दिल्ली सरकार Vs LG - LG चुनी हुई सरकार की ‘ सहायता और सलाह’ मानने को बाध्य। वो सरकार के हर फैसले में दखल नहीं दे सकते : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
“ एलजी सीमित अर्थ में एक प्रशासनिक प्रमुख है और राज्यपाल नहीं है। वह छूट वाले क्षेत्रों के अलावा अन्य क्षेत्रों में एनसीटी सरकार की सहायता और सलाह से बंधे हैं।” : CJI
सुप्रीम कोर्ट ने लेफ्टिनेंट-गवर्नर और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता की सीमाओं को चित्रित करते हुए कहा कि एलजी दिल्ली सरकार के हर निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकते और मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह उन पर बाध्यकारी है, भूमि, पुलिस और पब्लिक आर्डर के मामलों को छोड़कर यह फैसला एक संविधान बेंच द्वारा दिया गया जिसमें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को उलट दिया जिसमें कहा गया था कि एलजी दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं जो दिल्ली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे नहीं हैं। “ एलजी सीमित अर्थ में एक प्रशासनिक प्रमुख है और राज्यपाल नहीं है। न्यायमूर्ति सीकरी और न्यायमूर्ति खानविलकर के साथ सीजेआई द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया है कि वह छूट वाले क्षेत्रों के अलावा अन्य क्षेत्रों में एनसीटी सरकार की सहायता और सलाह से बंधे हैं। एलजी की शक्ति दिल्ली सरकार से अलग है और केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 239एए (4) के तहत असाधारण मामलों के संबंध में है वो राष्ट्रपति को संदर्भ भेज सकते हैं।असाधारण मामले भूमि, पुलिस और सार्वजनिक आदेश से संबंधित हैं। हालांकि एलजी को सरकार के फैसले को सूचित किया जाए लेकिन सभी मामलों में एलजी की सहमति प्राप्त करने की कोई आवश्यकता नहीं है।एलजी को सरकार के साथ सौहार्दपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए। फैसले में यह भी जोर दिया कि एलजी यांत्रिक रूप से सभी मामलों को विवेक लगाए बिना राष्ट्रपति को संदर्भित नहीं कर सकते है।
एक अलग लेकिन समेकित फैसले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि निर्वाचित सरकार के साथ निर्णय लेने का वास्तविक अधिकार निर्वाचित सरकार के पास है और एलजी को निर्वाचित सरकार की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य करना है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, "दिल्ली की विशेष स्थिति के प्रकाश में दिल्ली और केंद्र के बीच संतुलन की आवश्यकता है।"
न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अपने अलग लेकिन समेकित फैसले में कहा कि संविधान की व्याख्या समय की आवश्यकता के आधार पर होनी चाहिए। निर्वाचित सरकार की राय का सम्मान किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि संविधान ने यह नहीं कहा कि सभी मामलों में एलजी की सहमति प्राप्त की जानी चाहिए।
दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर रस्साकसी के मामले में संविधान के अनुच्छेद 239 AA को लेकर मैराथन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने 6 दिसंबर 2017 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के 4 अगस्त, 2016 के दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें उपराज्यपाल को प्रशासनिक हेड बताते हुए कहा था कि वो मंत्रीमंडल की सलाह और मदद के लिए बाध्य नहीं हैं।
