क्या BNS की धारा 111 में 'संगठित अपराध' शामिल होने के कारण गैंगस्टर एक्ट निरर्थक नहीं हो गया? हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा

Shahadat

10 July 2025 8:03 PM IST

  • क्या BNS की धारा 111 में संगठित अपराध शामिल होने के कारण गैंगस्टर एक्ट निरर्थक नहीं हो गया? हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 111, जो 'संगठित अपराध' के अपराध को परिभाषित और दंडित करती है, उसके लागू होने के साथ ही उत्तर प्रदेश गैंगस्टर और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के प्रावधान 'अनावश्यक' हो गए।

    जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार से तीन सप्ताह के भीतर जवाब भी मांगा।

    खंडपीठ ने टिप्पणी की,

    "इस न्यायालय का मानना ​​है कि BNS की धारा 111 का प्रावधान, उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम के प्रावधानों की तरह संगठित अपराध के लिए दंड से संबंधित है। इसलिए BNS की धारा 111 के शामिल होने से ऐसा प्रतीत होता है कि उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम के प्रावधान निरर्थक हो गए। हम यह भी पाते हैं कि दंड संहिता के तहत अपराध करने के संबंध में याचिकाकर्ता के विरुद्ध गैंगस्टर अधिनियम के प्रावधान लागू किए गए, जिन्हें अब BNS द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया।"

    खंडपीठ उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम की धारा 3(1) के तहत दर्ज FIR रद्द करने की मांग वाली रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता ने उक्त FIR के आधार पर गिरफ्तारी से सुरक्षा की भी मांग की थी।

    याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि सभी मूल मामलों में याचिकाकर्ता के जमानत पर होने के बावजूद गैंगस्टर एक्ट लगाया गया। तर्क दिया गया कि FIR झूठे आरोप लगाने का मामला है।

    दूसरी ओर, एजीए ने याचिका का विरोध किया और कहा कि याचिकाकर्ता इस मामले में सीधे तौर पर शामिल है और इसलिए उसे राहत नहीं मिलनी चाहिए।

    पक्षकारों की सुनवाई के बाद न्यायालय ने कहा कि BNS की धारा 111 संगठित अपराध के अपराधों से व्यापक रूप से संबंधित है, जिसमें भूमि हड़पना, अपहरण, डकैती, जबरन वसूली, साइबर अपराध, मादक पदार्थों और मानव तस्करी और आर्थिक अपराधों सहित कई गैरकानूनी गतिविधियां शामिल हैं।

    न्यायालय ने आगे कहा कि BNS की धारा 111 के शामिल होने से उत्तर प्रदेश गैंगस्टर अधिनियम निरर्थक हो गया।

    अगला अवलोकन यह भी था कि दंड संहिता के तहत अपराध करने के संबंध में याचिकाकर्ता के विरुद्ध गैंगस्टर अधिनियम लगाया गया था, जिसे अब BNS द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया।

    इस प्रकार, यह देखते हुए कि मामले पर विचार की आवश्यकता है, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान करते हुए नोटिस जारी किया।

    गौरतलब है कि हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट के मनमाने ढंग से लागू किए जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की।

    उदाहरण के लिए, पिछले साल हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों की कई मामलों में बिना उचित प्रक्रिया अपनाए गैंगस्टर एक्ट लागू करने के लिए तीखी आलोचना की थी।

    इसके अलावा, हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यूपी सरकार ने गैंग चार्ट तैयार करने के संबंध में न्यायिक निर्देशों का पालन करते हुए पिछले साल दिसंबर में व्यापक दिशानिर्देश जारी किए थे।

    हालांकि, कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बार-बार निर्देशों और यूपी सरकार द्वारा जारी विस्तृत दिशानिर्देशों के बावजूद, गैंग चार्ट यांत्रिक तरीके से तैयार किए जाते रहे।

    हाल ही में, हाईकोर्ट की एकल पीठ ने मुज़फ़्फ़रनगर के ज़िला मजिस्ट्रेट, सीनियर पुलिस अधीक्षक और थाना प्रभारी को मामले में गैंगस्टर एक्ट के 'दुरुपयोग' को लेकर अपने 'कदाचार और लापरवाही' के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया।

    हाल ही में हाईकोर्ट ने व्यक्ति को जेल में रखने के लिए कथित तौर पर उसके ख़िलाफ़ 1986 के अधिनियम का बार-बार और मनमाने ढंग से इस्तेमाल किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई थी।

    गैंगस्टर अधिनियम लागू करने को 'कानून का सरासर दुरुपयोग' करार देते हुए जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने संबंधित जिला मजिस्ट्रेट, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और थाना प्रभारी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अपने 'कदाचार और लापरवाही' के बारे में स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया।

    दरअसल, 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को अधिनियम के प्रावधानों के क्रियान्वयन हेतु विशिष्ट मानदंड या दिशानिर्देश तैयार करने की वांछनीयता पर विचार करने का निर्देश दिया था। इस निर्देश के अनुसरण में राज्य सरकार ने 2 दिसंबर, 2024 को एक विस्तृत चेकलिस्ट के साथ कुछ निर्देश जारी किए।

    इन दिशानिर्देशों को बाद में सुप्रीम कोर्ट द्वारा SHUATS यूनिवर्सिटी के निदेशक विनोद बिहारी लाल से जुड़े हालिया मामले में अपनाया गया और कानूनी रूप से लागू किया गया। खंडपीठ ने अधिकारियों को दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करने का भी निर्देश दिया।

    हाल ही में, हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को निर्देश दिया कि वे 1986 के अधिनियम के तहत गैंग चार्ट तैयार करने के संबंध में न्यायिक दिशानिर्देशों और निर्देशों के निरंतर गैर-अनुपालन की जांच करें।

    Case title - Vijay Singh vs. State Of U.P. And 3 Others

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