'निर्णयों में मेडिकल रिपोर्ट से चोटों का विवरण अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करें': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की निचली अदालतों को निर्देश दिया

Shahadat

19 Nov 2025 10:20 AM IST

  • निर्णयों में मेडिकल रिपोर्ट से चोटों का विवरण अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की निचली अदालतों को निर्देश दिया

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य के सभी ट्रायल कोर्ट के जजों को सख्त निर्देश जारी किया कि वे अपने निर्णयों में मेडिकल रिपोर्ट में दर्ज चोटों का विवरण अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करें।

    जस्टिस राजीव मिश्रा और जस्टिस डॉ. अजय कुमार-द्वितीय की खंडपीठ ने कहा कि यह देखकर 'दुख' हो रहा है कि ट्रायल कोर्ट अपने आदेशों में इस महत्वपूर्ण फोरेंसिक विवरण को छोड़ रही हैं, जबकि लंबे समय से प्रशासनिक परिपत्रों में ऐसा करने की आवश्यकता थी।

    यह निर्देश दहेज के आरोपी पति को बरी किए जाने के खिलाफ दायर आपराधिक अपील खारिज करते हुए जारी किया गया।

    इस मामले में हाईकोर्ट ने एडिशनल सेशन जज/एफटीसी कोर्ट नंबर 1, गाजीपुर द्वारा दिए गए फैसले में महत्वपूर्ण चूक का उल्लेख किया, जिसमें आरोपी को बरी तो कर दिया गया, लेकिन अंतिम फैसले में मृतक के शरीर पर पाई गई विशिष्ट चोटों का उल्लेख नहीं किया गया।

    इस चूक को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट ने टिप्पणी की:

    "हमें यह देखकर दुःख हो रहा है कि ट्रायल कोर्ट ने अपने विवादित निर्णय में मृतक के शरीर पर पाई गई चोटों का उल्लेख नहीं किया, जबकि हाईकोर्ट के सर्कुलर नंबर 13/VIb-47 दिनांक: 3 मार्च, 2002 और सर्कुलर नंबर 13/VIb-47 दिनांक: 3 मार्च, 1982 में न्यायिक अधिकारियों को स्पष्ट रूप से निर्देश दिया गया कि वे अपने निर्णयों में घायल व्यक्तियों की चोटों की रिपोर्टों से प्राप्त चोटों को अनिवार्य रूप से पुनः प्रस्तुत करें। हमें आशा और विश्वास है कि उपरोक्त सर्कुलर 9 NC413 नंबर 564/2025 का सभी न्यायिक अधिकारियों द्वारा अपने निर्णय लिखते समय अनुपालन किया जाएगा।"

    परिणामस्वरूप, पीठ ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को निर्देश दिया कि वे उत्तर प्रदेश राज्य के सभी न्यायिक अधिकारियों के बीच इस निर्णय की एक प्रति प्रसारित करें ताकि उनके द्वारा दिए जाने वाले निर्णय में घायल व्यक्तियों और/या मृतकों की चोटों की रिपोर्ट से प्राप्त चोटों के पुनरुत्पादन के संबंध में कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।

    मामले की पृष्ठभूमि

    सेशन कोर्ट ने पति (वशिष्ठ यादव) को उसकी 32 वर्षीय पत्नी की मृत्यु से संबंधित भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498-ए (क्रूरता) और 304 (दहेज हत्या) के तहत आरोपों से बरी कर दिया था।

    संक्षेप में अपीलकर्ता (मृतक पीड़िता का भाई) ने आरोप लगाया कि उसकी बहन को कम दहेज लाने और बेटा न होने के कारण परेशान किया जाता था। उसने दावा किया कि ससुराल पहुंचने पर उसकी भतीजियों ने उसे बताया कि उनकी माँ को अभियुक्त और उसके परिवार के सदस्यों ने पीट-पीटकर मार डाला है।

    अभियोजन पक्ष का मामला मृतका की नाबालिग बेटी, अभियोग पक्ष-3 की गवाही पर आधारित है। अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने उसकी गवाही को खारिज करके घोर अवैधता की है।

    हालांकि, साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन करने पर हाईकोर्ट ने पाया कि बच्ची की गवाही विरोधाभासों से भरी हुई।

    हाईकोर्ट ने कहा कि जहां उसने मुख्य परीक्षा में दावा किया कि उसकी माँ को उसके चाचा के घर पर पीटा गया, वहीं उसने जिरह में स्वीकार किया कि यह घटना उसके अपने घर पर हुई।

    खंडपीठ ने आगे कहा कि उसने स्वीकार किया कि कथित घटना के समय वह सो रही थी और उसकी नींद तभी खुली जब उसकी माँ को अस्पताल ले जाया जा रहा था।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि उसने स्वीकार किया कि उसके चाचा (सूचना देने वाले) ने उसे समझाया कि अदालत में क्या बयान देना है। इस प्रकार, खंडपीठ ने कहा कि इस मासूम बच्ची को सबक सिखाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

    इसके अलावा, हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि वयस्क गवाहों [अपीलकर्ता (पीडब्लू-1) और एक अन्य रिश्तेदार (पीडब्लू-2)] ने अपनी क्रॉस एक्जामिनेशन में स्वीकार किया कि मोटरसाइकिल की माँग और उत्पीड़न के बारे में उनके आरोप केवल वर्तमान मामले को 'रंग देने' के लिए लगाए गए। वास्तव में उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उनकी उपस्थिति में उत्पीड़न की कोई घटना कभी नहीं हुई।

    इस पृष्ठभूमि में अपील खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने दोहराया कि किसी अपीलीय न्यायालय को बरी करने के आदेश में तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जब तक कि निर्णय "स्पष्ट रूप से विकृत" या साक्ष्यों की गलत व्याख्या से ग्रस्त न हो।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि बरी होने के बाद अभियुक्तों के पक्ष में दोहरी धारणा होती है, अर्थात्, पहला, उनके पास निर्दोष होने की मौलिक धारणा है। दूसरा, ट्रायल कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में है।

    इसलिए ट्रायल कोर्ट के तर्क में कोई विकृतियां न पाते हुए खंडपीठ ने अपील खारिज कर दी।

    Case title - Sunil Kumar Yadav vs. State of U.P. and Another

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