ध्वनि प्रदूषण मामले में महाराष्ट्र सरकार मे बोंबे हाईकोर्ट के जस्टिस ए एस ओका से माफी मांगते हुए चीफ जस्टिस के पास लगाई अर्जी को वापस ले लिया है। इस अर्जी में इस मामले में जस्टिस ओका पर राज्य की मशीनरी के प्रति गंभीर पक्षपात का आरोप लगाया गया था और ध्वनि प्रदूषण संबंधी सारे मामलों की सुनवाई दूसरी बेंच को ट्रांसफर करने की मांग की गई थी।
एडवोकेट जनरल ए ए कुंभाकोनी ने हाईकोर्ट की फुल बेंच में शामिल जस्टिस ए एस ओका, जस्टिस अनूप मोहता और जस्टिस रियाज चगलैन के सामने बिना शर्त माफी का पत्र रखा। लेकिन जस्टिस ओका लगातार इस मामले में सरकार को फटकार लगाते रहे। उन्होंने कहा कि सरकार का माफीनामा प्रमाणिक नहीं है। पहले चीफ जस्टिस से माफी मांगी जानी चाहिए जिन्हें कोर्ट का आदेश ना दिखाकर गुमराह किया गया। सरकार ने 155 साल पुराने संस्थान को घुमा दिया। सरकार के ये साफ इशारा मिलना चाहिए कि वो इस संस्थान के साथ खिलवाड नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि हम एडवोकेट जनरल पर भरोसा करते हैं लेकिन महाराष्ट्र सरकार बोंबे हाईकोर्ट पर भरोसा नहीं करती।
24 अगस्त को जस्टिस ओका ने सरकार द्वारा पक्षपात के आरोपों को देखते हुए आदेश को चीफ जस्टिस के सामने रखने को कहा था। लेकिन ये आदेश चीफ जस्टिस के पास नहीं पहुंचा और याचिकाकर्ता को सुने बिना ही मामलों को ट्रांसफर करने की अर्जी मंजूर कर ली गई।
बार के सदस्यों, पूर्व जज और वरिष्ठ वकील इस मामले में जस्टिस ओका के साथ खडे हुए जिसके चलते सरकार ने अर्जी वापस लेने का पत्र कोर्ट के सामने रखा। पत्र में कहा गया कि ये दलीलें निजी तौर पर जज के खिलाफ नहीं दी गई थीं बल्कि संबंधित केसों के लिए दी गईं। सरकार के मन में जज के लिए आदर और उच्च सम्मान की भावना है। कुछ गलतफहमी की वजह से ये लगा कि सरकार न्यायपालिका के खिलाफ है जबकि सरकार की ये मंशा नहीं रही।
बोंबे बार एसोसिएशन ने सोमवार को एक प्रस्ताव पास कर राज्य सरकार और एडवोकेट जनरल की निंदा की। साथ ही बार ने चीफ जस्टिस द्वारा सुनवाई में लंबित पडे मामले को दूसरी बेंच को ट्रांसफर किए जाने के फैसले की भी निंदा की। बार ने कहा कि सरकार ने जस्टिस ओका के खिलाफ आधारहीन और गैरजरूरी पक्षपात के आरोप लगाए हैं जबकि बार जस्टिस ओका के प्रति आस्थावान है और उनकी निष्पक्षता और अखंडता पर पूरा भरोसा है।