सामाजिक-आर्थिक स्थिति तय करती है नागरिकों का भाग्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार पीड़िताओं के FIR दर्ज कराने में आने वाली कठिनाइयों पर चिंता जताई
1996 के बलात्कार मामले में आरोपी की सजा बरकरार रखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उन सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की बलात्कार पीड़िताओं की न्याय तक पहुंच में आने वाली कठिनाइयों पर मार्मिक टिप्पणियां कीं, जो उन्हें FIR दर्ज कराने से लेकर मुकदमे तक झेलनी पड़ती हैं।
जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस संदीप जैन की खंडपीठ ने कहा,
“दुर्भाग्यपूर्ण है कि कभी-कभी सामाजिक और आर्थिक स्थिति नागरिकों की किस्मत तय करती है। 'आर' (पीडब्ल्यू-1) और 'एस' (पीडब्ल्यू-2) जैसी कमजोर स्थिति वाले व्यक्तियों को अपनी FIR दर्ज कराने के लिए कई प्रयास करने पड़े और वे इंतजार करने को मजबूर हुए।”
वहीं, घटना के समय पीड़िता के कपड़े सबूत के रूप में पेश न किए जाने पर बचाव पक्ष की दलील का जवाब देते हुए अदालत ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया।
कहा गया,
“यह स्वाभाविक है कि एक गरीब बलात्कार पीड़िता ने घटना के समय पहने कपड़े धो डाले होंगे। गरीब के लिए कपड़े महंगे होते हैं और उनके पास सबूत को सुरक्षित रखने की 'सुविधा' नहीं होती।”
अदालत ने स्वतंत्र गवाह न होने पर भी टिप्पणी की,
“आज की सभ्यता के मूल्य इतने मजबूत नहीं हैं कि अदालतें स्वतंत्र गवाहों से यह अपेक्षा कर सकें कि वे अपराधियों के दबाव में नहीं आएंगे। आमतौर पर लोग पीड़ित का साथ छोड़ देते हैं, चाहे डर के कारण हो या अपनी सुविधा और आराम के लिए।”
मामले में अभियोजन पक्ष का आरोप था कि 26 और 27 अक्टूबर, 1996 की रात आरोपी ने पीड़िता के घर में घुसकर उसके साथ बलात्कार किया। FIR 9 नवंबर को दर्ज हुई, जब 'R' (पीड़िता का पति) ने कई प्रयास किए, क्योंकि आरोपी प्रभावशाली और अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति था और 'R' दलित वर्ग का था।
मुकदमे में आरोपी को बलात्कार घर में अनधिकृत प्रवेश और SC/ST Act के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद और जुर्माने की सजा दी गई थी।
अपनी सजा को चुनौती देते हुए आरोपी ने देरी से दर्ज FIR और कथित कहानी को अविश्वसनीय बताया। राज्य पक्ष ने पीड़िता की गवाही को सुसंगत और भरोसेमंद बताया।
अदालत ने साक्ष्यों और परिस्थितियों के आधार पर बलात्कार सिद्ध पाया लेकिन SC/ST Act के तहत अपराध प्रमाणित न होने पर आरोपी को उस आरोप से संदेह का लाभ दिया। साथ ही आरोपी की उम्र (करीब 70 वर्ष) और पहले छह माह की सजा को देखते हुए सजा को 10 वर्ष की कठोर कारावास से घटाकर 7 वर्ष के साधारण कारावास में परिवर्तित किया।
केस टाइटल: राजू बनाम राज्य उत्तर प्रदेश