दिल्ली सरकार की ओर से कानून जगत के दिग्गज पेश हुए जिनमें वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम, पी चिदंबरम, इंदिरा जयसिंह और राजीव धवन शामिल हैं।
दिल्ली सरकार की दलील
गोपाल सुब्रमण्यम : वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि क्या उपराज्यपाल जो चाहे वो कर सकते हैं ? क्या वो बिना मंत्री के अफसरों से मीटिंग कर सकते हैं ? कई योजनाओं की फाइलें उपराज्यपाल के पास भेजी गई है लेकिन वो एक साल से ज्यादा से फाइलों को पास नहीं कर रहे हैं। मंत्रियों को काम कराने के लिए अफसरों के पैर पडना पडता है। सारे प्रस्ताव चीफ सेकेट्री के पास जाते हैं और वो कहते हैं कि उपराज्यपाल से कोई निर्देश नहीं मिले हैं। उपराज्यपाल इस तरह कार्यपालिका के आदेश की फाइलों पर बैठे नहीं रह सकते। उन्हें वाजिब वक्त में कारण सहित अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए केंद्र सरकार दिल्ली सरकार के रोजाना कामकाज में दखल दे रही है।
गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि प्रावधानों को सौहार्दपूर्ण तरीके से बनाया जाना चाहिए। चुनी हुई सरकार की भी गरिमा बनी रहनी iचाहिए।
वहीं पीठ में शामिल जस्टिस डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि उपराज्यपाल को फाइलों पर कारण सहित जवाब देना चाहिए और ये वाजिब वक्त में होना चाहिए। दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 239AA के तहत दिल्ली को विशेष दर्जा दिया गया है।239 AA में दर्जा दिया गया है उसकी व्याख्या करनी चाहिए।239AA के मुताबिक एक चुनी हुई सरकार जो जनता के लिए जवाबदेह हो। इसी के तहत दिल्ली में मुख्यमंत्री, मंत्रियों का समूह और विधानसभा को बनाया गया। दिल्ली की विधायिका भी दूसरे राज्यों की विधायिका के तरह है।
पी चिदंबरम : पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर कहा कि LG ब्रिटिश राज के वक्त के दिल्ली के वायसराय नहीं हैं जैसा कि हाईकोर्ट के आदेश ने बना दिया है। उन्होंने कहा कि वो सिर्फ राष्ट्रपति के एजेंट हैं और उनके पास उतने अधिकार नहीं हैं जितने राष्ट्रपति को हासिल हैं। चिदंबरम ने ये भी कहा कि संविधान एक कानूनी-राजनीतिक दस्तावेज है। देश की सबसे बड़ी अदालत द्वारा इसकी व्याख्या करते वक्त जनभावना और लोकतांत्रिक प्रशासन का भी ख्याल रखना चाहिए।
चिदंबरम ने कहा कि 239 AA को GNCT एक्ट के साथ देखा जाना चाहिए। GMCT एक्ट के सेक्शन 44 के तहत उपराज्यपाल मंत्रिमंडल की सिफारिश और सलाह पर ही काम करेंगे। अगर कोई मतभेद होगा तो उन्हें दिल्ली सरकार से स्पष्टीकरण मांगना होगा। इसके बाद भी वो संतुष्ट नहीं होते हैं तो वो राष्ट्रपति के पास भेजेंगे। उपराज्यपाल ना तो फाइल पर बैठे रह सकते हैं और ना ही ऑटोमैटिक तरीके से राष्ट्रपति के पास फाइल भेज सकते हैं।
