जामिया उर्दू उचित कक्षाओं के बिना "डिग्रियां वितरित कर रहा है": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसे डिग्री धारकों को नियुक्ति से राहत देने से इनकार किया

Avanish Pathak

27 May 2025 3:40 PM IST

  • जामिया उर्दू उचित कक्षाओं के बिना डिग्रियां वितरित कर रहा है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसे डिग्री धारकों को नियुक्ति से राहत देने से इनकार किया

    यह कहते हुए कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान जामिया उर्दू, अलीगढ़ उचित कक्षाओं के बिना "डिग्रियां वितरित कर रहा है", इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐसे डिग्री धारकों को उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक (उर्दू भाषा) के रूप में नियुक्ति के किसी भी अधिकार से वंचित कर दिया।

    याचिकाकर्ताओं (संबंधित मामलों में) ने दलील दी कि उन्होंने जामिया उर्दू, अलीगढ़ से अदीब-ए-कामिल में डिग्री प्राप्त की थी और वे यू.पी. बेसिक शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक (उर्दू भाषा) के रूप में नियुक्त होने के पात्र थे। सभी याचिकाकर्ता यू.पी. शिक्षक पात्रता परीक्षा - 2013 में उपस्थित हुए और उसमें सफल हुए।

    याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वे परीक्षा परिणाम के अनुसार तैयार की गई मेरिट सूची में शामिल थे, जहां कुछ को पोस्टिंग दी गई, जबकि अन्य पोस्टिंग की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस बीच याचिकाकर्ताओं द्वारा अदीब-ए-कामिल कोर्स एक वर्ष से भी कम समय में पास करने के बारे में जांच की गई, जबकि कोर्स की अवधि 1 वर्ष थी। यह भी पाया गया कि कुछ याचिकाकर्ताओं ने उसी वर्ष डिग्री प्राप्त की थी, जिस वर्ष उन्होंने अपनी इंटरमीडिएट परीक्षा दी थी।

    परिणामस्वरूप, जिन याचिकाकर्ताओं को पहले ही पोस्टिंग दी जा चुकी थी, उनकी नियुक्तियां रद्द कर दी गईं। याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और तर्क दिया कि जामिया उर्दू, अलीगढ़ एक मान्यता प्राप्त संस्थान है और यह अटकलें कि वहां कोई शिक्षक या कक्षा नहीं है, निराधार हैं।

    सरताज अहमद एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले पर भरोसा किया गया, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना था कि जिन लोगों ने 11.08.1997 को या उससे पहले जामिया उर्दू, अलीगढ़ से मोअल्लिम-ए-उर्दू की पढ़ाई की है, वे 05.01.2016 के जी.ओ. के अनुसरण में उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापक (उर्दू) के पदों पर नियुक्ति के लिए विचार किए जाने के हकदार हैं।

    इसके अलावा यह भी तर्क दिया गया कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है और एक साथ दो कोर्स करने पर कोई रोक नहीं है। इसके विपरीत, प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि संस्थान को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। यह तर्क दिया गया कि जामिया उर्दू, अलीगढ़ में नियमित कक्षाएं नहीं लगती हैं, बल्कि डिग्री वितरित की जाती हैं और याचिकाकर्ताओं ने धोखाधड़ी करके डिग्री प्राप्त की है।

    जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा कि

    “याचिकाकर्ता ने वर्ष 1995 में इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण की है तथा 26.07.1995 को प्रमाण-पत्र जारी किया गया। याचिकाकर्ता के मामले के अनुसार, उसने जुलाई, 1995 में अदीब-ए-कामिल करने के लिए जामिया उर्दू, अलीगढ़ में प्रवेश लिया। इसकी परीक्षा नवंबर, 1995 में अर्थात 5 महीने के भीतर आयोजित की गई तथा परिणाम जुलाई, 1996 में घोषित किया गया। अभिलेख पर प्रस्तुत प्रमाण-पत्र से स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता ने फरवरी, 1997 में आयोजित मोअल्लिम-ए-उर्दू परीक्षा उत्तीर्ण की है।”

    न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता ने 5 महीने की अल्प अवधि में दो परीक्षाएं, इंटरमीडिएट तथा अदीब-ए-कामिल उत्तीर्ण की, जो उचित नहीं था। न्यायालय ने माना कि जामिया उर्दू अवैध रूप से डिग्रियां वितरित कर रहा था। इसलिए, याचिकाकर्ता को सहायक अध्यापक (उर्दू) के पद के लिए अयोग्य माना गया।

    तदनुसार, मुख्य रिट याचिका खारिज कर दी गई। इसी प्रकार, सभी संबंधित मामले भी खारिज कर दिए गए।

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