ग्रामीण स्कूलों में शिक्षकों की नियमित उपस्थिति के लिए ठोस नीति बनाएं, डिजिटल हाजिरी जरूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Praveen Mishra
1 Nov 2025 3:34 PM IST

ग्रामीण प्राथमिक और जूनियर विद्यालयों में शिक्षकों की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए दिए गए अपने पूर्व निर्देशों को आगे बढ़ाते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 अक्टूबर को दोहराया कि उत्तर प्रदेश सरकार को ऐसा “ठोस समाधान” तैयार करना होगा, जिससे यह सुनिश्चित हो कि जिन विद्यालयों में गरीब ग्रामीण बच्चों की पढ़ाई हो रही है, वहाँ शिक्षक नियमित रूप से उपस्थित रहें।
जस्टिस प्रवीण कुमार गिरी की एकलपीठ ने कहा कि जब तक शिक्षक स्कूल में शारीरिक रूप से उपस्थित नहीं होंगे, तब तक शिक्षण संभव नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि स्वतंत्रता के बाद से शिक्षकों की उपस्थिति की प्रभावी व्यवस्था न होने के कारण गरीब बच्चों के शिक्षा के संवैधानिक अधिकार पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।
यह ध्यान देने योग्य है कि 16 अक्टूबर को न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह विद्यालयों में शिक्षकों की उपस्थिति की निगरानी के लिए “व्यवहारिक नीति” तैयार करे।
उस आदेश में यह भी कहा गया था कि शिक्षकों की अनुपस्थिति बच्चों के मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के उद्देश्य को विफल करती है और संविधान के अनुच्छेद 21, 21ए और 14 का उल्लंघन करती है।
अब 30 अक्टूबर की सुनवाई के दौरान राज्य के स्थायी अधिवक्ता ने बताया कि मुख्य सचिव की अध्यक्षता में इस मुद्दे पर बैठक चल रही है।
न्यायालय ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई कि जमीनी स्तर पर अभी तक कोई प्रभावी तंत्र नहीं है, जबकि तकनीकी प्रगति के इस युग में उपस्थिति को डिजिटल रूप से दर्ज किया जा सकता है।
अदालत ने कहा, “तकनीक के युग में शिक्षकों की उपस्थिति को नियमों और अधिनियमों में निर्धारित समय पर वर्चुअल/इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दर्ज किया जाना चाहिए।”
जस्टिस गिरी ने यह भी कहा कि यदि शिक्षक कभी-कभी 5 से 10 मिनट की देरी से आते हैं तो थोड़ी रियायत दी जा सकती है, लेकिन नियमित अनुपस्थिति को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “यदि शिक्षक किसी कारणवश पाँच-दस मिनट की देरी से आते हैं और यह उनकी आदत नहीं है, तो कुछ छूट दी जा सकती है, लेकिन उन्हें प्रतिदिन विद्यालय में उपस्थित रहना होगा। शिक्षकों की उपस्थिति सुबह 10 बजे या प्रार्थना के समय तय समयानुसार दर्ज की जानी चाहिए।”
याचिकाकर्ता इंद्रा देवी की ओर से उनके वकील ने कहा कि वह अपने हस्ताक्षर और उपस्थिति को निर्धारित इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली के माध्यम से अपलोड करने के लिए तैयार हैं।
अदालत ने कहा कि यदि वह यह लिखित आश्वासन दें कि भविष्य में ऐसी गलती दोबारा नहीं करेंगी और नियमित रूप से डिजिटल उपस्थिति दर्ज करेंगी, तो न्यायालय उनके निलंबन आदेश को रद्द करने पर विचार कर सकता है।
संदर्भ के लिए, इंद्रा देवी बांदा जिले के पैलानी क्षेत्र स्थित एक सम्मिलित विद्यालय की प्रधानाध्यापिका हैं, जिन्होंने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, बांदा द्वारा जारी निलंबन आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने वेतन सहित बहाली की मांग भी की है।
जिला मजिस्ट्रेट, बांदा द्वारा दोपहर 1:30 बजे किए गए एक औचक निरीक्षण में इंद्रा देवी विद्यालय में उपस्थित नहीं पाई गई थीं।
अब न्यायालय ने इस मामले की अगली सुनवाई 10 नवंबर 2025 को निर्धारित की है, ताकि राज्य सरकार यह बता सके कि शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए वह क्या ठोस कदम उठा रही है, जैसे अन्य विभागों में किए जा रहे हैं।

