मद्रास हाईकोर्ट ने देश भर के स्कूलों में पहली और दूसरी कक्षा के छात्रों के होमवर्क पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया; स्कूली बस्ते का बोझ भी कम होगा
मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार को केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया कि वे सीबीएसई सहित देश भर के स्कूलों में कक्षा एक और दो के छात्रों के होमवर्क पर प्रतिबंध लगाएं।
कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वे वह सभी राज्य सरकारों को अविलंब यह बताए कि एनसीईआरटी के अनुरूप कक्षा एक और दो के छात्रों को भाषा और गणित तथा तीसरी से पांचवीं कक्षा के छात्रों को भाषा, ईवीएस और गणित के अलावा कोई अन्य विषय नहीं पढाएं।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को अविलंब निर्देश दे कि वे तेलंगाना और महाराष्ट्र सरकारों की नीतियों के अनुरूप ‘बच्चों के बस्ते का बोझ कम करने के बारे में दिशानिर्देश निर्धारित करें।
न्यायमूर्ति एन किरुबरन ने एडवोकेट एम पुरुषोत्तमन की याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त आदेश दिए। इस याचिका में 29 जुलाई 2017 को सीबीएसई द्वारा जारी सर्कुलर को चुनौती दी गयी है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद भारत सरकार के स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग और मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार; राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् (एनसीईआरटी) को निर्देश दिया कि वह सीबीएसई स्कूलों को एनसीईआरटी की किताबें ही खरीदने का आदेश जारी करें न कि निजी प्रकाशकों की।
“...कई विशेषज्ञों का मानना है कि होमवर्क सिर्फ बड़े बच्चों के लिए ही लाभकारी है जबकि छोटे बच्चों में काम को पूरा करने, ध्यान केंद्रित करने, निर्देशों को समझने, अपने व्यवहार पर काबू रखने, और विवरणों को याद रखने की क्षमता नहीं होती। इसलिए, यह उम्मीद करना कि केजी, कक्षा एक और दो के छात्र खुद ही अपना होमवर्क कर लेंगे अव्यावहारिक है और इसलिए कक्षा एक और दो के छात्रों को होमवर्क देने पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है।”
कोर्ट ने इस क्रम में निम्नलिखित निर्देश जारी किए -
(a) प्रतिवादी, खासकर प्रतिवादी नंबर 3, 4 और 5 को निर्देश दिया जाता है कि वे सीबीएसई स्कूलों को कक्षा एक और दो के छात्रों को होमवर्क देने से रोकें।
(b) प्रतिवादी 3 और 4 को निर्देश दिया जाता है कि वे यह पता करने के लिए उड़न दस्ते बनाएं कि कक्षा एक और दो के बच्चों को कोई होमवर्क तो नहीं दिया जाता है।
(c) प्रथम प्रतिवादी/केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को अविलंब निर्देश जारी कर उन्हें राज्य बोर्डों/मैट्रिकुलेशन/एंग्लो-इंडियन स्कूलों के कक्षा एक और दो के छात्रों को कोई होमवर्क नहीं देने को कहें।
(d) प्रथम प्रतिवादी/केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह राज्य सरकारों को यह अविलंब बताए कि वह एनसीईआरटी के निर्देशों के अनुरूप कक्षा एक और दो के छात्रों को भाषा और गणित तथा कक्षा तीन से पांच के छात्रों को भाषा, ईवीएस और गणित के अलावा कोई अन्य विषय नहीं पढाएं।
(e) प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि अगर कोई स्कूल कक्षा एक और दो के छात्रों को होमवर्क देता है और कक्षा तीन से पांच के छात्रों को निर्धारित विषयों से अतिरिक्त विषय पढ़ने को कहता है तो उसकी मान्यता समाप्त कर दें।
(f) प्रतिवादी नंबर तीन और पांच को विशेष रूप से यह निर्देश दिया जाता है कि वे 9 अगस्त 2017 को जारी सीबीएसई के सर्कुलर के अनुरूप सिर्फ एनसीईआरटी की पुस्तकें ही सुझाएं और उसका प्रयोग करें।
