दिल्ली हाई कोर्ट ने राजधानी दिल्ली के सिविक एजेंसी के चीफ को तलब किया कहा दिल्ली बन गई है अर्बन स्लम
दिल्ली हाई कोर्ट ने तीनों निगम के कमिश्नर को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा है कि क्यों न उनके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू की जाए।
हाई कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों ने अवैध निर्माणों की रक्षा करके भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत राईट टु शेल्टर को सुरक्षित करने का प्रयास किया है,परंतु इसके लिए राईट टु क्लीन व हेल्दी इनवायमेंट की उपेक्षा की है,जो खुद अनुच्छेद 21 का ही एक पहलू है।
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की बेंच ने शीर्ष कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि रिकार्ड पर दो सीडी पेश की गई है,जिसमें प्रतिवादियों के आचरण व अनुपस्थिति को दिखाया गया है,जिससे साफ जाहिर है कि पूरी तरह से वैधानिक प्रावधानों,सुप्रीम कोर्ट के फैसलों व इस कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन किया गया है। इतना ही नहीं इनके आचरण व अनुपस्थिति से दिल्ली के नागरिकों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले अधिकारों का भी पूरी तरह उल्लंघन है। वही दिल्ली म्यूनिशिपल काॅरपोरेशन एक्ट व अन्य सिविक लाॅ का भी उल्लंघन किया गया है। प्रतिवादी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48ए के तहत उनको दी गई ड्यूटी को पूरी करने में नाकाम रहे है।
कोर्ट इस मामले में मिस गौरी ग्रोवर की तरफ से दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है। इस याचिका में एबीपी न्यूज चैनल पर तीस मई को दिखाए गए एक कार्यक्रम ’घंटी बजाओ’ का हवाला दिया गया है। इस प्रोग्राम में दिखाया गया था कि किस तरह पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले इलाकों में से कूड़ा उठाने में कई लापरवाही बरती है। इस प्रोग्राम में कई अन्य कमियों को भी इंगित किया गया था,जिसमें झाड़ू,उचित यूनिफार्म,जूते,प्रोटेक्टिव क्लोथिंग आदि न होने की बात भी कही गई थी। इसके अलावा गटर को साफ करने,मजदूरी का भुगतान करने, कूड़ा उठाने के लिए उचित मशीनों की कमी व निगम में फंड की कमी आदि के मामलों को भी उठाया गया था।
जिसके बाद कोर्ट ने 31 मई को एबीपी न्यूज चैनल के रिपोर्टर अंकित गुप्ता को लोकल कमीश्नर नियुक्त कर दिया था ताकि वह दिल्ली में निरीक्षण करके कोर्ट को बताए कि कूड़े को किस तरह उठाया जा रहा है और किस तरह उसका निस्तारण हो रहा है। जिसके बाद गुप्ता ने अपनी रिपोर्ट कोर्ट में दायर कर दी। फुटेज को देखने के बाद कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय जिले के इलाके को छोड़कर बाकी किसी भी इलाके में कूड़े को उठाने व उसके निस्तारण के लिए उचित प्रयास नहीं किए गए। इतना ही नहीं इन फुटेज से पता चल रहा है कि कई कालोनियों में काफी भीड़ बढ़ गई है,जबकि जनसंख्या के हिसाब से न तो सीवर सिस्टम को बढ़ाया गया और न ही कूड़े आदि को उठाने के लिए पर्याप्त प्रबंध किए गए। कोर्ट ने कहा कि इस पूरी कवरेज से पता चलता है कि कूड़े को उठाने व उसके निस्तारण की पूरी प्रक्रिया निराशाजनक है,वहीं इससे यह भी पता चलता है कि अॅथारिटी अपनी इस मूल जिम्मेदारी को भी पूरा करने में असमर्थ है,जो उनको दी गई है।
कोर्ट ने कहा कि सीवरेज की क्षमता को ध्यान में रखे बिना,कूड़ा उठाने के उचित प्रबंध किए बिना,इस संबंध उचित मशीनीकरण को बढ़ाने बिना, उचित पानी की सुविधा दिए बिना और पार्क आदि की अतिरिक्त सुविधा का प्रबंध किए बिना ही प्रतिवादियों ने अवैध निर्माण की अनुमति दे दी। इतना ही नहीं ’स्वच्छ एप्प’ की भी उपेक्षा की गई,जिसके तहत नागरिक संबंधित अधिकारियों को कूड़े की जानकारी देकर उसे उठाने का आग्रह करते है। कोर्ट ने कहा कि यह नागरिकों की जिम्मेदारी नहीं है,ऐसे में हम समझ नहीं पा रहे है कि कैसे इस एप्प से कोई फायदा होगा। सीडी को देखने से पता चल रहा है कि सड़कों पर कूड़ा पड़ा है,जो लगभग सौ मीटर तक के एरिया में फैला हुआ है। ढ़लावघर कूड़े से भरे पड़े है। यह अचंभित करने वाला है कि दिल्लीवालों की यह प्राथमिक ड्यूटी बन गई है कि वह संबंधित अधिकारियों को इस कूड़े को उठवाने के लिए फोन करे।
कोर्ट ने रिपोर्टर अंकित गुप्ता व उसकी टीम की इस काम में दिए गए सहयोग के लिए प्रशंसा की। अब इस मामले में अगली सुनवाई 21 जून को होगी।