दिल्ली हाईकोर्ट ने जेएनयू में यौन उत्पीडन समिति के दफ्तर पर यथास्थिति बरकरार रखने के आदेश दिए [आर्डर और याचिका पढ़े]

Update: 2017-09-22 10:24 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय को कहा है कि वो यौन प्रताडना के खिलाफ बनाई गई  सेंसडाइजेशन कमिटी (GSCASH) के आफिस को सील करने के मामले में यथास्थिति बरकार रखे।

एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरिशंकर ने जेएनयू प्रशासन और यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन ( UGC) को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। दरअसल कुछ छात्रों व क्षिक्षकों ने जेएनयू में GSCASH को बंद करने के निर्णय के खिलाफ याचिका दाखिल की है।

याचिकाकर्ताओं ने प्रशासन की 269 वीं कार्यकारी परिषद की बैठक के फैसले को रद्द करने की मांग की है। इस फैसले के मुताबिक यौन प्रताडना को लेकर यूजीसी के 2015 के नियमों के तहत GSCASH  अब इंटरनल कंपलेंट कमेटी ( ICC) में बदल दिया जाएगा। याचिका में ये भी कहा है कि यूजीसी के पास इन नियमों को लागू करने के लिए यूजीसी एक्ट 1956 के तहत अधिकार नहीं है।याचिका में ये भी कहा गया है कि खासतौर पर जेएनयू में अनुशासन से जुडे मामलों में यूजीसी के नियम कानून लागू नहीं होते। जेएनयू अनुशासन खासतौर पर कैंपस में यौन उत्पीडन जैसे मुद्दों पर अपने विधान, नियम और नियंत्रण से चलता है। याचिका में कहा गया है कि जेएनयू में प्रिवेंशन ऑफ सेक्सुअल हेरेशमेंट एट वर्कप्लेस 2013 जेएनयू में लागू नहीं होता क्योंकि यहां दशक पहले से ही नियम बने हुए हैं। वैसे भी GSCASH को लेकर 2015 में बनाए गए नियम 2013 के एक्ट से मेल नहीं खाते।

इसी दौरान ये भी कहा गया है कि जेएनयू में इस संबंध में नियम लैंगिक तौर पर समानता वाले हैं जबकि यूजीसी के नियम महिलाओं के लिए हैं।इसके नियम जांच प्रक्रिया ज्यादा विस्तृत हैं और जांच के दौराम पीडित को संरक्षण दिया जाता है। यहां तक कि जांच के दौरान पीडित को प्रतिवादी के सामने तक नहीं किया जाता।

याचिका में GSCASH के सामने लंबित शिकायतों और जांच पर भी चिंता जताई गई है। कहा गया है कि GSCASH को बदलने के दौरान इसके पुराने रिकार्ड से छेडछाड या बदलाव या इन्हें नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।


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