पहलगाम हमले पर 'X' पोस्ट 'PM के खिलाफ', उनके नाम का गलत इस्तेमाल: हाईकोर्ट ने नेहा राठौर को अग्रिम जमानत देने से किया इनकार
Shahadat
6 Dec 2025 10:22 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) ने लोक सिंगर नेहा सिंह राठौर की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज की। यह अर्जी उनके खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पहलगाम आतंकी हमले के बारे में सोशल मीडिया पर कथित तौर पर आपत्तिजनक पोस्ट करने के लिए दर्ज FIR के संबंध में दायर की गई थी।
जस्टिस बृज राज सिंह की बेंच ने देखा कि राठौर द्वारा पोस्ट किए गए 'X' पोस्ट/ट्वीट भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ हैं और कथित पोस्ट में PM के नाम का 'गलत तरीके से' इस्तेमाल किया गया।
कोर्ट ने आगे कहा कि हालांकि संविधान का आर्टिकल 19 बोलने की आजादी की गारंटी देता है, लेकिन यह पब्लिक ऑर्डर, शालीनता या नैतिकता के लिए उचित पाबंदियों के अधीन है। इसमें कहा गया कि राठौर ने ये ट्वीट उस 'ज़रूरी समय' पर किए, जब 22 अप्रैल, 2025 को पहलगाम में दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई थी।
यह आदेश लगभग 2.5 महीने बाद आया है, जब हाईकोर्ट ने इस मामले में राठौर की FIR को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी थी। इसमें उन पर "भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने" समेत कई आरोप थे।
राठौर के खिलाफ FIR में आरोप है कि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, जिसमें पाकिस्तान समर्थित एक आतंकी संगठन ने 26 टूरिस्ट को मार डाला था, उन्होंने अपने X (पहले ट्विटर) हैंडल पर "भारत विरोधी बयान" दिए।
सरकार ने दलील दी कि ऐसे समय में जब सरकार पाकिस्तान से बदला लेने की तैयारी कर रही थी और उसने सख्त पाबंदियां लगा दी थीं, राठौर लगातार कई आपत्तिजनक पोस्ट कर रही थीं ताकि "देश की एकता पर बुरा असर पड़े, लोगों को धर्म और जाति के आधार पर एक-दूसरे के खिलाफ अपराध करने के लिए उकसाया जा सके।"
राठौर की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट पूर्णेंदु चक्रवर्ती ने दलील दी कि FIR सिर्फ वीडियो क्लिप और ट्वीट्स पर आधारित थी, जो "सरकार के खिलाफ असहमति की आवाज" थे। उन्होंने कहा कि असहमति जताना देश के खिलाफ अपराध करने या देशद्रोह करने के बराबर नहीं है।
इस बारे में उन्होंने इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य और दूसरे 2025 लाइवलॉ (SC) 362 मामले में SC के फैसले पर भरोसा किया और तर्क दिया कि विचारों और नज़रिए को ज़ाहिर करने की आज़ादी के बिना भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत गारंटी वाली इज्ज़तदार ज़िंदगी जीना नामुमकिन है।
दूसरी ओर, सरकारी वकील वीके सिंह ने कहा कि हाईकोर्ट उनके मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश (अक्टूबर, 2025 में पास) को देखते हुए मौजूदा मामले के तथ्यों और कानूनी पहलुओं को नहीं समझ सकता है, जिसमें राठौर को चार्ज तय करते समय ये सभी मुद्दे उठाने के लिए कहा गया।
उन्होंने कहा कि यह निर्देश संविधान के आर्टिकल 141 के तहत हाईकोर्ट के लिए मानना ज़रूरी है।
अभियोजन पक्ष ने आगे आरोप लगाया कि टॉप कोर्ट द्वारा उनकी याचिका खारिज किए जाने के बाद भी वह सहयोग करने के पहले के निर्देशों के बावजूद "पुलिस जांच से बच रही हैं"। इसलिए वह किसी भी राहत की हकदार नहीं हैं। आरोपों की सच्चाई पर उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने "भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री जैसे उसके नेता के खिलाफ गलत इरादे" दिखाए और "दोनों समुदायों के बीच नफरत पैदा करने" की कोशिश की।
द स्टेट ने यह भी बताया कि उनके ट्वीट दुनिया भर में खासकर पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर सर्कुलेट हुए, जहाँ उनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ नैरेटिव को सपोर्ट करने के लिए किया गया।
हाईकोर्ट का आदेश
अपने डिटेल्ड 14-पेज के ऑर्डर में हाईकोर्ट ने कथित ट्वीट्स के कंटेंट की जांच की और कहा कि उनसे लगता है कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रवाद के नाम पर वोट पाने के लिए बिहार का दौरा किया, क्योंकि "काम नहीं हुआ"।
जस्टिस सिंह ने कहा कि आवेदक ने ये ट्वीट्स ऐसे "महत्वपूर्ण समय" पर किए जब यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई और "देश की सुरक्षा और अखंडता खतरे में थी"। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि PM के नाम का इस्तेमाल अपमानजनक तरीके से किया गया था और ट्वीट्स मुख्य रूप से PM के खिलाफ है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि शुरू में राज्य ने याचिका की मेंटेनेबिलिटी के बारे में यह तर्क देते हुए शुरुआती आपत्ति जताई कि राठौर को अंकित भारती बनाम स्टेट ऑफ़ यूपी में हाईकोर्ट की फुल बेंच के फैसले के अनुसार पहले सेशंस कोर्ट जाना चाहिए था।
हालांकि, हाईकोर्ट ने इस आपत्ति को खारिज कर दिया और अंकित भारती फैसले में "स्पेशल कंडीशंस" क्लॉज की ओर इशारा किया।
इस तरह कोर्ट ने यह देखते हुए राठौर को सीधे हाईकोर्ट जाने की इजाज़त दी कि वह बिहार की रहने वाली हैं, लखनऊ की नहीं। इसलिए लोकल जूरिस्डिक्शन के बाहर उन पर अरेस्ट का खतरा है।
हालांकि, मेरिट के आधार पर हाईकोर्ट ने पाया कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले ऑर्डर से उसके हाथ बंधे हुए हैं। उसने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह ऑब्ज़र्वेशन कि राठौर "चार्ज फ्रेम करने के स्टेज पर ये सभी मुद्दे उठा सकती हैं", भारत के संविधान के आर्टिकल 141 के अनुसार उस पर बाइंडिंग है।
इसलिए हाईकोर्ट ने कहा कि वह इस स्टेज पर राठौर के खिलाफ चार्ज बनाए गए या नहीं, इस पर कोई राय नहीं दे सकता।
कोर्ट ने यह भी पाया कि राठौर इन्वेस्टिगेशन में कोऑपरेट नहीं कर रही हैं और FIR दर्ज हुए सात महीने से ज़्यादा समय बीत चुका है।
इस तरह, उनकी अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई और उन्हें कानून के तहत उपलब्ध लीगल रेमेडी लेने की आज़ादी दी गई।

