जांच दल ने सरकारी मदद से चलने वाले स्कूल को असुरक्षित पाया; दिल्ली हाईकोर्ट ने उसे गिराने का आदेश दिया

Update: 2018-09-08 05:23 GMT

दिल्ली हाईकोट ने गुरूवार को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में पूर्णतया सरकारी मदद से चलने वाले एक स्कूल के भवन को गिराने का आदेश दिया है। पीडब्ल्यूडी के इंजीनियरों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस स्कूल का भवन काफी बदहाल स्थिति में है और यह असुरक्षित है। रिपोर्ट में इस स्कूल के बच्चों को दूसरे किसी उपयुक्त स्कूल में भेजे जाने की बात कही गई है।

 न्यायमूर्ति राजेन्द्र मेनन और न्यायमूर्ति वीके राव की पीठ ने दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग के उप निदेशक के रिपोर्ट पर गौर करने के बाद करावल नगर के आलोक पुंज माध्यमिक विद्यालय को गिराने का आदेश दिया है और इसके छात्रों को अन्य स्कूलों में भेजने को कहा है।

 कोर्ट ने सोशल ज्यूरिस्ट नामक एक एनजीओ ने अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल के माध्यम से इस स्कूल की बुरी हालत की ओर ध्यान दिलाया जहां वे हाल में गए थे। इसके बाद ही कोर्ट ने इसके निरीक्षण का आदेश दिया था।

 अग्रवाल ने कोर्ट से कहा था कि इस स्कूल में 6ठी से 12वीं की कक्षा तक के 2600 छात्र पढ़ाई कर रहे हैं  जबकि इसमें बुनियादी सुविधाओं और शिक्षकों का घोर अभाव है। स्कूल में पीने का पानी, शौचालय, कम्प्यूटर लैब, साइंस लैब, दुरुस्त ब्लैकबोर्ड, साफ़ क्लासरूम, खेल का मैदान और खेल सामग्रियों का नितांत अभाव है। इसके अतिरिक्त इस स्कूल में कुल 91 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं जबकि इन्मने से 72 खाली हैं।

 अग्रवाल ने कहा की उन्होंने मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को पत्र लिखकर दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम, 1973 में केरल एजुकेशन एक्ट, 1958 की तरह ही संशोधन करने का आग्रह किया था। इस संशोधन के द्वारा मुआवजा देकर स्कूल के नीचे की जमीन के अधिग्रहण का प्रावधान किया गया है।

 वर्तमान मामले से सम्बद्ध स्कूल 1976 से अस्तित्व में है और उसका निर्माण आलोक पुंज विद्यापीठ ने 5000 वर्ग गज में बनवाया था। इसके लिए जमीन की खरीद अनूप सिंह, अनूपी और सतीश चौधरी से खरीदी गई थी।

 वर्ष 1995 में इस स्कूल को पूरी तरह सरकार ने अपने प्रबंधन में ले लिया।

 इस स्कूल का निरीक्षण करने वाले दल ने पाया की स्कूल की दीवारों में दरारें पड़ गई हैं और अधिकतर कक्षाओं में लाल पत्थर की छत को लकड़ी की बीम का सपोर्ट दिया गया है।

 1980 में बने इस स्कूल भवन के बारे में स्कूल के कर्मचारियों ने बताया कि लकड़ी की इसकी अधिकतर बीम कमजोर पड़ गई है और ये इसकी छत को गिरने से नहीं रोक सकते। अधिकतर कक्षाओं में फ्लोर क्षतिग्रस्त हैं।

 कुछ कक्षाओं में ईंट कंक्रीट के स्लैब लगाए गए हैं पर अब ये भी कमजोर हो गए हैं और इनमें दरारें पड़ गई हैं।

 स्कूल का पिछले हिस्से में खाली पड़े जगह में पानी भरा रहता है और इसकी वजह से दीवालों के कभी गिर जाने की आशंका है। कुछ कक्षाओं में तो छत का एक हिस्सा गिर भी गया है।

 अग्रवाल ने कहा कि इस क्षेत्र की जनसंख्या काफी घनी है और यहाँ काफी कम स्कूल हैं और अगर सरकार वर्तमान संरचना की जगह एक बहुमंजिली इमारत बनाती है तो इसमें 3000 तक छात्र पढ़ाई कर सकते हैं।

 इस बीच, शिक्षा विभाग ने 1405 छात्राओं को पूर्वी गोकुलपुरी के सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक कन्या विद्यालय में और 1243 छात्रों को यमुना विहार के सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में भेजने पर विचार कर रहा है। विभाग इन छात्रों को नए स्कूल तक आने-जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था भी करेगी।

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