दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के फुल हाउस की मीटिंग के मिनट्स को ओपन नहीं किया जा सकता है और न ही इनको सार्वजनिक या बार काउंसिल की वेबसाईट पर ड़ाला जा सकता है।
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की खंडपीठ ने इस मामले में दिल्ली बार काउंसिल की तरफ से दायर अपील को स्वीकार कर लिया है। इस अपील में बार काउंसिल ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेश को चुनौती दी थी।न्यायालय ने कहा कि इस मामले में सीआईसी ने बार काउंसिल को सारी सूचनाएं पब्लिक डोमेन या सार्वजनिक करने का आदेश देकर गलती की है।
न्यायालय ने कहा कि बार काउंसिल की फुल हाउस मीटिंग के मिनट्स में बार काउंसिल व व्यक्तिगत चरित्र से संबंधी सूचनाएं होती हैं।
न्यायालय ने कहा कि सेक्शन 6 व 36 को देखने के बाद पता चलता है कि ऐसी मीटिंग में स्टेट बार काउंसिल आम कामकाज के अलावा वकीलों से जुड़े व्यक्तिगत मामले पर भी विचार करते हैं। ऐसे में मीटिंग के मिनट्स सार्वजनिक करने या वेबसाईट पर ड़ालने से इस तरह की व्यक्तिगत सूचनाएं व बार को मिली अन्य जानकारी भी सार्वजनिक हो जाएंगी।
न्यायमूर्ति सचदेवा ने कहा कि इन मिनट्स में उन वकीलों से संबंधी जानकारी भी होती हैं जो मेडिकल आधार पर वित्तिय सहायता मांगते हैं,ऐसे में तीसरे पक्ष की इस तरह की सूचनांए सार्वजनिक या पब्लिक डोमेन में नहीं ड़ाली जा सकती है। वहीं बार काउंसिल की आय से संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने के संबंध में सीआईसी द्वारा दिए गए आदेश पर टिप्पणी करते हुए न्यायालय ने कहा कि राज्य बार काउंसिल के खातों का आॅडिट होता है और बार काउंसिल अपने आॅडिट की रिपोर्ट की काॅपी बार काउंसिल आॅफ इंडिया को भेजने के लिए बाध्य हैं। जिसको आॅफिसल गैजेट में प्रकाशित किया जाता है।
ऐसा करने से राज्य बार काउंसिल के यह खाते अपने आप पब्लिक डोमेन में आ जाते हैं। हालांकि न्यायालय ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति ऐसी सूचना जानना चाहता है जो आरटीआई एक्ट के तहत छूट प्राप्त नहीं है तो वह इसको जानने के लिए फ्री है और इसके लिए आरटीआई एक्ट के तहत अर्जी दायर कर सकता है। बार काउंसिल ऐसी अर्जी को कानून के हिसाब से देखेगी।