लेट लतीफ सिविल जज की बरखास्तगी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सही ठहराया [निर्णय पढ़ें]
प्रोबेशनर सिविल जज, जूनियर डिवीजन और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रे, उल्हासनगर गिरीश गोसावी को सेवा के अनुपयुक्त पाए जाने पर सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है। गोसावी ने अपनी बर्खास्तगी को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी जिसे ख़ारिज कर दिया गया। गोसावी को बर्खास्तगी का नोटिस न्यायमूर्ति केके सोनवाने ने दिया जो उस समय ठाणे में प्रधान जिला जज थे।
याचिकाकर्ता ने महाराष्ट्र सरकार के विधि सलाहकार और संयुक्त सचिव के संदेश और प्रोबेशन समिति की अनुशंसा को भी चुनौती दी थी। इन दोनों ने गोसावी को हटाने की अनुशंसा की थी।
न्यायमूर्ति आरएम सावंत और न्यायमूर्ति एस कोतवाल की पीठ ने कहा कि यह बर्खास्तगी याचिकाकर्ता के लिए किसी भी तरह का कलंक नहीं है, उसको अनुपयुक्त पाए जाने पर बर्खास्त किया गया है।
पृष्ठभूमि
उल्हासनगर जिला अदालत की रजिस्ट्री को 18 अक्टूबर 2011 को एक अनाम कॉल मिला जिसमें कहा गया कि गोसावी (याचिकाकर्ता) 11.30-12 बजे के बीच कोर्ट आता है और सुबह का काम 11.30 बजे के बाद शुरू करता है। वह वकीलों को अपने कक्ष में बुलाकर उनसे गप्पें लड़ाता है और इस तरह मुकदमादारों के विश्वास को नजरअंदाज करता है। यह भी कहा गया कि वह वकीलों की उपस्थिति में अन्य जजों के बारे में बात करता है और वह अपने कक्ष से ही काम करता है। वह दोपहर को अपने कक्ष में बैठने के कारण स्टाफ, वकीलों और मुकदमादारों के लिए मुश्किलें पैदा करता है क्योंकि रिपोर्ट नहीं तैयार किए जा सकते।
इनके अलावा प्रधान जिला जज से गोसावी की मौखिक शिकायतें की गई थीं। इन शिकायतों के आधार पर एक दिन प्रधान जिला जज ने उल्हासनगर जिला अदालत का औचक निरीक्षण किया। याचिकाकर्ता 11.45 बजे सुबह तक नहीं आया था और दोपहर के आसपास कोर्ट को बताया गया कि तबीयत ठीक नहीं होने के कारण आज वह कोर्ट नहीं आएगा।
एक अन्य जज को उल्हासनगर भेजकर शिकायतों के बारे में तहकीकात करने को कहा गया। उनको बताया गया कि याचिकाकर्ता फरवरी, मार्च और अप्रैल में प्रत्येक महीने छह दिन अदालत से अनुपस्थित रहा। यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि याचिकाकर्ता सुबह की अदालत से अनुपस्थित रहा।
फैसला
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि नौकरी से बर्खास्त करते हुए उसके खिलाफ जो बातें कही गई है वे अपमानजनक हैं और उसकी ईमानदारी के बारे में अनुचित बातें कही गई हैं। यह दलील दी गई कि याचिकाकर्ता की बात सुने बिना उसे नहीं हटाया जाना चाहिए था।
शमशेर सिंह बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गौर करने के बाद कोर्ट ने कहा,
...अगर दुर्व्यवहार का संदेह है तो यह नियोक्ता की इच्छा पर है कि वह इस पर गौर करे या प्रोबेशनर के दोषों पर गौर न करे पर वह ऐसे व्यक्ति को रखना पसंद नहीं करेगा जिसको लेकर वह खुश नहीं है।
कोर्ट ने यह भी कहा ठाणे के प्रधान जिला जज ने जो कड़े शब्द प्रयोग किए हैं उससे बचा जा सकता था पर इसके बावजूद प्रोबेशन कमिटी उसको सेवा में बने रहने लायक नहीं समझती है। इसलिए उसके खिलाफ पास किया गया आदेश एक सामान्य आदेश है। इसलिए उसकी याचिका खारिज कर दी गई।