मद्रास हाई कोर्ट ने मरीना बीच पर शांतिपूर्ण उपवास की अनुमति दी; कहा, ब्रिटिश सरकार ने भी यहाँ प्रदर्शन पर रोक नहीं लगाई थी [आर्डर पढ़े]
विनियमन के अधिकार में प्रतिबंध लगाना कभी शामिल नहीं हो सकता...चूंकि वे मंदिर, मस्जिद और गिरजाघरों के पास वाहनों की आवाजाही को विनियमित करते रहे हैं, उन्हें मरीना बीच पर याचिकाकर्ता की मीटिंग पर भी नजर रखनी चाहिए, कोर्ट ने कहा।
अगर ब्रिटिश सरकार ने मरीना बीच पर सार्वजिनक सभा आयोजित करने पर प्रतिबंध लगाया होता, तो स्वतंत्रता संग्राम जैसे पवित्र कार्य के लिए हम महात्मा गांधी और तिलक को इस जगह पर नहीं देखते, कोर्ट ने कहा।
एक महत्त्वपूर्ण फैसले में मद्रास हाई कोर्ट ने नदियों को जोड़ने के आंदोलन से जुड़े एक कार्यकर्ता को मरीना बीच पर एक दिन के लिए शांतिपूर्ण सभा करने की अनुमती दे दी है। कोर्ट ने अधिकारियों से कहा है कि वे इसके लिए बीच पर कहीं भी उनको जगह उपलब्ध कराएं।
न्यायमूर्ति टी राजा ने कहा कि यह तार्किक और आदर्श रूप से उचित होगा कि मरीना के एक हिस्से पर शांतिपूर्ण तरीके से उपवास रखने की अनुमति दी जाए क्योंकि यहाँ इतनी अधिक जगह उपलब्ध है कि भारी भीड़ को जगह मिल सकती है और उन पर निगरानी भी रखी जा सकती है और यहाँ गड़बड़ी की आशंका भी कम होगी।
नेशनल साउथ इंडियन रिवर इंटरलिंकिंग एग्रीकल्चरिस्ट संगम के राज्य अध्यक्ष पी अय्यकन्नु ने मरीना बीच पर उपवास करने की अनुमति माँगी थी ताकि लोगों को कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड के गठन के बारे में बताया जा सके। चूंकि अथॉरिटीज ने कोई जवाब नहीं दिया, उन्होंने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
राज्य ने इस आग्रह के जवाब में कोर्ट में कहा कि 2003 से मरीना बीच पर किसी भी संगठन को लंबे समय के लिए किसी भी तरह के प्रदर्शन, उपवास या रैली आदि की अनुमति नहीं दी गई है। यह भी कहा कि सामाजिक सजगता कार्यक्रम या मैराथन आदि सर्विस लेन में आयोजित करने की अनुमति दी जाती है न कि मरीना के तट पर और वह भी मात्र दो घंटे के लिए ही इसकी अनुमति दी जाती है जो कि व्यस्त समय नहीं होता। राज्य ने इसके लिए वैकल्पिक स्थानों का सुझाव दिया।
विनियमन का अधिकार कभी भी रोकने का अधिकार नहीं हो सकता
न्यायमूर्ति राजा ने कहा, “...अथॉरिटीज जिस तरह से समीप के मंदिर, गिरजाघर और मस्जिद के पास वाहनों की भारी भीड़ को नियंत्रित करती है उसे याचिकाकर्ता द्वारा मरीना बीच पर आयोजित सभा में आने वाली भीड़ को भी वैसे ही नियंत्रित करना होगा।”
कोर्ट ने आगे कहा कि यहाँ तक कि विकसित देशों जैसे अमरीका में ह्वाईट हाउस और इंग्लैंड में पार्लिआमेंट स्क्वायर के आगे की जगह को आम लोगों की बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों से बड़ा नहीं माना जाता, वे अपने नागरिकों को वहाँ विरोध प्रदर्शन करने और अपने विचार रखने के लिए प्रदर्शन करने की अनुमति देते हैं। कोर्ट ने इस बारे में हिमत लाल के शाह मामले में आए फैसले का भी जिक्र किया। इस मामले में कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य, क़ानून के द्वारा किसी भी सार्वजनिक स्थल या गली में सभा आयोजित करने का अधिकार नहीं छीन सकता।
यहाँ तक ब्रिटिश सरकार ने भी मरीना बीच पर सभा की इजाजत दी थी
कोर्ट ने आगे कहा, “मरीना बीच पर राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ने 30 मार्च 1919, 13 अगस्त 1920 और 15 अगस्त 1933 को सत्याग्रह, असहयोग कार्यक्रम और श्रमिकों और छात्रों के मुद्दों को लेकर सभा की थी...6 किलोमीटर लंबे इस बीच का एक हिस्सा थिलगर थिडल (मैदान) कहा जाता है क्योंकि उस स्थान पर महान स्वतंत्रता सेनानी बालगंगाधर तिलक ने सभा को संबोधित किया था...ब्रिटिश सरकार/गवर्नर को साधुवाद देना चाहिए जिन्होंने मरीना बीच पर सभा के आयोजनों पर कभी प्रतिबन्ध नहीं लगाया...इसलिए जब ब्रिटिश सरकार ने ऐसा नहीं किया तो इस बारे में प्रतिवादी ने कोर्ट में जो दलील दी है उसको स्वीकार नहीं किया जा सकता।”
कोर्ट ने इसके बाद अथॉरिटीज को निर्देश दिया कि वह इस कार्यकर्ता को एक दिन के लिए शांतिपूर्ण सभा करने की अनुमति दे और इसके लिए जो भी जरूरी एहतियात या प्रतिबन्ध उसे उचित लगे, वह लगा सकता है।