मानसिक विकलांगता से ग्रस्त व्यक्ति को अपने भाई को गुर्दा देने की इजाजत देने से बॉम्बे हाई कोर्ट ने इंकार किया [निर्णय पढ़ें]

Update: 2017-12-28 13:40 GMT

बॉम्बे हाई कोर्ट ने मानसिक रूप से अस्थिर एक व्यक्ति को अपना गुर्दा अपने भाई को देने की इजाजत नहीं दी।

इस व्यक्ति के माता-पिता और दो बेटों ने हाई कोर्ट से अपील की थी कि एक बेटा जो कि मानसिक रूप से अस्थिर है, मानव अंग प्रत्यारोपण और ऊतक अधिनियम, 1994 की धारा 2(f) के तहत अपना अंग या ऊतक दान करना चाहता है। उन्होंने तर्क दिया कि अंग दान करने वाले को हल्के या मध्यम मानसिक मंदता से पीड़ित होने की स्थिति में यह फैसला किया जा सकता है कि क्या वह खुद के लिए निर्णय लेने की स्थिति में है या क्या वह यह जानता है कि वह क्या करने जा रहा है या वह इस इसके लिए सब कुछ जानते हुए अपनी सहमति देने की स्थिति में है कि नहीं।

कोर्ट को “सर्वाधिक हित की जांच” के तहत इस पर ध्यान देने को कहा गया। कोर्ट से कहा गया कि चूंकि यह मानसिक रूप से मंद व्यक्ति और उसके भाई के लिए भी अच्छा है जो कि गुर्दे की बीमारी से ग्रस्त है। उनके अनुसार, अगर गुर्दे की बीमारी से पीड़ित उसका भाई अगर ज़िंदा रहता है तो यह मानसिक मंदता से शिकार व्यक्ति के लिए भी अच्छा होगा क्योंकि ठीक हो जाने पर उसका भाई उसकी बेहतर देखभाल कर पाएगा।

लेकिन कोर्ट ने कहा कि “सर्वाधिक हित की जांच” को मानव अंग प्रत्यारोपण और ऊतक अधिनियम, 1994 के विशिष्ट प्रावधानों को देखते हुए लागू नहीं किया जा सकता।

इस व्यक्ति के साथ कोर्ट रूम में हुई बातचीत में न्यायमूर्ति आरएम बोर्डे और न्यायमूर्ति विभा कंकणवाडी की पीठ ने पाया कि वह व्यक्ति उस मुद्दे को नहीं समझ पा रहा था जिसके बारे में उसे पूछा गया था और वह इस कार्य के परिणाम से अवगत नहीं है। निर्णय लेने की उसकी शक्ति काफी बाधित है और वह इस तरह का व्यक्ति नहीं है जो अपना अंग दान करने की स्वेच्छा से अनुमति दे सके।


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