सुप्रीम कोर्ट ने कहा, घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों के तहत लिव-इन पार्टनर गुजारा राशि का दावा कर सकते हैं [आर्डर पढ़े]
“तथ्य यह है कि, डीवीसी अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत पीड़ित जैसे पत्नी या लिव-इन-पार्टनर आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125के तहत मिलने वाली राहत से कहीं ज्यादा राहत पाने के हकदार हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिव-इन पार्टनर घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत महिलाओं के संरक्षण के प्रावधानों के तहत गुजारा राशि की मांग कर सकता है।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की तीन सदस्यीय पीठ ने ललिता टोप्पो बनाम झारखंड राज्य मामले पर सुनवाई करते हुए उपरोक्त मत व्यक्त किया।
संदर्भ
उच्चतम न्यायालय ने झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश का जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि सीआरपीसी की धारा 125 में ऐसी महिला को गुजारा राशि नहीं दी जा सकती जिन्होंने कानूनी रूप से विवाह नहीं किया है। इस मामले में, यह कहा गया था कि यह एक लिव-इन रिश्ता था।
जस्टिस टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ समेत दो न्यायाधीशीय खंडपीठ ने निम्नलिखित प्रश्नों को एक बड़े खंडपीठ में संदर्भित किया था :
- क्या पति और पत्नी के रूप में लंबे समय तक एक पुरुष और महिला के साथ रहना उनके बीच वैध विवाह की धारणा को बढ़ाएगा और क्या ऐसी धारणा के तहत महिला सीआरपीसी की धारा125 के तहत मुआवजे का हकदार होगी?
- क्या घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005के प्रावधानों के संबंध में आरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता के दावे के लिए विवाह का सख्त प्रमाण आवश्यक है?
- क्या हिंदू विवाह अधिनियम,1955की धारा 7 (1) की आवश्यकता को पूरी तरह से पूरा किए बिना परंपरागत संस्कारों और समारोहों के अनुसार हुआ विवाह, या कोई अन्य व्यक्तिगत कानून आरपीसी की धारा 125 के तहत महिला को गुजारा राशि प्राप्त करने की पात्रता देता है?
इन सभी संदर्भित प्रश्नों के लिए किसी तरह के उत्तर की आवश्यकता नहीं होगी।
कोर्ट ने कहा कि इस मामले में महिला को घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों के तहत मुआवजा प्राप्त करने का प्रभावी अधिकार उपलब्ध है।
अदालत ने कहा कि वास्तविकता यह है कि डीवीसी अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत पीड़ित यानी पत्नी या लिव-इन-पार्टनर को आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 के तहत ज्यादा मुआवजे का हकदार होंगे।
संदर्भित प्रश्नों का उत्तर देने से इंकार करते हुए पीठ ने कहा : “रेफरल आदेश द्वारा हमें जिन प्रश्नों का उत्तर देने को कहा गया है वे यमुनाबाई अनंतराव बनाम अनंतराव शिवराम आदम और अन्य मामले में दिए गए इस अदालत के फैसले के आधार पर तैयार किए गए हैं थे और सावितबेन सोमाभाई भाटिया बनाम गुजरात और अन्य राज्य जो डीवीसी अधिनियम, 2005 के प्रयोग में आने से पहले प्रस्तुत किए गए थे। इन बातों को ध्यान में रखते हुए, संदर्भित प्रश्नों को किसी भी उत्तर की आवश्यकता नहीं होगी”।