चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर कितने केस दर्ज हुए, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा आंकडा

Update: 2017-09-04 12:08 GMT

चाइल्ड पोर्नोग्राफी और नाबालिग़ बच्चों से दुष्कर्म के वीडियो को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय से पूछा है कि 1 जनवरी 2016 से 31 अगस्त 2017 के बीच आपत्तिजनक कंटेंट की जानकारी मिलने के बाद उन्होंने प्रोटेक्शनऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफंसेज एक्ट यानी पॉक्सो के तहत क्या कारवाई की है ? 18 सितंबर तक गृह मंत्रालय को ये जानकारी दाखिल कोर्ट में दाखिल करनी है।

सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस मदन बी लोकूर की बेंच ने गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, फेस बुक और वाट्सएप से भी पूछा है कि 1 जनवरी 2016 से 31 अगस्त 2017 के उन्होंने कितने आपत्तिजनक कंटेंट के बारे में संबंधित अथॉरिटी को जानकारी दी है ?

दरअसल सुप्रीम कोर्ट रेप के जो वीडियो सोशल साइट पर मौजूद है उसपर कैसे रोक लगाई जा सकती है इस पर सुनवाई कर रहा है। साथ ही कोर्ट ये भी सुनवाई कर रहा है कि उन्हें सोशल मीडिया पर डालने वालों के ख़िलाफ़ क्या करवाई की जाए ?

गौरतलब है कि मार्च 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने गूगल और फेसबुक से पूछा था कि कितने मामलों में वो अमेरिकी कानूनी एजेंसियों से सहयोग करते हैं?  रेप वीडियो अपलोड होने से रोकने के लिए उनके पास क्या मैकेनिज्म है ?

NGO प्रज्जवला ने कहा था कि ये कंपनियां अमेरिकी कानून का सहयोग करते हैं तो भारत मे क्यों नहीं ?

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि क्या सोशल मीडिया पर सेक्स वीडियो अपलोड होने से रोके जा सकते हैं ? सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सर्च इंजनों से कहा था कि जब तक अपलोड हुए वीडियो को हटाया जाए, वक्त लग जाता है और एेसे में उस शख्स की साख चली जाती है, जिसका वीडियो होता है। एेसे में क्या ये संभव है कि पहले ही इन्हें रोक दिया जाए ना कि बाद में उपचार हो ?

हालांकि गूगल की ओर से कहा गया था कि ये संभव नहीं है क्योंकि हर मिनट 400 घंटे के वीडियो अपलोड होते हैं। एेसे में कंपनी को वीडियो की छानबीन करने के लिए पांच लाख लोगों की जरूरत होगी। गूगल के वकील ने कहा कि ये संभव नहीं है कि अपलोड होने वाले सभी वीडियो की जांच की जाए। अगर नोडल एजेंसी के जरिए कोई शिकायत आए तो कंपनी कारवाई कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आजकल कोई भी कुछ भी वीडियो अपलोड कर सकता है और लोग इसके लिए बिल्कुल नहीं  घबराते। एेसे में पीडित की साख को खतरा होता है ना कि अपलोड करने वाले को। वहीं केंद्र ने बताया था कि एेसे मामलो से निपटने के लिए नोडल एजेंसी का गठन किया जा रहा है।

दरअसल  रेप के जो वीडियो सोशल साइट पर मौजूद है उसपर कैसे रोक कैसे लगाई जा सकती है, और उन्हें सोशल मीडिया पर डालने वालों के ख़िलाफ़ क्या क्या करवाई हुई है, सुप्रीम कोर्ट इस बाबत सुनवाई कर रहा है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सर्च इंजन गूगल, याहू और माइक्रोसाफ्ट को नोटिस जारी कर पूछा था कि एेसे वीडियो को अपलोड होने से रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।

दरअसल एनजीओ प्रज्ज्वला ने तत्कालीन चीफ जस्टिस एचएल दत्तू को एक पत्र के साथ दुष्कर्म के दो वीडियो वाली पैन ड्राइव भेजी थी। ये वीडियो वॉट्स ऐप पर वायरल हुए थे। कोर्ट ने पत्र पर स्वतः संज्ञान लेकर सीबीआई को जांच करने व दोषियों को पकड़ने का आदेश दिया था।

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