फटकार के बाद केंद्र ने ट्रिब्यूनल में सीसीटीवी लगाने पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, रिपोर्ट संतोषजनक [आर्डर पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को ट्रिब्यूनल में सीसीटीवी कैमरों की स्थापना पर केंद्र द्वारा की गई प्रगति रिपोर्ट पर संतोष व्यक्त किया।
केंद्र द्वारा दाखिल स्टेटसरिपोर्ट के अवलोकन पर न्यायमूर्ति ए.के. गोयल और न्यायमूर्ति यू यू ललित ने कहा कि रिपोर्ट से पता चलता है कि "इस संबंध में पर्याप्त काम किया गया है। “
हालांकि बेंच ने उच्च न्यायालयों और केंद्र को यौन अपराधों के मामलों में पीड़ितों की पहचान के बारे में उठाई गई चिंताओं का निरीक्षण करने और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम आदि से जुड़े मामलों में गवाहों के सरंक्षण पर गौर करने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों कोनिर्देश दिया कि राज्य के न्यायाधिकरणों और राज्य न्यायिक प्राधिकरणों मेंसीसीटीवी कैमरे स्थापित किए जा सकते हैं या नहीं, इस पर विचार करें।
कानून और न्याय मंत्रालय को केंद्रीय अर्धन्यायिक प्राधिकरण के संबंध में चार सप्ताह के भीतर इस पहलू पर विचार करने का निर्देश दिया गया। साथ ही
केंद्र और उच्च न्यायालयों को निरीक्षण निकायों के साथ एक टर्मिनल की उपलब्धता का परीक्षण करने के निर्देश दिए गए। इसके अलावा कोर्ट को जब बताया गया कि विस्तृत विवरण के बाद तकनीकी विनिर्देशों का मसौदा तैयार किया गया है, बेंच ने निर्देश दिया, “ सभी विनिर्देशों के साथ-साथ मूल्य सीमा और आपूर्ति के स्रोतों को कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा अपनी वेबसाइट पर रखा जा सकता है ताकि एक समान मानक दृष्टिकोण सभी स्थानों पर अपनाया जा सके। यह लागत प्रभावी भी हो सकता है और समय बचाने के लिए निविदा प्रक्रिया की आवश्यकता को समाप्त कर सकता है। "
इसके अलावा वरिष्ठ वकील डॉ. अरुण मोहन ने "न्याय, न्यायालय और देरी" नामक एक प्रकाशन पर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया जिसमें सीसीटीवी कैमरों के संचालन पर तकनीकी विनिर्देशों का सुझाव दिया गया था। प्रकाशन के नोट लेते हुए कोर्ट ने संबंधित मंत्रालयों और उच्च न्यायालयों को इसकी व्यवहार्यता पर विचार करने का निर्देश दिया। मामले को अब 5 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
दरअसल अदालत ने पिछले हफ्ते ही, अदालत की कार्यवाही की ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग के मुद्दे पर एक कठोर दृष्टिकोण अपनाते हुए केंद्र सरकार पर दबाव बनाया था और निर्देश दिया था, " हम पहले ट्रायल कोर्ट और ट्रिब्यूनल में सीसीटीवी लगाने के पायलट प्रोजेक्ट का असर देखना चाहते हैं और उसके बाद ही उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में इसकी संभावना की तलाश करेंगे।आपका इस मुद्दे पर इतना कठोर रवैया क्यों है ? यह एक गंभीर मुद्दा है। आप सुनवाई की अगली तारीख तक ट्रिब्यूनल में सीसीटीवी लगाने को लेकर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें। "
प्रद्युमन बिष्ट द्वारा दायर एक याचिका पर ये टिप्पणियां की गईं, जिन्होंने अदालत की कार्यवाही में पारदर्शिता बढ़ाने की मांग की है। याचिका पर सुनवाई के बाद कोर्ट ने पिछले साल मार्च में निर्देश दिया था कि कम से कम प्रत्येक राज्य / संघ राज्य क्षेत्र के दो जिलों में सीसीटीवी कैमरों को अदालतों के अंदर और अदालत परिसरों के महत्वपूर्ण स्थानों पर स्थापित किया जा सकता है। ये काम तीन महीने के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया गया था। इसके बाद, अगस्त में, उसने सभी अधीनस्थ न्यायालयों में भी सीसीटीवी कैमरे स्थापित करने के लिए जरूरी माना था। न्यायालय ने यह भी कहा था कि इस तरह की स्थापना चरणबद्ध तरीके से की जानी चाहिए जैसा कि संबंधित उच्च न्यायालयों द्वारा उपयुक्त माना जाए। इसलिए यह निर्देश दिया गया था कि इस तरह की स्थापना के लिए एक महीने के भीतर समय निर्धारित किया जाए, और इसकी सूचना दो महीने के भीतर सर्वोच्च न्यायालय को दी जाए। ऑडियो रिकॉर्डिंग के मुद्दे पर कोर्ट ने कहा था, ये भी किया जा सकता है।