[Divorce Law] नौकरी के लिए अलग-अलग रहने वाले पक्षकारों से परित्याग साबित नहीं होता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2024-09-21 06:51 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि नौकरी के लिए अलग-अलग रहने वाले पक्षकारों से परित्याग साबित नहीं होता।

पक्षकारों की शादी 1999 में हुई थी और 2000 में उनका एक बच्चा हुआ। पति झांसी में तैनात था जबकि पत्नी औरैया में तैनात थी।

पक्षकार अलग-अलग रह रहे थे, इसलिए अपीलकर्ता-पति ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए मुकदमा दायर किया जिसे 2004 में एकतरफा फैसला सुनाया गया। बाद में जब 2006 में प्रतिवादी-पत्नी के कहने पर एकतरफा आदेश वापस ले लिया गया।

अपीलकर्ता ने कार्यवाही वापस ले ली और परित्याग और क्रूरता का आरोप लगाते हुए 2007 में तलाक की कार्यवाही शुरू की।

कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी-पत्नी ने जून 2003 में बीमार होने पर पति द्वारा उससे मिलने और उसके बाद मेडिकल लीव के लिए आवेदन करने के लिए उसके स्कूल जाने के बारे में सबूत पेश किए थे।

कोर्ट ने माना कि प्रतिवादी द्वारा जून 2003 में अपीलकर्ता को छोड़ने के आरोप को फैमिली कोर्ट ने सही तरीके से खारिज कर दिया था।

इस तथ्य के मद्देनजर कि प्रतिवादी अपीलकर्ता के पैतृक घर से 2 किलोमीटर दूर काम कर रहा था और यह तथ्य कि औरैया में नौकरी के लिए उसका आवेदन अपीलकर्ता के ज्ञान में था।

जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने कहा,

"केवल इसलिए कि पक्षकार अपनी अलग-अलग नौकरियों के कारण अलग-अलग रह सकते हैं, जिनमें से एक झांसी में और दूसरा औरैया में काम करता है। इस तथ्य के आधार पर कि पक्षकारों द्वारा सामना की जाने वाली ऐसी रोजगार मजबूरी के बल पर परित्याग की घटना को कभी भी बरकरार नहीं रखा जा सकता।"

हालांकि प्रतिवादी-पत्नी के खिलाफ क्रूरता के आरोप लगाए गए, न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी ने अपीलकर्ता द्वारा क्रूरता के बारे में सबूत पेश किए थे, जबकि अपीलकर्ता अपना मामला साबित करने में विफल रहा था।

तदनुसार, न्यायालय ने अपीलकर्ता-पति द्वारा शुरू की गई तलाक की कार्यवाही को खारिज करने को बरकरार रखा।

केस टाइटल- अरविंद सिंह सेंगर बनाम श्रीमती प्रभा सिंह

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