सर्विस के दौरान दिव्यांगता होती है तो कर्मचारी को सेवामुक्त करने के बजाय उपयुक्त पद पर ट्रांसफर किया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Shahadat
13 Oct 2025 7:23 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जहां दिव्यांगता सेवा के दौरान प्राप्त होती है, वहां कर्मचारी की सेवाएं समाप्त करने के बजाय उसे उपयुक्त पद पर ट्रांसफर किया जाना चाहिए।
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 20 [रोज़गार में भेदभाव न करना] का हवाला देते हुए जस्टिस अब्दुल मोइन ने कहा,
“अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि जहां कोई कर्मचारी अपनी सेवा के दौरान दिव्यांगता प्राप्त करता है, उसकी सेवाएं समाप्त नहीं की जानी चाहिए, बल्कि नियोक्ता द्वारा उसे उपयुक्त पद पर ट्रांसफर करने और उसके अभाव में उपयुक्त पद उपलब्ध होने तक उसे अतिरिक्त पद पर बनाए रखने का प्रयास किया जाना चाहिए।”
याचिकाकर्ता को 2013 में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। इसके बाद 02.08.2016 को उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ। इसके कारण वह अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो गए। 20.08.2024 को उन्होंने पुनः सेवा में शामिल होने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं दी गई।
इस बीच प्रतिवादियों ने उनके मामले की जांच के लिए एक समिति गठित की। उक्त समिति के अनुसार, याचिकाकर्ता लिखने या बोलने में असमर्थ होने के कारण शिक्षण कार्य करने में असमर्थ था, जिसके कारण उसे सेवा में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 और दिव्यांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत मिलने वाले लाभों के कारण याचिकाकर्ता को समकक्ष पद पर नियुक्ति के लिए विचार किया जाना चाहिए।
इसके विपरीत प्रतिवादियों के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने 01.10.2021 से तीन वर्षों की अनुपस्थिति के बाद 30.08.2024 को अभ्यावेदन प्रस्तुत किया, जिसे उसकी अनुपस्थिति के कारण अस्वीकार कर दिया गया। यह भी तर्क दिया गया कि समिति की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता शिक्षण कार्य करने के लिए अयोग्य पाया गया, जिसके कारण उसे सेवा में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने पाया कि ब्रेन स्ट्रोक दर्शाने वाले दस्तावेज़ संलग्न होने के बावजूद, याचिकाकर्ता के मामले की जांच के लिए कोई मेडिकल बोर्ड गठित नहीं किया गया।
कोर्ट ने कहा कि 2016 के अधिनियम की धारा 20(4) के तहत सेवा के दौरान दिव्यांगता प्राप्त करने वाले किसी भी सरकारी कर्मचारी को सेवामुक्त नहीं किया जा सकता। प्रावधान के अनुसार, यदि दिव्यांगता प्राप्त करने के बाद कर्मचारी अपने पद के लिए उपयुक्त नहीं है तो उसे समान वेतनमान और लाभों के साथ किसी अन्य पद पर ट्रांसफर कर दिया जाएगा। दूसरे प्रावधान में कहा गया कि यदि कोई अन्य पद उपलब्ध नहीं है तो कर्मचारी को तब तक किसी अतिरिक्त पद पर रखा जा सकता है, जब तक कि ऐसा पद उपलब्ध न हो जाए या रिटायर न हो जाए, जो भी पहले हो।
चौ. जोसेफ बनाम तेलंगाना राज्य सड़क परिवहन निगम एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विस्तार से उल्लेख करते हुए कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि जब विकलांगता सेवा के दौरान प्राप्त होती है तो कानूनी ढांचे में समायोजन होना चाहिए, न कि बहिष्करण।
कोर्ट ने कहा कि यद्यपि कोई मेडिकल बोर्ड गठित नहीं किया गया था, फिर भी याचिकाकर्ता का मूल्यांकन करने के लिए सीनियर डॉक्टर को भेजा गया, जो समिति का हिस्सा थे। डॉक्टर के साथ-साथ समिति के अन्य सदस्यों ने भी यह राय व्यक्त की कि याचिकाकर्ता शिक्षण कार्य के लिए उपयुक्त नहीं है। कोर्ट ने कहा कि चौधरी जोसेफ के मामले को देखते हुए याचिकाकर्ता के लिए वैकल्पिक पद की पहचान की जानी चाहिए।
तदनुसार, कोर्ट ने DIOS, बाराबंकी को अधिनियम और चौधरी जोसेफ के अनुरूप कार्य करते हुए याचिकाकर्ता के लिए उपयुक्त पद खोजने का निर्देश दिया। ऐसा न करने पर उसे तब तक किसी अतिरिक्त पद पर रखा जाए, जब तक कि ऐसा पद उपलब्ध न हो जाए या उसकी रिटायरमेंट तक, जो भी पहले हो। यह भी माना गया कि याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति की तिथि से लेकर DIOS द्वारा आदेश पारित किए जाने तक की अवधि को प्रतिवादियों द्वारा नियमों के अनुसार नियमित किया जाना था।
Case Title: Laljee Versus State Of U.P. Thru. Prin. Secy. Secondary Education Lko And 6 Others [WRIT - A No. - 7815 of 2024]

