रियल एस्टेट कंपनी की दिवालियेपन प्रक्रिया में घर खरीदारों का हित सर्वोपरि: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
2 Nov 2025 6:36 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि किसी रियल एस्टेट कंपनी की दिवालियेपन समाधान प्रक्रिया में घर खरीदारों का हित सर्वोपरि है, क्योंकि यह सीधे तौर पर उनके अधिकारों और हितों को प्रभावित करता है।
जस्टिस अरुण कुमार ने कहा
“किसी रियल एस्टेट कंपनी की दिवालियेपन समाधान प्रक्रिया में मुख्य चिंता रियल एस्टेट परियोजना में घर खरीदार का हित है। घर खरीदार महत्वपूर्ण हितधारक हैं। लेनदारों के दिवालियेपन समाधान की प्रक्रिया सीधे तौर पर उनके अधिकारों और हितों को प्रभावित करती है। किसी भी दिवालियेपन समाधान प्रक्रिया में घर खरीदारों की चिंताएं प्राथमिक उद्देश्य होनी चाहिए। रद्द किए गए भूखंड की बहाली के बिना किसी भी समाधान योजना को न्यायनिर्णायक प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित नहीं किया जा सकता है।”
याचिकाकर्ता ने ग्रेटर नोएडा में एक ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट विकसित करने के लिए त्रिपक्षीय समझौता किया था। पट्टा किराया के भुगतान में चूक के कारण GNIDA द्वारा याचिकाकर्ता का उप-पट्टा रद्द कर दिया गया। इस बीच याचिकाकर्ता के वित्तीय लेनदार ने दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता, 2016 की धारा 7 के तहत दिवालियेपन की कार्यवाही शुरू कर दी।
एक अंतरिम समाधान पेशेवर नियुक्त किया गया, जिसने सभी लेनदारों से दावे आमंत्रित किए। सेवियर बिल्डर्स सफल समाधान आवेदक के रूप में उभरा। समाधान योजना न्यायनिर्णायक प्राधिकरण के अनुमोदन हेतु लंबित है।
इस बीच IRP ने कॉर्पोरेट देनदार को आवंटित भूमि का पट्टे रद्द करने का फैसला राज्य सरकार के समक्ष उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम, 1973 की धारा 41(3) और उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 की धारा 12 के तहत संशोधित याचिका में चुनौती दी। संशोधित याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की गई।
रिट याचिका के लंबित रहने के दौरान, समूह आवास परियोजना में आवंटी होने का दावा करने वाले लोगों द्वारा अभियोग आवेदन दायर किए गए। बाद में ये आवेदन वापस ले लिए गए। मामले को निपटाने के प्रयास में सेवियर बिल्डर्स ने विकास प्राधिकरण में निश्चित राशि जमा करने और परियोजना को पूरा करने की पेशकश की। अंततः, हाईकोर्ट में 20 करोड़ रुपये से अधिक का बैंक ड्राफ्ट जमा किया गया।
तुषार कांति बिस्वास नामक व्यक्ति ने समाधान योजना के विरुद्ध पुनः अभियोग आवेदन दायर किया। मेसर्स राधे कृष्णा टेक्नोबिल्ड प्राइवेट लिमिटेड द्वारा अन्य अभियोग आवेदन दायर किया गया, जिसमें दलील दी गई कि उनकी समाधान योजना को IRP द्वारा अस्वीकार कर दिया गया और IRP के निर्णय को पहले ही एक अलग कार्यवाही में चुनौती दी जा चुकी है। यह तर्क दिया गया कि याचिका पर कोई भी निर्णय सेवियर बिल्डर्स के पक्ष में अविभाज्य अधिकार का सृजन करेगा।
कोर्ट ने कहा कि चूंकि समाधान योजना को वित्तीय ऋणदाता के 66% मतदान अंश द्वारा अनुमोदित किया गया था। इसलिए घर खरीदारों के जिन दावों को अस्वीकार कर दिया गया। उन पर रिट क्षेत्राधिकार वाले हाईकोर्ट द्वारा नहीं, बल्कि न्यायनिर्णायक प्राधिकरण द्वारा निर्णय लिया जा सकता था। उनके अभियोग आवेदन इस आधार पर अस्वीकार कर दिए गए कि मेसर्स राधे कृष्णा टेक्नोबिल्ड पहले ही प्राधिकरण से संपर्क कर चुका था, जबकि तुषार कांति बिस्वास ने प्राधिकरण से संपर्क न करने का निर्णय लिया था।
"एबिक्स सिंगापुर प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य (सुप्रा) तथा भारतीय स्टेट बैंक एवं अन्य (सुप्रा) के मामलों में माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों, जिनका सहारा मेसर्स राधे कृष्णा टेक्नोबिल्ड प्राइवेट लिमिटेड के सीनियर एडवोकेट ने अभियोग आवेदन के समर्थन में लिया, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत हाईकोर्ट द्वारा समाधान योजना के विरुद्ध आवेदक के दावे पर निर्णय लेने की अनुमति प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त, उपरोक्त निर्णय समाधान योजना को स्वीकृत करने में ऋणदाताओं की समिति (COC) के व्यावसायिक विवेक की श्रेष्ठता को प्रमाणित करते हैं।"
इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि जब तक ज़मीन कॉर्पोरेट देनदार को वापस नहीं कर दी जाती, कंपनी का परिसमापन हो जाएगा और घर खरीदारों को कुछ भी नहीं मिलेगा। घर खरीदारों के हितों को सर्वोपरि मानते हुए कोर्ट ने कहा कि समाधान पेशेवर, समाधान आवेदक और ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के बीच घर खरीदारों के प्रतिनिधि की उपस्थिति में हुआ समझौता घर खरीदारों के हितों की रक्षा करते हुए आवासीय परियोजना के पुनरुद्धार की आशा की एक किरण है।
कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि समाधान आवेदक ने एक निश्चित राशि का भुगतान करने पर सहमति व्यक्त की, उसका संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा और न ही इससे समाधान योजना के अनुमोदन के संबंध में निश्चितता पैदा होगी।
यदि रिट याचिका के पक्षकारों के बीच हुए नए समझौते पर अमल होता है तो इससे कॉर्पोरेट देनदार के पक्ष में लीज़ डीड बहाल हो जाएगी। आगे की कार्रवाई न्यायनिर्णायक प्राधिकरण के पास जाएगी, जो समाधान योजना को मंज़ूरी देते समय, IBC के तहत परिकल्पित, अपने समक्ष लंबित सभी आपत्तियों पर विचार करेगा। इसके अलावा, यदि किसी असफल समाधान आवेदक द्वारा उठाई गई आपत्ति न्यायनिर्णायक प्राधिकरण द्वारा कुछ हद तक सही पाई जाती है तो मामला पुनर्विचार और नए सिरे से मतदान के लिए COC को वापस भेज दिया जाएगा।
चूंकि GNIDA ने 25% राशि अपने पक्ष में जारी होने पर लीज़ की बहाली पर सहमति जताई थी, इसलिए न्यायालय ने चुनौती दिए गए आदेश को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि न्यायालय में जमा की गई 25% राशि GNIDA के पक्ष में जारी की जाए। कोर्ट ने यह भी माना कि केवल इसलिए कि धनराशि डाली जा रही थी, समाधान आवेदक के पक्ष में कोई अधिकार नहीं बनाया जा रहा था।
Case Title: Bulland Realtors Private Limited Versus State Of U.P. And 4 Others [WRIT - C No. - 166 of 2025]

