'महिला की इच्छा के विरुद्ध उसे बेहोश करना असंभव': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोदी के 'चिकित्सा न्यायशास्त्र' का हवाला देते हुए बलात्कार मामले में जमानत दी

LiveLaw News Network

1 Aug 2024 8:26 AM GMT

  • महिला की इच्छा के विरुद्ध उसे बेहोश करना असंभव: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोदी के चिकित्सा न्यायशास्त्र का हवाला देते हुए बलात्कार मामले में जमानत दी

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोदीज मेडिकल ज्यूरिसप्रूडेंस एंड टॉक्सिकोलॉजी, बाईसवां संस्करण (छात्र संस्करण) [Modi's Medical Jurisprudence & Toxicology, Twenty-Second Edition] पर भरोसा करते हुए, हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति को जमानत दे दी, जिस पर क्लोरोफॉर्म के इस्तेमाल से कथित तौर पर एक महिला को बेहोश करने के बाद उसके साथ बलात्कार करने का आरोप है।

    जस्टिस कृष्ण पहल की पीठ ने कहा कि मोदीज मेडिकल ज्यूरिसप्रूडेंस एंड टॉक्सिकोलॉजी के अनुसार, किसी महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध बेहोश करना असंभव है, जबकि वह जाग रही हो। कोर्ट ने कहा कि एक अनुभवहीन व्यक्ति के लिए बिना किसी व्यवधान के सो रहे व्यक्ति को बेहोश करना और प्राकृतिक नींद के स्थान पर कृत्रिम नींद देना भी असंभव है।

    कोर्ट ने कहा, "इसलिए आम प्रेस में अक्सर प्रकाशित होने वाली कहानी जिसमें एक महिला के चेहरे पर क्लोरोफॉर्म में भिगोए गए रूमाल को रखकर उसे अचानक बेहोश कर दिया गया और फिर उसके साथ बलात्कार किया गया, उस पर विश्वास नहीं किया जाना चाहिए।"

    न्यायालय ने किताब पर भरोसा करते हुए आगे कहा कि 'उत्तेजक' और 'भावुक' स्वभाव वाली महिलाओं को बेहोशी की अवस्था के दौरान बलात्कार होने का भ्रम हो सकता है या सपने आ सकते हैं और इस तरह के सपनों पर विश्वास नहीं किया जा सकता।

    फैसला

    न्यायालय ने माना कि "दोषी साबित होने तक निर्दोषता की धारणा" के अनुसार, कारावास जमानत के नियम का अपवाद है। न्यायालय ने माना कि अभियुक्त के न्याय प्रणाली से भागने का कोई खतरा नहीं था और आवेदक को जेल में रखने के लिए लगाए गए आरोपों का समर्थन करने के लिए कोई पुष्ट सबूत नहीं था।

    इस पृष्ठभूमि को मद्देनज़र अभियुक्त को जमानत देते हुए जस्टिस कृष्ण पहल ने कहा,

    "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को केवल इसलिए नहीं छीना जा सकता है क्योंकि उस व्यक्ति पर अपराध करने का आरोप है जब तक कि अपराध उचित संदेह से परे साबित न हो जाए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति के जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता को तब तक नहीं छीना जा सकता जब तक कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का पालन न किया जाए, और प्रक्रिया न्यायसंगत और उचित होनी चाहिए।"

    केस टाइटल: रविन्द्र सिंह राठौर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2024 लाइव लॉ (एबी) 471 [आपराधिक विविध जमानत आवेदन संख्या - 24630/2024]

    केस साइटेशन: 2024 लाइव लॉ (एबी) 471

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