आधार मामला : कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज आनंद बीरारेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार बनने के लिए आवेदन दिया
कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति आनंद बीरारेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट में Aadhaar (Targeted Delivery of Financial and other Subsidies, Benefits and Services) Act, 2016 के प्रावधानों को चुनौती देकर इस मामले में पक्षकार बनने का आवेदन किया है।
अपनी याचिका में न्यायमूर्ति बीरारेड्डी ने कहा है कि यह अधिनियम नागरिक और और गैर-नागरिकों में भेद नहीं करता। याचिका में आरोप लगाया गया है कि इससे इस अधिनियम का दुरुपयोग होता है और इससे सुरक्षा पर गंभीर ख़तरा हो सकता है।
इस याचिका में कहा गया है, “...आधार अधिनियम नागरिक/प्रवासी/आप्रवासी (कानूनी और गैर कानूनी) के बीच फर्क करने में चूक गया है। ...आधार अधिनियम के तहत पंजीकरण की शर्त है पंजीकरण के लिए आवेदन से पहले के 12 महीनों में से 182 दिनों तक भारत में निवास...
...भारत की अर्थव्यवस्था को देखते हुए, अगर देश के नागरिकों की दशा को ठीक किए बगैर गैर-नागरिकों को सब्सिडी या अन्य लक्षित वित्तीय मदद देने का कोई संवैधानिक तरीका अपनाया जाता है तो यह मनमाना कार्य होगा और इसे बिना दिमाग लगाए किया गया काम माना जाएगा।”
आवेदन में कहा गया है कि यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन भी है। आधार अधिनियम धारा 4(3) के अधीन है और इस वजह से इसे किसी भी कार्य के लिए ‘पहचान का सबूत’ माना जाएगा और इस तरह यह विभिन्न वर्ग के लोगों में कोई भेद नहीं करेगा...”।
आवेदन में आगे कहा गया है कि यद्यपि सभी आंकड़े यूआईडीएआई के पास हैं, पर इन आंकड़ों की चोरी, धोखाधड़ी, अपराध या सुरक्षा या निजता के हनन जैसे अपराध होते हैं तो इससे निपटने का उसके पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है। इसके अलावा, इसको आवश्यक बनाए जाने पर भी विवाद है और यह भी कि अगर लोग सेवाओं से इसको लिंक नहीं कराते हैं तो उनकी यह सेवा बंद कर दी जाएगी।
आवेदन में कहा गया है कि इन सब बातों को देखते हुए आधार विधेयक को ‘मनी बिल’ के रूप में पास करना देश के संविधान के साथ धोखा है। याचिका में कोर्ट से आधार अधिनियम को उपरोक्त आधार पर असंवैधानिक करार देने का आग्रह किया गया है क्योंकि यह अन्य बातों के अलावा लोगों के निजता संबंधी मौलिक अधिकार का हनन करता है।