हाईकोर्ट ने केवल इलाहाबाद और लखनऊ में हलफनामे की शपथ की वैधता पर उठाए सवाल; फोटो पहचान के शुल्क पर भी जताई आपत्ति

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उस प्रचलन पर सवाल उठाए, जिसके अनुसार रिट याचिकाओं, अपीलों, पुनर्विचार आदि की दाखिलगी के लिए हलफनामों की शपथ केवल इलाहाबाद या लखनऊ में ही ली जा सकती है और यह क्षेत्राधिकार पर निर्भर करता है।
कोर्ट ने यह भी प्रश्न उठाया कि इलाहाबाद और लखनऊ में स्थित फोटो एफिडेविट केंद्रों पर फोटो पहचान के लिए वसूले जा रहे शुल्क का क्या आधार है।
याचिकाकर्ता के वकील ने पूरक हलफनामा दाखिल करने के लिए स्थगन की मांग की थी, क्योंकि हलफनामा देने वाला व्यक्ति लखनऊ जाकर फोटो पहचान और शपथ ग्रहण नहीं कर सका था।
इस पर कोर्ट ने पूछा कि आखिर क्यों नोटरी अधिनियम 1952 के तहत उस स्थान पर जहां हलफ देने वाला व्यक्ति निवास करता है, किसी नोटरी के समक्ष शपथ नहीं दिलाई जा सकती।
याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को टिप्पणी (नोट) सौंपी, जिसमें बताया गया कि यद्यपि नोटरी अधिनियम 1952 के तहत ऐसी कोई रोक नहीं है लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट की रजिस्ट्री केवल उन्हीं हलफनामों को स्वीकार करती है, जो हाईकोर्ट नियमों के अध्याय IV के अंतर्गत नियुक्त ओथ कमिश्नर (शपथ आयुक्त) के समक्ष शपथबद्ध किए गए हों।
जस्टिस पंकज भाटिया ने टिप्पणी की,
"यह देखते हुए कि प्रतिदिन इस न्यायालय को उन असुविधाओं का सामना करना पड़ता है, जब वादकारियों को केवल इसलिए इलाहाबाद या लखनऊ आना पड़ता है कि वे फोटो केंद्र में जाकर हलफनामा शपथबद्ध कर सकें और तभी उस हलफनामे को नियमों के अनुसार विधिवत माना जाता है। यह न केवल नोटरी अधिनियम के प्रावधानों के विरुद्ध है बल्कि प्रथम दृष्टया इलाहाबाद हाईकोर्ट नियमावली के अध्याय IV, नियम 3 के तहत प्रदत्त शक्तियों से भी परे है।”
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पहचान की शक्ति कार्यालय ज्ञापन (Office Memorandum) द्वारा बार एसोसिएशन को सौंप दी गई। बार एसोसिएशन फोटो एफिडेविट के लिए 125/- का शुल्क वसूल सकता है, परंतु इसके अतिरिक्त 400/- की अतिरिक्त राशि वसूली जा रही है जो कि फोटो एफिडेविट केंद्रों के वकीलों को दी जा रही है।
जस्टिस भाटिया ने कहा,
“प्रथम दृष्टया इस अतिरिक्त राशि की वसूली न तो किसी कानून द्वारा स्वीकृत है और न ही यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 265 के अनुरूप है।”
कोर्ट ने एडवोकेट तुषार मित्तल को इस मामले में एमिकस क्यूरी (न्यायमित्र) नियुक्त किया, जो कोर्ट को हलफनामे की शपथ प्रक्रिया से संबंधित मुद्दों पर सहायता प्रदान करेंगे।
कोर्ट ने हाईकोर्ट के वकील को भी निर्देश दिया कि फोटो पहचान शुल्क के बारे में स्पष्टीकरण दें।
साथ ही हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देशित किया गया कि इस विषय से संबंधित सभी कार्यालय ज्ञापन न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करें।