आरोपों में बदलाव की मांग करने का अधिकार न शिकायतकर्ता को, न आरोपी को; यह शक्ति केवल अदालत के पास: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Praveen Mishra
21 Nov 2025 11:05 PM IST

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि धारा 216 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत आरोपों में संशोधन या नया आरोप जोड़ने की शक्ति केवल न्यायालय के पास होती है। न तो शिकायतकर्ता और न ही आरोपी—किसी भी पक्ष को यह अधिकार नहीं है कि वे स्वयं आरोप जोड़ने/बदलने के लिए आवेदन कर सकें।
जस्टिस अब्दुल शाहिद की एकलपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए वाराणसी के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/FTC-II के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक शिकायतकर्ता के आवेदन पर ट्रायल के बाद के चरण में आरोपी के विरुद्ध POCSO Act के कठोर प्रावधान जोड़ने की अनुमति दे दी गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि:
सत्याम शर्मा (आरोपी-रिवीज़निस्ट) ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
उनका कहना था कि—
• जाँच में यह सामने आया कि पीड़िता बालिग थी,
• इसलिए जाँच अधिकारी (IO) ने चार्जशीट में जानबूझकर धारा 3/4 POCSO नहीं लगाई थी।
• आरोपी ने यह भी बताया कि उसने और पीड़िता ने जनवरी 2020 में विवाह किया था और फरवरी 2020 में वैवाहिक समझौता किया था।
• अंत में यह दलील भी दी गई कि धारा 216 CrPC के तहत किसी पक्ष द्वारा आवेदन देना कानूनन संभव ही नहीं है।
हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ
हाईकोर्ट ने सबसे पहले पीड़िता के बयानों में महत्वपूर्ण विरोधाभासों की ओर ध्यान दिलाया, जिन्हें ट्रायल कोर्ट ने नजरअंदाज़ कर दिया था।
• धारा 161 CrPC के बयान में पीड़िता ने कहा कि वह पिछले 3 महीनों से आरोपी के साथ रिश्ते में थी और उसने अपनी उम्र साबित करने के लिए आधार कार्ड व कक्षा 8वीं की मार्कशीट भी दी।
• लेकिन धारा 164 CrPC के बयान में उसने कहा कि रिश्ता तीन साल से था और वह धमकी में थी।
• बाद में उसने आरोप लगाया कि एक पुलिस इंस्पेक्टर ने उसे ब्लैंक पेपर पर साइन कराए और धमकाया कि वह “3 साल” की जगह “3 महीने” लिखे।
इसके अलावा, शिकायतकर्ता (पीड़िता के पिता) ने स्वीकार किया कि आरोपी द्वारा धमकाने के लिए उपयोग की गई कथित पिस्तौल प्लास्टिक की खिलौना पिस्तौल थी। जब उनसे पूछा गया कि क्या उनकी बेटी जानती थी कि पिस्तौल नकली है, तो वे चुप रहे।
धारा 216 CrPC पर कोर्ट की स्पष्ट व्याख्या
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय P. Kartikalakshmi v. Sri Ganesh (2014) पर भरोसा करते हुए कहा—
• धारा 216 CrPC एक सक्षमकारी (enabling) प्रावधान है,
• इसका उद्देश्य केवल यह है कि कोर्ट स्वयं—किसी तथ्य या त्रुटि के संज्ञान में आने पर—आरोप में संशोधन कर सके।
• कोई भी पक्ष—न शिकायतकर्ता, न आरोपी, और न ही अभियोजन—आरोप में संशोधन की मांग करने का अधिकार नहीं रखता।
कोर्ट ने चेतावनी दी कि यदि पक्षकारों को ऐसे आवेदन देने की अनुमति दी जाए तो “अदालतें कभी भी मुकदमे को समय पर समाप्त नहीं कर पाएंगी और स्पीडी ट्रायल की अवधारणा नष्ट हो जाएगी।”
न्यायालय का निर्णय
हाईकोर्ट ने कहा कि अदालत को यह शक्ति है कि वह निर्णय सुनाए जाने से पहले कभी भी, यदि आवश्यक लगे, स्वयं आरोप में बदलाव कर सकती है—लेकिन पक्षकार इसका दावा नहीं कर सकते।
इसी आधार पर हाई कोर्ट ने 21 फरवरी 2025 के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए आरोपी की क्रिमिनल रिवीज़न याचिका स्वीकार कर ली।

