सेस टैक्सेशन का ब्रैकेट तय करने के लिए इंडस्ट्री का मुख्य मकसद ज़रूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
20 Nov 2025 10:33 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि किसी इंडस्ट्री के लिए सेस तय करते समय असेसिंग अथॉरिटी को इंडस्ट्री के मुख्य मकसद पर विचार करना चाहिए।
जस्टिस इरशाद अली ने कहा,
“इस मामले में जहां सवाल यह है कि क्या कोई खास इंडस्ट्री एक्ट के शेड्यूल I में शामिल इंडस्ट्री है तो आम तौर पर यह तय किया जाना चाहिए कि वह इंडस्ट्री मुख्य रूप से क्या बनाती है। हर इंडस्ट्री अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कई तरह के काम करती है, जिसके लिए कई अलग-अलग तरीके अपनाए जाते हैं। कोई खास इंडस्ट्री टैक्सेशन के दायरे में आती है या नहीं, यह उसके मुख्य मकसद और प्रोसेस से तय किया जाना चाहिए, न कि किसी खास इंडस्ट्री द्वारा अपना बिज़नेस चलाने के लिए अपनाई जाने वाली किसी सहायक या आकस्मिक प्रोसेस से।”
असेसमेंट अथॉरिटी ने पिटीशनर की डेकोरेटिव लैमिनेटेड शीट इंडस्ट्री (सेनमीका) का लगातार असेसमेंट किया। इस संबंध में पिटीशनर के खिलाफ तीन नॉन-स्पीकिंग असेसमेंट ऑर्डर पास किए गए।
परेशान होकर पिटीशनर ने अपील फाइल की, जिसमें दावा किया गया कि असेसमेंट बाहरी मटीरियल के आधार पर किया गया और कैटेगरी के बारे में सुनवाई का सही मौका दिए बिना किया गया। इसके बाद 09.03.2004 को पिटीशनर के खिलाफ एक एडवर्स असेसमेंट ऑर्डर पास किया गया, जिसमें उन्हें केमिकल इंडस्ट्री के तौर पर क्लासिफाई किया गया।
मेसर्स सरस्वती शुगर मिल्स एंड अदर्स बनाम हरियाणा स्टेट बोर्ड एंड अदर्स में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि कोई इंडस्ट्री तभी स्पेसिफाइड इंडस्ट्री होगी, जब बनाया गया फाइनल प्रोडक्ट “पूरी तरह से शेड्यूल I की एंट्री के अंदर” आता हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि रॉ मटेरियल का इस्तेमाल नए बने प्रोडक्ट से अलग है और टैक्स लायबिलिटी तय करते समय सिर्फ नए बने प्रोडक्ट को ही ध्यान में रखा जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि डेकोरेटिव लैमिनेट शीट बनाने में सिर्फ पेपर, फिनोल वगैरह का इस्तेमाल करने से पिटीशनर को पेपर इंडस्ट्री के तौर पर क्लासिफाई नहीं किया जा सकता। आगे यह भी कहा गया कि हालांकि पिटीशनर इंडस्ट्री ने कुछ हद तक केमिकल काम में हिस्सा लिया, लेकिन सेनमीका को पूरी तरह से बनाना केमिकल प्रोसेस नहीं माना जाएगा।
कोर्ट ने कहा कि सेस एक्ट एक फिस्कल कानून है। उसे एक्ट में इस्तेमाल हुए 'इंडस्ट्री' शब्द के असली मतलब को ध्यान में रखना होगा। ऐसा सिर्फ मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस में इस्तेमाल हुए कच्चे माल के आधार पर नहीं किया जा सकता।
आगे कहा गया,
“सेस एक्ट एक फिस्कल कानून है। जिस कॉन्टेक्स्ट में 'वेजिटेबल' शब्द एंट्री 15 में इस्तेमाल हुआ, उसमें 'वेजिटेबल प्रोडक्ट' का मतलब है वेजिटेबल का प्रोडक्ट या उससे बना प्रोडक्ट। आम बोलचाल में 'वेजिटेबल' को मैन्युफैक्चरिंग प्रोडक्ट नहीं माना जाता, जब तक कि हम यह न कहें कि एग्रीकल्चर कुछ खास मकसदों के लिए एक इंडस्ट्री है। अगर वेजिटेबल का बॉटैनिकल मतलब किसी भी तरह के पौधे से जुड़ा है तो शेड्यूल I में लिस्टेड कुछ इंडस्ट्री जैसे पेपर इंडस्ट्री और टेक्सटाइल इंडस्ट्री और यहां तक कि केमिकल इंडस्ट्री भी, जो दूसरी एंट्री में आती हैं, उन्हें भी एंट्री 15 में लाया जा सकता है। इस कॉन्टेक्स्ट में वेजिटेबल शब्द का बॉटैनिकल मतलब नहीं निकलता। इसलिए शुगर मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री सेस एक्ट के शेड्यूल I की एंट्री 15 में नहीं आती है।”
इस मामले में यह पाया गया कि डेकोरेटिव लैमिनेटेड शीट्स पर एक्ट के तहत कोई सेस नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि ऐसी इंडस्ट्री का एक्ट के शेड्यूल-1 में कोई ज़िक्र नहीं है, और न ही इसके फाइनल प्रोडक्ट को पेपर कहा जा सकता है।
इसलिए रिट पिटीशन को मंज़ूरी दी गई।
Case Title: M/s Century Laminating Company Ltd. Thru Deputy Manager v. Assessing Authority U.P. Pollution Control Board [WRIT - C No. - 1001686 of 2004]

