सीआरपीसी की धारा 161 के तहत घायल व्यक्ति के बयान को उसकी मौत के बाद मृत्युकाल का बयान माना जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2018-10-12 13:12 GMT

सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने बुधवार को कहा कि अगर कोई घायल व्यक्ति सीआरपीसी की धारा 161 के तहत कोई बयान देता है तो उसके मरने के बाद इस बयान को मरने के समय दिया गया उसका बयान माना जा सकता है और साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 के तहत इसे साक्ष्य माना जा सकता है।

न्यायमूर्ति एके सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने उड़ीसा हाईकोर्ट के 25 जनवरी 2017 के फैसले के खिलाफ अपील की सुनवाई कर रहे थे। इस मामले में आईपीसी की धारा 304 के तहत पाँच साल के सश्रम कारावास की सजा निचली अदालत ने सुनाई थी जिसके खिलाफ हाईकोर्ट ने अपील ठुकरा दी थी।

अपीलकर्ता के वकील ने कोर्ट में कहा कि धारा 161 के तहत घायल व्यक्ति के बयान को मर रहे व्यक्ति का बयान नहीं माना जा सकता। वकील ने इस बारे में लक्ष्मण बनाम महाराष्ट्र राज्य (2002) के फैसले का उल्लेख किया।

पीठ ने कहा कि पुलिस द्वारा धारा 161 के तहत रेकॉर्ड किया गया बयान जो कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 के क्लॉज़ (1) के तहत आता है, स्पष्ट रूप से संगत है और इसको स्वीकार किया जा सकता है।

पीठ ने कहा, “...निचली अदालत और हाईकोर्ट दोनों ने घायल व्यक्ति के बयान को संगत माना है और उस बयान पर भरोसा जताया है”

हमने गौर किया है कि कोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दिया गया बयान संगत और मान्य है। इस तरह,हम इस मामले में निचली अदालत द्वारा सुनाए गए फैसले और इस बारे में हाईकोर्ट का जांच अधिकारी द्वारा 5 दिसंबर 1990 को रेकॉर्ड किए गए बयान पर भरोसा करने के फैसले में कुछ भी गलती नहीं देख रहे हैं”

अंततः कोर्ट ने कहा कि वह इस बारे में पूरी तरह संतुष्ट है कि कोर्ट ने इस मामले में फैसले सुनाकर और आरोपी को दोषी ठहराकर कोई गलती नहीं की है और इसलिए अपीलकर्ता की अपील को खारिज किया जाता है।


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