यदि मूल वाद उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के लागू होने से पहले दायर किया गया था तो यूपी जेडए एंड एलआर एक्ट के तहत उपलब्ध उपचार उपलब्ध रहेंगे: इलाहाबाद हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
24 Dec 2024 12:42 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 के तहत उपचार उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के लागू होने से पहले दायर मुकदमे में डिक्री के खिलाफ पुनरीक्षण दायर करने के इच्छुक आवेदक के लिए उपलब्ध रहेंगे।
जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने कहा,
“कोई भी निरसन कानून जो पहले के कानून को निरस्त करता है, वह किसी पक्ष को उपलब्ध उपचारों को प्रभावित नहीं करेगा जो उस पक्ष को उस तारीख को उपलब्ध थे जब मुकदमा दायर किया गया था। यह वादी के लिए उसी तरह अस्तित्व में रहेगा जैसे कि यह मुकदमा दायर करने की तारीख को उसके लिए उपलब्ध था। हाईकोर्ट में जाने का निहित अधिकार किसी बाद के अधिनियम द्वारा छीना जा सकता है यदि बाद वाला स्पष्ट रूप से प्रावधान करता है या इसे पढ़ने से पता चलता है कि पहले के कानून के अनुसार हाईकोर्ट में जाने का अधिकार किसी आवश्यक इरादे से छीना गया था।”
उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 की धारा 229बी के तहत दायर एक मुकदमे में पारित दिनांक 19.08.2014 के निर्णय एवं डिक्री को चुनौती देते हुए, ऐसे आदेश के विरुद्ध पुनरीक्षण की स्थिरता के बारे में प्रश्न उठाया गया था, जिसे एक बड़ी पीठ (डिवीजन बेंच) को संदर्भित किया गया था।
न्यायालय के समक्ष संदर्भ का प्रश्न यह था-
“जब संहिता की धारा 231 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि केवल ऐसी कार्यवाही जो संहिता के प्रारंभ होने से पहले लंबित थी, उस कानून के प्रावधानों के अनुसार तय की जाएगी जिसके तहत वे कार्यवाही दायर की गई थी, तो क्या उन कार्यवाही में पारित आदेशों/निर्णयों/डिक्री के विरुद्ध अपील या पुनरीक्षण पिछले अधिनियम यानी उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1950 या उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के प्रावधानों द्वारा शासित होगा।”
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि चूंकि यह वाद उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता के लागू होने से पहले दायर किया गया था, इसलिए उत्तर प्रदेश जेडएएलआर अधिनियम के प्रावधान उन पर लागू होंगे। इसके विपरीत, प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि राजस्व संहिता की धारा 231 के अनुसार, सभी मामलों, अपीलों, पुनरीक्षणों, समीक्षाओं का निर्णय उसी तरह किया जाएगा जिस तरह संहिता के लागू न होने पर कानून होता, यानी उस अदालत द्वारा निर्णय लिया जाएगा जो उन कार्यवाहियों पर विचार कर रही थी।
राजस्व संहिता के प्रावधानों की जांच करते हुए न्यायालय ने माना कि धारा 230(2)(डी) के अनुसार संहिता के लागू होने से पूर्व पक्षकार को उपलब्ध उपचार संहिता के लागू होने के बाद भी लागू रहेंगे।
न्यायालय ने कहा कि राजस्व संहिता की धारा 231 में केवल यह कहा गया है कि संहिता के लागू होने से पहले राजस्व न्यायालयों में लंबित सभी मामलों का निपटारा उचित कानून के प्रावधानों के अनुसार किया जाएगा, जैसे कि उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता पारित ही न हुई हो। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इसका उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1951 के प्रावधानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
कोर्ट ने कहा,
"नए अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो उत्तर प्रदेश जेडए एंड एलआर एक्ट, 1950 को निरस्त करने के बाद, किसी वादी से आगे के उपचार का अधिकार छीन लेता है जैसा कि उत्तर प्रदेश जेडए एंड एलआर एक्ट, 1950 के तहत प्रदान किया गया था, और इसलिए हम यह देखते हुए संदर्भ का उत्तर दे रहे हैं कि याचिकाकर्ता ने जो पुनरीक्षण दायर किया है, वह दायर किया जा सकता था और उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था, जिसने पुनरीक्षण के माध्यम से हाईकोर्ट में जाने के निहित अधिकार को स्पष्ट रूप से छीन लिया हो।"
कोर्ट ने इस प्रकार संदर्भ का उत्तर दिया गया।
केस टाइटल: चरण सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य। [रिट - सी नंबर - 43025/2018]
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