विशेष रूप से महिलाओं को उनके अधिकारों और कार्यों के बारे में जागरूक किया जा सके और प्रधानपति की अवधारणा को हतोत्साहित किया जा सके।

न्यायालय ने कहा कि भले ही सार्वजनिक उद्देश्य के लिए आरक्षित भूमि का एक छोटा हिस्सा किसी अन्य उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा रहा हो लेकिन गोवा सभा और राज्य के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मुकदमेबाजी से बचने के लिए बड़ी संख्या में ग्रामीणों से सहमति लेने के बाद ही ऐसा किया जा रहा है।

केस टाइटल: अंबिका यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

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