इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'नबी पैगंबर' के खिलाफ कथित FB पोस्ट पर केस रद्द करने से मना किया

Shahadat

12 Dec 2025 12:21 PM IST

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नबी पैगंबर के खिलाफ कथित FB पोस्ट पर केस रद्द करने से मना किया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक अर्जी खारिज की, जिसमें मुस्लिम समुदाय के 'नबी पैगंबर' (पैगंबर) के खिलाफ फेसबुक पोस्ट करने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई क्रिमिनल कार्रवाई को रद्द करने की मांग की गई।

    कोर्ट ने देखा कि पोस्ट में इस्तेमाल किए गए शब्द साफ तौर पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के "जानबूझकर और गलत इरादे" से लिखे गए।

    जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की बेंच ने यह भी कहा कि BNSS की धारा 528 के तहत हाईकोर्ट की अंदरूनी शक्तियों का इस्तेमाल कम-से-कम किया जाना चाहिए और समन के स्तर पर हाईकोर्ट से आरोपी के बचाव की जांच के लिए "मिनी-ट्रायल" करने की उम्मीद नहीं की जाती।

    संक्षेप में मामला

    आवेदक-आरोपी (मनीष तिवारी) पर मुस्लिम समुदाय के पैगंबर के खिलाफ फेसबुक पर पोस्ट करने के आरोपों पर BNS की धारा 302 और 353(2) के तहत आरोप लगाए गए।

    प्रॉसिक्यूशन ने कहा कि मुस्लिम कम्युनिटी के कुछ लोग इस काम से नाराज़ हैं, क्योंकि इससे उनकी धार्मिक भावनाएं आहत हो रही थीं।

    जांच के बाद एक चार्जशीट जमा की गई और चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट, सोनभद्र ने इस अपराध का संज्ञान लिया और इस साल जुलाई में एक समन ऑर्डर पास किया।

    पूरी कार्रवाई को चुनौती देते हुए आरोपी ने यह तर्क देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया कि संबंधित मजिस्ट्रेट ने अपनी न्यायिक समझ का इस्तेमाल किए बिना संज्ञान लिया। उसका मुख्य तर्क यह था कि उसने कभी मुस्लिम धर्म के खिलाफ कोई कमेंट नहीं किया।

    उसके वकील ने कहा कि आवेदक के सबसे करीबी व्यक्ति ने आवेदक के मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करके ये कमेंट किए।

    यह भी तर्क दिया गया कि आरोपी को संबंधित पुलिस मामले में झूठा फंसा रही है, क्योंकि उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता। इसलिए चार्जशीट और समन ऑर्डर को रद्द करने का आग्रह किया गया।

    जस्टिस श्रीवास्तव ने आवेदक द्वारा की गई खास टिप्पणी सहित रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री को देखने के बाद आरोपी के वकील की दलीलों में कोई दम नहीं पाया।

    सिंगल जज ने यह कहा:

    "रिकॉर्ड में मौजूद मटीरियल, जिसमें एप्लीकेंट का कमेंट भी शामिल है, उसको देखने से यह कोर्ट पाता है कि पोस्ट में इस्तेमाल किए गए शब्द साफ तौर पर समुदाय के एक खास हिस्से या देश के नागरिकों के एक खास वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के जानबूझकर और गलत इरादे से लिखे गए।"

    इस तर्क के बारे में कि मोबाइल नंबर का किसी और ने गलत इस्तेमाल किया, कोर्ट ने इन बातों को "तथ्यों से जुड़े मुद्दे" बताया, जिन पर ट्रायल कोर्ट को सबूतों के आधार पर सही फैसला सुनाना होगा।

    बेंच ने कहा कि ऐसे तथ्यात्मक विवादों को BNSS की धारा 528 के तहत कार्रवाई में पक्के तौर पर तय नहीं किया जा सकता।

    अपने ऑर्डर में हाईकोर्ट ने एस.डब्ल्यू. पलानीटकर और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य (2001) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ज़िक्र करते हुए कहा कि लागू किया जाने वाला टेस्ट यह है कि क्या "कार्रवाई के लिए काफी आधार है" न कि क्या "दोषी ठहराए जाने के लिए काफी आधार है।"

    कोर्ट ने यह भी कहा कि समन के स्टेज पर मटीरियल पर विचार करना अभी भी टेंटेटिव है।

    बेंच ने साफ़ किया कि मजिस्ट्रेट को सिर्फ़ पहली नज़र में राय दर्ज करनी है। इस शुरुआती मोड़ पर आरोपी के बचाव की डिटेल में जांच करने की उम्मीद नहीं है।

    इस तरह एप्लीकेशन खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि BNSS की धारा 528 के तहत एक्स्ट्रा जूरिस्डिक्शन का इस्तेमाल करने के लिए कोई काफ़ी आधार नहीं बने।

    Case title - Manish Tiwari vs. State of U.P. and Another

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