(g) केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह बच्चों के स्कूली बस्ते (बोझ की सीमा) विधेयक, 2006 के अनुरूप नीति का अविलंब निर्धारण करे।
(h) केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों को अविलंब निर्देश देकर उन्हें बच्चों के स्कूली बस्तों के बोझ को कम करने के लिए तेलंगाना और महाराष्ट्र सरकारों के दिशानिर्देशों के अनुरूप नीति तय करे।
(i) प्रथम प्रतिवादी केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाता है कि वह राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को अविलंब आदेश देकर उन्हें उड़न दस्तों का गठन करने को कहे ताकि वह स्कूलों का औचक निरिक्षण कर यह पता कर सकें कि स्कूलों में ऐसी पुस्तकों का प्रयोग तो नहीं हो रहा है जिसकी अनुमति नहीं है।
(j) प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि वे स्कूलों को सर्कुलर जारी कर उन्हें इस अदालत के सभी आदेशों की अविलंब जानकारी दें और इस बारे में चार सप्ताह के भीतर रिपोर्ट दाखिल करें।
कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चे देश की संपत्ति हैं।
“उनका उचित तरीके से लालन पालन जरूरी है और यह भी जरूरी है कि उनकी उम्र के अनुरूप ही उनको शिक्षा दी जाए ताकि बच्चों में रचनात्मकता आए। उम्र और क्षमता को देखते हुए शिक्षा का स्तर संतुलित होना चाहिए ताकि बच्चे का समग्र विकास हो सके। इसमें खेलकूद और सामाजिक कौशल भी शामिल हैं। उनपर एनसीईआरटी की अनुशंसा के इतर कोई भी अनावश्यक विषय लादने से उनके दिमाग और स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा और इससे उनके और उनके मां-बाप के दिमाग में भय, चिंता, तनाव पैदा होगा। इसलिए, बच्चों की सुरक्षा के लिए इस अदालत को निर्देश जारी करने पड़ रहे हैं। ये निर्देश 2018-19 अकादमिक वर्ष से लागू होंगे। इन आदेशों के उल्लंघन की किसी कोशिश के खिलाफ गंभीर कार्रवाई होगी क्योंकि यह हमारे देश के नौनिहालों का मामला है।”
स्कूली बस्ते
कोर्ट ने कहा कि स्कूली बस्तों को इतना भारी बना दिया गया है कि ये बच्चों के स्वास्थ्य के लिए ख़तरा बन गए हैं। बच्चों को अनावश्यक रूप से किताबों और अभ्यास पुस्तिकाओं को लादने को बाध्य किया जाता है। इस मामले से जुड़ा कोई भी पक्ष इस मुद्दे पर गौर करने को इच्छुक नहीं है। सिर्फ तेलंगाना और महाराष्ट्र सरकार ने ही इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है और बस्ते के बोझ को कम करने के लिए उचित दिशानिर्देश जारी किए हैं।
कोर्ट ने और क्या कहा
(i) बच्चों को बिना किसी तनाव के अपने बचपन का स्वाभाविक आनंद उठाने का मौलिक और आधारभूत मानवीय अधिकार हासिल है;
(ii) बच्चों पर कई विषयों का बोझ नहीं लादा जाना चाहिए;
(iii) बच्चों को उनकी उम्र के हिसाब से डॉक्टरों की सलाह के अनुरूप सोने के लिए न्यूनतम अवधि जरूरी है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत यह मौलिक अधिकार है;
(iv) पर्याप्त नींद नहीं होने से बच्चों की मानसिक और शारीरिक स्थिति प्रभावित होगी और उन पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा;
(v) जब तक बच्चे पांच साल के नहीं हो जाते तब तक उनको पेंसिल पकड़ने की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए;
(vi) बच्चों को सीखने के लिए उचित माहौल दिया जाए;
(vii) उन्हें बिना किसी तनाव और आतंक के अध्ययन का मौक़ा दिया जाए;
(viii) अगर कक्षा एक और दो के छात्रों को होमवर्क दिया जाता है तो इससे उन पर दबाव बनेगा और उनके सोने का समय प्रभावित होगा;
(ix) ऐसी पुस्तकों का उनके कोमल मष्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव होगा जो उनके उम्र के हिसाब से उनके लिए निर्धारित नहीं हैं;
(x) बच्चों को उनकी स्वास्थ्य की कीमत पर भारी बस्ता ढोने को नहीं कहा जा सकता; उन्हें हल्का बस्ता दिया जाना चाहिए;