'IOs को समय पर विसरा रिपोर्ट मिलनी चाहिए': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने FSL से समय पर संवाद सुनिश्चित करने का निर्देश दिया

Shahadat

12 Nov 2025 10:48 AM IST

  • IOs को समय पर विसरा रिपोर्ट मिलनी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने FSL से समय पर संवाद सुनिश्चित करने का निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह फोरेंसिक साइंस लैब (FSL) से जांच एजेंसियों को विसरा रिपोर्ट भेजने में हो रही देरी पर गहरी चिंता व्यक्त की और इस चूक को 'चिंताजनक' बताया।

    जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने मुख्य सचिव, मेडिकल स्वास्थ्य महानिदेशक और पुलिस महानिदेशक को स्थिति की जांच करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि विसरा रिपोर्ट बिना किसी समय की बर्बादी के शीघ्रता से प्रेषित की जाए ताकि जांच के दौरान पूर्ण, उचित और प्रभावी मूल्यांकन संभव हो सके।

    कोर्ट की यह टिप्पणी दहेज हत्या के एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान आई। सिंगल जज ने कहा कि यद्यपि मृतक का विसरा फरवरी, 2024 में लैब को भेजा गया था और सितंबर, 2024 में तैयार किया गया लेकिन जांच अधिकारी को यह 1 फरवरी, 2025 तक प्राप्त नहीं हुआ।

    वास्तव में रिपोर्ट को उसके बाद ही केस डायरी में संलग्न किया गया। इस बीच आरोप पत्र 13 सितंबर, 2024 को ही दाखिल किया जा चुका था और विसरा रिपोर्ट प्राप्त होने से पहले ही 11 नवंबर, 2024 को संज्ञान लिया गया था।

    जस्टिस गोपाल ने कहा,

    "यह तथ्य परेशान करने वाला है। फोरेंसिक साइंस लैब द्वारा विसरा रिपोर्ट को जाँच एजेंसी को विचारार्थ शीघ्रता से भेजने की एक प्रक्रिया होनी चाहिए।"

    कोर्ट ने कहा कि मामले की जांच विसरा रिपोर्ट प्राप्त किए बिना ही पूरी कर ली गई थी और आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया गया।

    न्यायालय ने कहा कि इससे यह स्पष्ट होता है कि जहां तक मृतक की मृत्यु के कारण का प्रश्न है, वह निर्णायक नहीं था। न्यायालय ने आगे कहा कि देरी से पता चलता है कि जांच किसी-न-किसी रूप में अधूरी थी।

    विसरा रिपोर्ट को इस प्रकार के मामले की परिस्थितियों की श्रृंखला की एक कड़ी बताते हुए कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि उचित निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए ऐसे महत्वपूर्ण साक्ष्य समय रहते जांच एजेंसी के हाथ में होने चाहिए।

    मामले पर व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाते हुए जस्टिस गोपाल ने मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और मेडिकल स्वास्थ्य महानिदेशक को निर्देश जारी किए कि वे अधूरी जांच से बचने के लिए विसरा रिपोर्ट बिना किसी समय की बर्बादी के प्रेषित करें।

    कोर्ट ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को आवश्यक कार्रवाई के लिए एक सप्ताह के भीतर संबंधित अधिकारियों को यह आदेश प्रेषित करने का भी निर्देश दिया।

    संक्षेप में वर्तमान मामले में FIR मृतका के भाई द्वारा दर्ज कराई गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि उसकी बहन को उसके पति और ससुराल वालों द्वारा मोटरसाइकिल और ₹1 लाख की दहेज की मांग को लेकर परेशान और प्रताड़ित किया गया था।

    इसमें आगे दावा किया गया कि मृतका के चेहरे, गर्दन और शरीर के अन्य हिस्सों पर चोटें आईं और उसकी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई।

    राज्य ने जमानत याचिका का विरोध किया।

    राज्य के पक्ष से सहमत होते हुए कोर्ट ने निम्नलिखित टिप्पणी करते हुए उसे ज़मानत देने से इनकार कर दिया:

    "...यह स्पष्ट है कि आवेदक मृतका का पति है। आवेदक और अन्य सह-अभियुक्तों द्वारा दहेज की मांग, यातना और उत्पीड़न का आरोप है। मृतका की मृत्यु विवाह के सात वर्ष के भीतर अपने ससुराल में अस्वाभाविक रूप से हुई थी। जिन सह-अभियुक्तों को ज़मानत दी गई है, वे मृतका के ससुर और सास हैं। चूंकि आवेदक मृतका का पति है, इसलिए उसका मामला उक्त सह-अभियुक्तों के मामले से अलग है।"

    Case title - Ramratan vs. State of U.P.

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