पुलिस को विचाराधीन मामलों में वकीलों से संपर्क करने से रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाए जाएंगे: यूपी सरकार ने हाईकोर्ट में बताया
Shahadat
17 July 2025 1:45 PM

इलाहाबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने बताया की वह पुलिसकर्मियों को न्यायालय की अनुमति के बिना मुकदमे के अधीन स्थानों पर जाने और न्यायालय में विचाराधीन मामलों में पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों से सीधे संपर्क करने से रोकने के लिए राज्यव्यापी दिशानिर्देश बनाएगी।
यह दलील जौनपुर के एक गाँव में गाँव सभा की ज़मीन पर अतिक्रमण का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान दी गई। 90 वर्षीय याचिकाकर्ता ने स्थानीय पुलिस अधिकारियों पर याचिका वापस लेने के लिए उन्हें धमकाने का आरोप लगाया।
बाद में उनके वकील ने यह भी आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके घर पर छापा मारा था। 11 जुलाई को हाईकोर्ट ने आरोपों को गंभीरता से लेते हुए इस बात पर ज़ोर दिया कि वकीलों की उनके पेशेवर कर्तव्यों के पालन के लिए जाँच करने का चलन स्वीकार्य नहीं है।
सुनवाई की अगली तारीख (15 जुलाई) को जस्टिस जे.जे. मुनीर की पीठ ने जौनपुर के पुलिस अधीक्षक के व्यक्तिगत हलफनामे को रिकॉर्ड में लिया, जिसमें कहा गया कि जाँच लंबित रहने तक दो पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया। पीठ को बताया गया कि संबंधित अन्य पुलिसकर्मियों को भी कारण बताओ नोटिस जारी किए गए।
गौरतलब है कि पीठ को यह भी बताया गया कि पुलिस अधीक्षक ने 12 जुलाई, 2025 को एक जिला-व्यापी आदेश भी जारी किया, जिसमें जौनपुर के सभी पुलिस थानों को निर्देश दिया गया था कि वे:
(i) न्यायालय की अनुमति के बिना मुकदमे से संबंधित स्थानों का दौरा न करें।
(ii) न्यायालय में विचाराधीन मामलों में आवेदक के अधिवक्ता से सीधे संपर्क न करें।
सुनवाई के दौरान, एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल ने एडवोकेट रवि आनंद अग्रवाल की सहायता से न्यायालय को सूचित किया कि राज्य सरकार को सभी जिलों में लागू होने वाले समान दिशानिर्देश पूरे राज्य में तैयार करने के लिए दस दिनों की आवश्यकता होगी।
यह अनुरोध स्वीकार करते हुए न्यायालय ने राज्य सरकार और जौनपुर के पुलिस अधीक्षक को आगे हलफनामा दाखिल करने के लिए दस दिन का समय दिया।
मामले को अगली सुनवाई के लिए 28 जुलाई, 2025 को निर्धारित किया गया।
हाईकोर्ट की 11 जुलाई की टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के हाल ही के प्रथम दृष्टया मत की पृष्ठभूमि में आई कि अभियोजन एजेंसियों/पुलिस द्वारा मुवक्किलों को दी गई जानकारी या सलाह के संबंध में कानूनी पेशेवरों को तलब करना अस्वीकार्य है और कानूनी पेशे की स्वायत्तता के लिए खतरा है।
सुप्रीम कोर्ट ने मुवक्किलों को दी गई कानूनी राय के संबंध में जाँच एजेंसियों द्वारा वकीलों को तलब करने के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए एक मामला भी शुरू किया।
Case title - Gauri Shankar Saroj vs. State of U.P. and others