जब चीफ जस्टिस ने कहा, " ये पब्लिसिटी याचिका है, लोग लग्जरी जनहित याचिका दायर ना करें "
गैर सरकारी संगठन लोकप्रहरी की कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने समाज सुधार को लेकर आदेश जारी किए हैं लेकिन इसके महासचिव सत्य नारायण शुक्ला को नए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि कई बार ये याचिका "पब्लिसिटी इंट्रेस्ट "याचिका लगती हैं। ये "लग्जरी क्लास " की जनहित याचिकाएं हैं। इसी के साथ सोमवार को एक जनहित याचिका खारिज कर दी गई।
दरअसल इस जनहित याचिका में कहा गया था कि देश में किसी भी धर्म, जाति, संजाति, भाषा या अतिरिक्त मतलब वाली राजनीतिक पार्टियों को तीन महीने के भीतर नाम बदलने के आदेश दिए जाएं नहीं तो उसका पंजीकरण रद्द किया जाए।
सुनवाई के दौरान नाराज चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने सत्य नारायण शुक्ला से कहा कि क्या आपने कभी गरीब या दबे कुचले लोगों के लिए याचिका दाखिल की है , ये लग्जरी जनहित याचिका है जो मुख्यमंत्रियों और चुनाव आयोग के खिलाफ है। कोर्ट इस पर सुनवाई नहीं करेगा। कोर्ट कानून नहीं बनाता। राजनीतिक पार्टियों को बाहर ही लडाई करने दीजिए। इस मामले में कोर्ट का दायित्व नहीं है कि वो सुनवाई करे।
जस्टिस मिश्रा ने कहा कि ये न्यायपालिका के अधिकारक्षेत्र से बाहर है। कोर्ट को इसमें नहीं पडना चाहिए। आप कोर्ट को काम करने दें। जनहित याचिका का सिद्धांत एेसी याचिकाओं के लिए नहीं शुरु किया गया।
दरअसल लोकप्रहरी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951 के सेक्शन 29 A के तहत ये प्रावधान जोडने की मांग की थी कि सभी राजनीतिक पार्टियां ये कहेंगी कि वो संविधान के प्रति श्रद्धा और निष्ठा रखेंगी। इसके साथ साथ वो समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांत पर चलेंगी। पार्टियां ये भी कहें कि वो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता बनाए रखेंगी।
जनहित याचिका में ये भी कहा गया था कि चुनाव आयोग देश में किसी भी धर्म, जाति, संजाति, भाषा या अतिरिक्त मतलब वाली राजनीतिक पार्टियों को देखे और तीन महीने के भीतर नाम बदलने के आदेश दिए जाएं नहीं तो उसका पंजीकरण रद्द किया जाए।