हिंदू से शादी करने वाली पारसी महिला को सुप्रीम कोर्ट ने दिलाया मां- पिता के अंतिम संस्कार रस्मों के लिए प्रवेश का अधिकार
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू से शादी करने वाली पारसी महिला को अपने मां- पिता के अंतिम संस्कार की रस्मों के लिए पारसी टावर ऑफ साइलेंस में प्रवेश का रास्ता साफ कर दिया।
गुरुवार को वलसाड पारसी अंजुमन ट्रस्ट ने पारसी महिला को उनके अभिभावकों के अंतिम संस्कार की रस्मों के लिए टेंपल ऑफ साइलेंस में प्रवेश की इजाजत देने संबंधित अंडरटेकिंग कोर्ट में दाखिल की जिसे स्वीकार कर लिया गया।
ट्रस्ट की ओर से सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ में वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने एक मेमो सुप्रीम कोर्ट को सौंपा। इसके मुताबिक महिला व उनकी बहन को को पारसी टेंपल ऑफ साइलेंस में पैरेंटस की अंतिम संस्कार संबंधी रस्मों के लिए इजाजत दी गई है।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगवाई वाली संविधान पीठ ने इस पर मुहर लगाते हुए अंतरिम आदेश जारी कर दिया। कोर्ट अब मुख्य मामले की सुनवाई 17 जनवरी को करेगा।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि प्रथम दृष्टया दूसरे धर्म में की गई शादी के बाद महिला के धर्म उसके पति के धर्म व आस्था में समाहित होने का कोई कानूनी सिद्धांत नहीं है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर शादी स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत हुई है तो पहले से ही ये नहीं कहा जा सकता कि महिला ने शादी के बाद पति के धर्म और आस्था को अपना लिया है। ये सिर्फ महिला ही तय कर सकती है कि उसकी धार्मिक पहचान क्या होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने वलसाड पारसी अंजुमन ट्रस्ट को कहा है कि वो कठोर ना बने और पारसी धर्म से बाहर शादी करने करने वाली पारसी महिला को पिता की मृत्यु के बाद प्रार्थना संबंधी रस्मों के लिए टेंपल ऑफ साइलेंस जाने की इजाजत देने पर विचार करे। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने ट्रस्ट को कहा कि कठोरता धर्म के सिद्धांत को समझने के लिए हमेशा सही नहीं होती।कोर्ट ने कहा कि महिला प्रार्थना के लिए जाना चाहती है।
ट्रस्ट की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम को कोर्ट ने कहा था वो इस पर अगले हफ्ते अपना रुख कोर्ट को बताएं कि क्या वह याचिकाकर्ता गोलरुख एम गुप्ता नामक पारसी महिला को अपने अभिभावकों के अंतिम संस्कार से संबंधित रस्मों में भाग लेने की इजाजत दे सकता है ?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई कानून नहीं है कि महिला की शादी के बाद अपना धर्म खो देती है। जबकि स्पेशल मैरिज एक्ट इस बात का प्रावधान करता है कि अगर दो लोग जो अलग-अलग धर्म के हैं और शादी करते हैं तो वह अपने-अपने धर्म के साथ रह सकते हैं।
महिला की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट में कहा कि एक आदमी पारसी धर्म के बाहर जाकर अगर शादी करता है तो उसका धर्म धर्म बना रहता है लेकिन महिला अगर धर्म केबाहर जाकर शादी करती है तो उसकी धार्मिक पहचान नहीं रह जाती और वह पारसी धर्म और आस्था के हिसाब से नहीं चल सकती। ये सीधे सीधे मौलिक अधिकारों का हनन है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को ये तय करना है कि क्या पारसी महिला किसी दूसरे धर्म के पुरुष से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने के बाद अपने धर्म का अधिकार खो देती है?
गुलरख गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर गुजरात हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनोती दी है जिसमें हाई कोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि पारसी महिला अपने धर्म का अधिकार खो देती है जब वो किसी दूसरे धर्म के पुरुष से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करती है। इतना ही नही हाई कोर्ट ने ये भी कहा था कि अब आप पारसी नही रही भले ही आपने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी की है।गुलरख गुप्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि वो पारसी है लेकिन उन्होंने हिंदू से शादी की है।उनके पिता 80 साल के है और उन्हें पता चला कि अगर पारसी महिला दूसरे धर्म में शादी कर ले तो उसे पति के धर्म का ही मान लिया जाता है,और पारसी मंदिर में पूजा के अलावा अंतिम संस्कार के लिए पारसियों के टावर आफ साइलेंस में भी प्रवेश नहीं करने दिया जाता। इसके बाद उन्होंने पारसी ट्रस्टियों से बात की तो कहा गया कि वो अब पारसी नहीं रहीं। स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत पति के धर्म में परिवर्तित हो गई है।महिला इस मामले को लेकर गुजरात हाईकोर्ट गईं लेकिन हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। हालांकि पारसी पंचायत की दलील थी कि ये स्पेशल मैरिज एक्ट का मामला नहीं बल्कि पारसी पर्सनल ला का है और ये कई सौ साल पुरानी प्रथा है। इस संबंध में सारे दस्तावेज और सबूत मौजूद हैं।