सरकार ने लोकसभा में कहा, मेमोरेंडम ऑफ़ प्रोसीजर को अंतिम रूप देने में ज्यादा समय लगेगा
मेमोरेंडम ऑफ़ प्रोसीजर को अंतिम रूप देने में ज्यादा समय लगेगा। केंद्रीय क़ानून और न्याय मंत्री ने बुधवार को लोकसभा में यह जानकारी दी।
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 16 दिसंबर 2015 को सरकार को निर्देश जारी कर आदेश दिया था कि वह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए एक नया मेमोरेंडम ऑफ़ प्रोसीजर (एमओपी) तैयार करे। इसके बाद से अभी तक एमओपी को केंद्र और कॉलेजियम के बीच गेंद की तरह उछाला जा रहा है और दोनों ही पक्ष कई मुद्दों पर अपने-अपने स्टैंड पर कायम हैं।
सांसद तेजप्रताप सिंह यादव ने लोकसभा में यह प्रश्न पूछा था कि वर्तमान न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता, विशेषकर जजों की नियुक्ति में, है कि नहीं। उन्होंने यह भी जानकारी मांगी कि एमओपी का स्टेटस क्या है और न्यायिक नियुक्ति पर इसका क्या असर पड़ रहा है।
इसके जवाब में कानून राज्यमंत्री पीपी चौधरी ने कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति सीएस करणन के बारे में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि इस फैसले के बाद केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को 11 जुलाई 2017 को पत्र लिखकर एमओपी के ड्राफ्ट में सुधार की जरूरत बताई थी।
इसके बाद उन्होंने कहा, “चूंकि वर्तमान एमओपी में सुधार को अंतिम रूप देने में समय लग सकता है” सो न्यायिक नियुक्तियों के लिए वर्तमान एमओपी का सहारा लिया जा रहा है।
चौधरी ने आगे कहा कि 2016 में सुप्रीम कोर्ट में चार जजों और हाई कोर्ट के 14 मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट में 126 अन्य नियुक्तियां की गईं जो कि एक कैलंडर वर्ष में सर्वाधिक नियुक्ति है, ऐसा दावा किया गया।
उन्होंने कहा, “2017 में सुप्रीम कोर्ट में 5, हाई कोर्टों में 8 मुख्य न्यायाधीशों और हाई कोर्टों में 115 नई नियुक्तियां भी की गईं”।