पी चिदंबरम ने कहा कि LG संविधान और लोकतांत्रिक तरीके चुनी सरकार का मजाक बना रहे हैं। वो दिल्ली में अंसवैधानिक तरीके से काम कर रहे हैं। कानून के मुताबिक उपराज्यपाल के पास कोई शक्ति नहीं है। सारे अधिकार या तो मंत्रिमंडल के पास हैं या फिर राष्ट्रपति के पास। अगर किसी से राष्ट्रपति सहमत होते हैं तो ये राष्ट्रपति की राय होगी ना कि उपराज्यपाल की। चिदंबरम ने कहा कि दूर्भाग्यपूर्ण है कि वो फाइलों को राष्ट्रपति के पास ना भेजकर खुद ही फैसलें ले रहे हैं और वो कहते हैं कि वो ही फैसले लेंगे। किसी भी मुद्दे पर मूल मतभेद हो तो मामले तुरंत राष्ट्रपति के पास भेजा जाना चाहिए। IPS, IAS या डिप्टी सेकेट्री आदि तो केंद्र के अधीन हैं लेकिन दिल्ली सरकार के किस विभाग में वो काम करें, उसमें दिल्ली सरकार की राय मानी जानी चाहिए। यहां तो उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के कर्मियों भी नियुक्तियों की फाइल ले लेते हैं। जैसे दिल्ली फायर सर्विस एक्ट 2009 में दिल्ली सरकार ने बनाया लेकिन उपराज्यपाल यहां भी नियुक्तियां अपने पास ले रहे हैं।
इंदिरा जयसिंह : वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा कि क्या संविधान या संसद से पारित किसी कानून के द्वारा दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किया गया ? दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित करने के संबंध में इस तरह का कोई भी संदर्भ संविधान या किसी कानून के तहत नहीं मिलता। केंद्र और राज्य के बीच कार्यकारी शक्तियों के बंटवारे पर संवैधानिक योजना को क्या केंद्र शासित क्षेत्र दिल्ली पर भी लागू किया जा सकता है? क्या दिल्ली को भी अन्य राज्यों की तरह कार्यकारी शक्तियां मिल सकती हैं? इंदिरा जयसिंह ने कहा कि एक जहाज के दो कप्तान रहने पर अव्यवस्था होगी।
केंद्र कैसे कह सकता है कि दिल्ली सरकार के पास कार्यकारी शक्ति नहीं है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 239 एए और दिल्ली सरकार की कार्यकारी शक्तियों की व्याख्या के दौरान कोर्ट को दिल्ली के केंद्र शासित क्षेत्र होने की शब्दावली को लेकर दिशा निर्देशित नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही, राज्य और केंद्र के बीच जिम्मेदारियों की अस्पष्टता नहीं होनी चाहिए।
जयसिंह ने कहा कि केंद्र सरकार के पास संविधान की केंद्रीय सूची और समवर्ती सूची में मौजूद विषयों पर केंद्रीय कानून लागू करने की शक्ति है।
राजीव धवन : वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि राजधानी दिल्ली के लिए संविधान के अनुच्छेद-239 एए के तहत विशेष प्रावधान किया गया है और ये प्रावधान संसद के कानून से नहीं हुआ है बल्कि ये संवैधानिक अधिकार संविधान से मिला है। दिल्ली सरकार को संवैधानिक अधिकार मिला हुआ है। ये अधिकार लोकतांत्रित अधिकार है और इसके तहत विधानसभा है और जिसके प्रति मंत्रीपरिषद और सीएम जिम्मेदार हैं।
धवन ने कहा कि मंत्रीपरिषद के सलाह से एलजी काम करेंगे और इस तरह देखा जाए तो मंत्रीपरिषद को तमाम एग्जेक्यूटिव अधिकार मिले हुए हैं। मंत्रीपरिषद और सीएम को इस मामले में वरीयता है। मंत्रीपरिषद के पास ये अनुच्छेद-239 एए का प्रावधान देता है और ये प्रावधान दिल्ली को अन्य केंद्र शासित प्रदेश से अलग करता है। दिल्ली में मंत्रीपरिषद है और लोकतांत्रिक तौर पर चुनी हुई सरकार है अगर इस तरह मंत्रीपरिषद की सलाह से एलजी काम करेंगे। एलजी का काम है कि वह राष्ट्रपति को रोजाना के कामकाज के बारे में बताएं
