अभियुक्त को धारा 50 PMLA आवेदन की एडवांस कॉपी नहीं दी जाती है तो यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

7 Feb 2025 4:20 AM

  • अभियुक्त को धारा 50 PMLA आवेदन की एडवांस कॉपी नहीं दी जाती है तो यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि प्रवर्तन निदेशक (ED) द्वारा धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) की धारा 50 के तहत दायर आवेदन की अग्रिम कॉपी अभियुक्त को उपलब्ध नहीं कराना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि अभियुक्त को इसका विरोध करने का कोई अधिकार नहीं है।

    संदर्भ के लिए, PMLA की धारा 50 के तहत ED अधिकारी को किसी व्यक्ति को बुलाने और 2002 अधिनियम के तहत मामले के संबंध में उससे जानकारी मांगने का अधिकार है। इसके लिए बुलाए गए लोगों को ईमानदार और सही जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता होती है।

    इस मामले में शाइन सिटी घोटाले में अभी भी आगे की जांच चल रही है। चूंकि आवेदक-आरोपी जेल में है, इसलिए ED ने लखनऊ में विशेष PMLA कोर्ट से आवेदन के साथ संपर्क किया, जिसमें उसके द्वारा एकत्र की गई सामग्री/साक्ष्य के संबंध में जेल में आवेदक से पूछताछ करने की अनुमति मांगी गई।

    आवेदन को अनुमति दी गई। इस प्रकार, आवेदक ने उक्त आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया। आरोपी की ओर से पेश हुए एडवोकेट पूर्णेंदु चक्रवर्ती ने दलील दी कि जांच के बाद आरोपपत्र दाखिल होने के बाद आवेदक से आगे पूछताछ नहीं की जा सकती थी। यह भी तर्क दिया गया कि आवेदक के बयान दर्ज करने की अनुमति मांगने वाले आवेदन की अग्रिम कॉपी उसे कानूनी सलाह लेने के लिए दी जानी चाहिए थी।

    पीठ को अवगत कराया गया कि हालांकि आरोपित आदेश के खिलाफ रिकॉल आवेदन दायर किया गया, लेकिन ट्रायल कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। इसके विपरीत, ED के वकील कुलदीप श्रीवास्तव ने तर्क दिया कि आवेदक के खिलाफ आगे की जांच के दौरान विशिष्ट सबूत मिले, जिन्हें आवेदक को दिखाना जरूरी था।

    हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने दर्ज किया कि धोखाधड़ी हजारों करोड़ रुपये की थी। आवेदक के पास उसके सामने रखे गए किसी भी सबूत को स्वीकार या अस्वीकार करने का अवसर था।

    जस्टिस राजेश सिंह चौहान ने कहा कि 'पर्याप्त एहतियात' के तौर पर आवेदक को आवेदन की कॉपी दी जा सकती थी और सेवा न देना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं है।

    पीठ ने कहा,

    "दिनांक 08.01.2025 को प्रस्तुत आवेदन की अग्रिम प्रति वर्तमान आवेदक को उपलब्ध न कराना उसके प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं होगा, क्योंकि वह ऐसे आवेदन का विरोध नहीं कर सकता था। प्रश्नगत मुद्दे पर आगे की जांच चल रही है। जांच एजेंसी द्वारा कुछ सामग्री/साक्ष्य एकत्र किए गए, जो वर्तमान आवेदक से संबंधित हैं, इसलिए ऐसी सामग्री या साक्ष्य को वर्तमान आवेदक के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए और उस बिंदु पर उसका बयान दर्ज किया जाना चाहिए।"

    हालांकि, न्यायसंगत संतुलन बनाते हुए न्यायालय ने निर्देश दिया कि आवेदक का बयान लखनऊ जेल के अधीक्षक या जेलर के कक्ष में उसके कानूनी सलाहकार की उपस्थिति में दर्ज किया जाए, जिससे वह सहायता ले सके।

    केस टाइटल: उधव सिंह बनाम प्रवर्तन निदेशालय लखनऊ 2025 लाइव लॉ (एबी) 55 [आवेदन धारा 482 नंबर - 850/2025]

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