रोहिंग्या मुस्लिम मामले में चेन्नई का संगठन पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, कहा ना मिले रोहिंग्या को देश मे रहने की इजाजत
रोहिंग्या मुस्लिम मामले में अब चेन्नई के एक संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है।
इंडिक कलेक्टिव संगठन ने अर्जी में कहा है कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में रहने की इजाजत देना अशांति, हंगामा और दुर्दशा को आमंत्रित करने के समान है। अर्जी में रोहिंग्या मुसलमान को 'इस्लामिक आतंक' का चेहरा बताया गया है और कहा गया है कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में रहने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
अर्जी में ये भी कहा गया है कि म्यांमार ने रोहिंग्या मुसलमान को नागरिकता देने से इनकार कर दिया था जिसके बाद म्यांमार में हिंसा करने के बाद रोहिंग्या मुसलमान भारत भागकर आ गए हैं। जो जम्मू- कश्मीर, हैदराबाद, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली-एनसीआर आदि जगहों पर अवैध रूप से रह रहे हैं। अर्जी में रोहिंग्या मुसलमानों से संबंधित मामले में पक्षकार बनने की इजाजत मांगी गई है।
इससे पहले चार सितंबर को रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस भेजने से रोकने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को कोई अंतरिम आदेश जारी करने से इंकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने ASG तुषार मेहता से कहा कि वो केंद्र सरकार से इस मसले पर निर्देश लेकर कोर्ट को बताएं। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में 11 सितंबर को सुनवाई सुनवाई करेगा।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि मामला 40 हजार रोहिंग्या से जुडा है। फिलहाल केंद्र सरकार ये आश्वासन दे कि वो रोहिंग्या को वापस भेजने लेकर कोई कदम नहीं उठाएगी। लेकिन केंद्र की ओर से ASG तुषार मेहता ने फिलहाल मामले में कोई पक्ष रखने से इंकार कर दिया।
गौरतलब है कि बर्मा से भागकर भारत आए रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस बर्मा भेजने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
ये याचिका दो शरणार्थियों ने दाखिल की है जिन्होंने 14 अगस्त 2017 की रॉयटर की खबर का हवाला दिया है। इसके तहत केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को गैरकानूनी रूप से देश में रह रहे सभी विदेशी नागरिकों, जिनमें रोहिंग्या भी शामिल हैं, उनकी पहचान करने और निर्वासित करने के आदेश दिए हैं। रोहिंग्या बौध धर्म बहुलता वाले बर्मा में कारवाई का सामना कर रहे हैं। देश में इस वक्त करीब 40 हजार रोहिंग्या मुस्लिम बताए जा रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार का ये कदम संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 51 ( C) के खिलाफ है। उनका ये भी कहना है कि ये अवापसी नियम के सिद्धांत के भी खिलाफ है जिसमें कहा गया है कि किसी भी शरणार्थी को एेसे देश में वापस नहीं भेजा जाएगा जहां उसकी जान का खतरा हो। अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत याचिकाकर्ता व अन्य रोहिंग्या को राहत मिलेगी जो बर्मा में खूनी खेल, कारवाई और हिंसा से बचकर भारत आए हैं।
अर्जी में UNHRC की 2016 की रिपोर्ट को भी शामिल किया गया जिसमें बर्मा में अथॉरिटी द्वारा रोहिंग्या मुस्लिम के जीने के अधिकार, स्वतंत्रता और सुरक्षा को लेकर मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन का जिक्र किया गया है। ये भी कहा गया है कि उन्हें बर्मा की नागरिकता नहीं दी गई है जिसके कारण ये मामले और बढ गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट को ये भी बताया गया है कि रोहिंग्या मुस्लिमों के साथ बर्मा में किस तरह का बर्बर बर्ताव किया जा रहा है। खासतौर से महिलाओं व बच्चों के साथ हिंसा की जा रही है। उन्हें सिगरेट से जलाया जा रहा है। दाढी जलाई जा रही है। टार्चर किया जा रहा है, अवैध तौर पर हिरासत में रखा जा रहा है और मेडिकल सुविधाएं देने से इंकार किया जा रहा है। साथ ही उनका यौन शौषण भी किया जा रहा है।
अर्जी में कहा गया है कि भारत में शरणार्थियों की सुरक्षा को लेकर कोई कानून नहीं है और एेसे में UNHRC के नियमों को ही आधार माना जाता है। इसके तहत उन्हें देश में रहने की इजाजत दी जाती है।
याचिका में इसी आधार पर रोहिंग्या मुस्लिमों को भारत में ही रहने और उपयुक्त सुविधाएं दिलाने की मांग की गई है।