धवन ने ये भी दलील दी कि दिल्ली ऐसा प्रदेश है जहां करीब दो करोड़ लोग रहते हैं। लोगों का यहां की चुनी हुई सरकार से उम्मीदें हैं। मंत्रीपरिषद विधानसभा औऱ लोगों के प्रति जिम्मेदार हैं। एलजी का जहां तक सवाल है तो वह मंत्रीपरिषद के सलाह से काम करेंगे और किसी खास मुद्दे पर अगर विभेद होगा तो वह मामले को राष्ट्रपति के पास भेजेंगे। एलजी सिर्फ राष्ट्रपति के प्रतिनिधि हैं और उनका काम है कि वह रोजाना के कामकाज के बारे में राष्ट्रपति को सूचना दें। एलजी के पास कोई संपूर्ण अधिकार नहीं है। उन्हें इस बात का अधिकार नहीं है कि वह मंत्रीपरिषद के कामकाज में दखल दें। एलजी मंत्रीपरिषद के सलाह पर ही काम करेंगे।
धवन ने दलील दी कि दिल्ली के लिए अनुच्छेद-239 एए के तहत विशेष प्रावधान किया गया है। इसे समग्र तौर पर देखने की जरूरत है। 180 मामले ऐसे हैं जिसमें दिल्ली सरकार को फैसला लेना है। इन तमाम मामलों में दिल्ली सरकार के मंत्रीपरिषद और सीएम की सलाह पर एलजी काम करेंगे। वह चुनी हुई सरकार और राष्ट्रपति के बीच में कड़ी का काम करेंगे और फैसलों के बारे में बताएंगे। किसी मामले में अगर उन्हें लगता है कि दिल्ली सरकार संवैधानक दायरे से बाहर जाकर काम कर रही है तो उस मामले को वह राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। वैसे जो मामले केंद्र सरकार के अधीन है मसलन पब्लिक ऑर्डर, लैंड और पुलिस, ये दिल्ली सरकार को अधिकार क्षेत्र में नहीं है।
केंद्र की दलील
ASG मनिंदर सिंह ने दलील दी कि दिल्ली सरकार को राष्ट्रहित के चलते दिल्ली सरकार को एक्सक्लूसिव प्रशासनिक नियंत्रण नहीं दिया गया। संविधान निर्माताओं की ये ही मंशा थी कि दिल्ली को केंद्रशासित प्रदेश रहे लेकिन इसकी विधानसभा और मंत्रीपरिषद हो। उन्होंने एस बालाकृष्ण एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट भी पेश की जिसे दिल्ली को विशेषाधिकार देने के लिए संविधान में अनुच्छेद 239 AA के संशोधन के लिए गठित किया गया था। उन्होंने दिखाया कि किस तरह कमेटी ने सारी संभावनाओं पर विचार किया और निष्कर्ष दिया कि भले ही दिल्ली में चुनी हुई सरकार हो, लेकिन राजधानी होने की वजह से राष्ट्रहित में एक्सक्लूसिव एग्जीक्यूटिव नियंत्रण नहीं दिया सकता। राजधानी की कानून व्यवस्था, सामान्य प्रशासन और पब्लिक आर्डर को लेकर केंद्र को सारी शक्तियां देने की रिपोर्ट दी गई। इसी कारण 239AA के तहत दिल्ली सरकार को सारे प्रस्ताव उपराज्यपाल को भेजने होंगे और उपराज्यपाल को सहमत होने या उस पर आपत्ति जताने का अधिकार है। राय में मतभेद होने पर मामले को कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा। दिल्ली में सारे प्रशासनिक अधिकार LG को हैं। दिल्ली सरकार के पास अलग से कोई अधिकार नहीं है। अगर दिल्ली सरकार को ये अधिकार दिए गए तो अराजकता फैल जाएगी। दिल्ली देश की राजधानी है और ये पूरे देश के लोगों की है। और केंद्र में देश की सरकार है इस लिए दिल्ली पर केंद्र का संपूर्ण अधिकार है। दिल्ली में जितनी भी सेवाएं है वो केंद्र के अधीन है, केंद्र के पास उसके ट्रांसफर, पोस्टिंग का अधिकार है और ये पूरी तरह से केंद्र के अधीन है।साथ ही उपराज्यपाल मंत्रीपरिषद की सलाह को मनाने के लिए बाध्य नही है। चुनी हुई सरकार सभी मुद्दों को उपराज्यपाल पर सलाह मशवरा करेगी।