मनी लॉन्ड्रिंग मामले में छगन भुजबल को बॉम्बे हाईकोर्ट से मिली जमानत, दो साल बाद राहत

Update: 2018-05-05 15:00 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल को जमानत दे दी। न्यायमूर्ति पी. एन. देशमुख ने पांच लाख रुपये के निजी मुचलके पर जमानत देने के साथ-साथ शर्त लगाई है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समन पर भुजबल को पूछताछ के लिए एजेंसी के सामने पेश होना होगा और वो गवाहों को प्रभावित नहीं करेंगे।

 भुजबल ने अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए जमानत के लिए इस साल जनवरी में हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। याचिका में उन्होंने कहा था कि उनको हिरासत में रखे जाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि मामले में पहले ही चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है। भुजबल के वकील ने अदालत में तर्क देते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की धारा   45 को हटा दिया है। ऐसे में उन्हें जमानत दी जानी चाहिए। इस सेक्शन के तहत यह प्रावधान था कि आरोपी को ही यह साबित करना पड़ता था कि वह मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल नहीं है।

दरअसल 14 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बॉम्बे हाईकोर्ट महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री छगन भुजबल की लंबित जमानत याचिका पर शीघ्र सुनवाई कर फैसला सुनाए। वहीं सुप्रीम कोर्ट छगन भुजबल की हैबियस कॉरपस याचिका पर जुलाई में सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट में उप मुख्यमंत्री छगन भुजबल के तरफ से पेश वकील ने कोर्ट में कहा कि छगन भुजबल पिछले ढाई साल से जेल में बंद है लिहाजा बॉम्बे हाईकोर्ट उनकी जमानत पर जल्द

सुनवाई करे।बॉम्बे हाई कोर्ट में छगन भुजबल के जमानत याचिका लंबित है जिसपर सुनवाई नही हो रही है।

26 मार्च को न्यायमूर्ति एसए बोबड़े और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने  महाराष्ट्र सरकार के पूर्व उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल की याचिका पर  केंद्र को नोटिस जारी किया था और दो हफ्तों में सरकार से जवाब मांगा था। याचिका में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा उनकी गिरफ्तारी को चुनौती दी गई है। इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया था।

याचिकाकर्ता की दलीलों से  पहले खंडपीठ ने भुजबल के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी पर सवाल उठाया था कि कितने महीनों की गिरफ्तारी के बाद हैबियस कॉरपस की याचिका सुनवाई योग्य हो सकती है।

अदालत की पूछताछ के जवाब में रोहतगी ने वकील निखिल जैन की सहायता से कहा था कि ये गिरफ्तारी उनके मुव्वकिल के

अनुच्छेद 19 ( समानता) और अनुच्छेद 22 (गिरफ्तारी और निरोध के खिलाफ संरक्षण) के तहत मौलिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। भुजबल को गिरफ्तारी पर  एजेंसी की प्रक्रिया  पर सवाल उठाते हुए रोहतगी ने कहा कि ईडी गिरफ्तारी के आधार बताने में नाकाम रही है और गिरफ्तारी के कारणों का हवाला देने में असफल रही है। पीएमएलए के तहत एफआईआर का कोई प्रावधान नहीं है, उन्होंने कहा।

उन्होंने भुजबल की जमानत के लिए प्रार्थना की क्योंकि वह पिछले दो वर्षों से ज्यादा जेल में है।

  गौरतलब है कि बॉम्बे उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2016 में भुजबल की याचिका को जमानत देने और पीएमएलए के तहत अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। एनसीपी नेता को 14 मार्च 2016 को ईडी द्वारा कथित मनी लॉन्डिंग के मामले में गिरफ्तार किया गया था। एजेंसी ने दावा किया कि सरकारी खजाने को 870 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। ईडी ने भुजबल और उनके परिजनों पर नई दिल्ली के महाराष्ट्र सदन के निर्माण के ठेकेदारों के पक्ष में और कबीना सेंट्रल लाइब्रेरी के निर्माण के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने का आरोप लगाया है। उस वक्त वो महाराष्ट्र के राज्य लोक निर्माण मंत्री थे और वो  नवंबर 2004 से सितंबर 2014 तक इस पद पर रहे।

Similar News