ट्रायल कोर्ट को चार्जशीट पर संज्ञान लिए जाने तक पीड़ितों के बयान की कॉपी किसी को भी जारी नहीं करनी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वे चार्जशीट/पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिए जाने तक धारा 164 CrPc (अब धारा 183 BNSS) के तहत दर्ज पीड़ितों के बयान की प्रमाणित कॉपी किसी भी व्यक्ति को जारी न करें।
जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि कई मामलों में अभियुक्तों ने प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR)को चुनौती देते हुए पीड़ितों के बयान दर्ज किए। यहां तक कि निचली अदालतें भी धारा 164 CrPC के तहत दर्ज बयानों की प्रमाणित प्रतियां जारी कर रही हैं जो कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है।
इस संबंध में पीठ ने कर्नाटक राज्य बनाम शिवन्ना @ तरकारी शिवन्ना 2014 और ए बनाम यूपी राज्य और अन्य (2020) के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का भी हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि आरोपी या किसी अन्य व्यक्ति को धारा 164 CrPc के तहत दर्ज बयानों की प्रति प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है जब तक कि संबंधित अदालत/मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 173 CrPc के तहत दायर आरोपपत्र/पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान नहीं लिया जाता है।
ए बनाम यूपी राज्य और अन्य (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि धारा 164 CrPc के तहत बयान दर्ज करने के तुरंत बाद इसकी कॉपी जांच अधिकारी को दी जानी चाहिए इस विशिष्ट निर्देश के साथ कि इस तरह के बयान की सामग्री किसी भी व्यक्ति को तब तक नहीं बताई जानी चाहिए, जब तक कि धारा 173 CrPc के तहत आरोपपत्र/पुलिस रिपोर्ट दायर न हो जाए।
इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वह अपने आदेश को चीफ जस्टिस के संज्ञान में लाएं, जिससे यदि उचित पाया जाए तो उत्तर प्रदेश राज्य के जिला न्यायालयों को सर्कुलर जारी किया जा सके।
महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य जांच अधिकारी जांच के दौरान धारा 164 CrPc के तहत दर्ज किए गए बयानों की प्रतियां किसी को भी उपलब्ध नहीं कराएंगे।
न्यायालय ने यह निर्देश व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर विचार करते हुए जारी किया, जिसमें उनके खिलाफ दर्ज अपहरण का मामला रद्द करने की मांग की गई। इसमें यह भी निर्देश मांगा गया कि आपराधिक मामले के संबंध में उसे गिरफ्तार न किया जाए।
यह देखते हुए कि पीड़िता/याचिकाकर्ता नंबर 1 के धारा 164 CrPc के तहत दर्ज किए गए बयान में पीड़िता ने अभियोजन पक्ष के बयान का समर्थन नहीं किया। स्पष्ट रूप से कहा कि वह याचिकाकर्ता नंबर 2 (आरोपी) के साथ स्वेच्छा से अपना घर छोड़कर गई, उन्होंने एक-दूसरे से विवाह भी किया। उनके बीच सहमति से शारीरिक संबंध भी थे न्यायालय ने आपराधिक कार्यवाही रद्द की क्योंकि न्यायालय का मानना था कि कथित अपराध नहीं बनता।
केस टाइटल - उजाला और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य